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नई पद्धति : अब धरती की प्यास बुझा रहे सालों से सूखे पड़े हैंडपंप

गांवों के 11 सूखे हैंडपंप और दो कुएं जमीन के अंदर बारिश और गांव से उपयोग के बाद निकलने वाले दूषित पानी को फिल्टर करके जमीन के अंदर पहुंचा रहे हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 19 Jul 2019 09:46 AM (IST)Updated: Fri, 19 Jul 2019 09:46 AM (IST)
नई पद्धति : अब धरती की प्यास बुझा रहे सालों से सूखे पड़े हैंडपंप
नई पद्धति : अब धरती की प्यास बुझा रहे सालों से सूखे पड़े हैंडपंप

हरिओम गौड़, श्योपुर। भूजल स्तर घटने के कारण सूख चुके हैंडपंपों से एक बूंद पानी नहीं निकलता। देशभर में ऐसे सूखे हैंडपंपों को मुंह चिढ़ाते हुए देखा जा सकता है। लेकिन आपसे यदि यह कहा जाए कि यही हैंडपंप धरती को लाखों लीटर पानी लौटा सकते हैं, तो सुनकर अचंभा होगा। श्योपुर, मध्य प्रदेश के आदिवासी विकास खंड कराहल के चार गांवों में ऐसा होते हुए देखा जा सकता है। इन चार गांवों के 11 सूखे हैंडपंप और दो कुएं जमीन के अंदर बारिश और गांव से उपयोग के बाद निकलने वाले दूषित पानी को फिल्टर करके जमीन के अंदर पहुंचा रहे हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि क्षेत्र का भूजल स्तर लौट आया। गांव में जो हैडपंप और कुएं सूखे पड़े थे, उन्होंने पानी देना शुरू कर दिया।

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दरअसल, आदिवासी बहुल ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए काम करने वाले श्योपुर के गांधी सेवा आश्रम ने जर्मनी की संस्था जीआइजेड और हैदराबाद एफप्रो संस्था के साथ मिलकर सबसे पहले 2016 में यह प्रयोग कराहल के डाबली, अजनोई, झरेर और बनार गांव में किया। यह गांव इसलिए चुने गए क्योंकि यहां के अधिकांश हैडपंप सूख चुके थे। इन गांवों में अंधाधुंध बोर इस तरह हुए थे कि दो बीघा खेत में आधा दर्जन बोर थे। नतीजतन गांवों का भूजल स्तर गर्त में जा समाया था। गांव के सभी जलस्रोत सूख गए। इधर, पिछले कुछ सालों से हो रहे इस प्रयोग का असर यह हुआ कि बारिश के सीजन के बाद अजनोई, डाबली, झरेर और बनार गांव की बस्तियों के आसपास के वह सूखे हैंडपंप पानी देने लगे जो दस साल से सूखे पड़े थे।

इंजेक्शन पद्धति से ऐसे पहुंचा जमीन में पानी

इस पद्धति को इंजेक्शन पद्धति कहा जाता है। जर्मनी की संस्था ने श्योपुर से पहले इसका सफल प्रयोग गुजरात और राजस्थान के सूखे इलाकों में किया था। इस पद्धति के तहत हैंडपंप के चारों ओर करीब 10 फीट गहरा गड्ढा खोदा जाता है। हैंडपंप के केसिंग पाइप में जगहजगह एक से डेढ़ इंच व्यास के 1200 से 1500 छेद किए जाते हैं। इसी पाइप के जरिए पानी जमीन में जाता है। इससे पहले पानी को साफ करने के लिए गड्ढे में फिल्टर प्लांट भी बनाया जाता है। इस फिल्टर प्लांट में बोल्डर, गिट्टी, रेत और कोयले जैसी चीजें परत दर परत जमाई जाती हैं। इनसे छनने के बाद ही बारिश का पानी हैंडपंप के छेदयुक्त पाइप तक पहुंचता है। पाइप पर भी जालीदार फिल्टर लगाया जाता है। इस तरह बेहद कारगर रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम तैयार हो जाता है।

एक सूखा हैंडपंप 4 लाख लीटर पानी लौटा रहा धरती को...

सूखे हैंडपंप को जलस्रोत रीचार्ज यूनिट बनाने में 45 हजार का खर्च आया है, लेकिन इसका फायदा बहुत बड़ा है। अब यह खराब हैंडपंप एक साल में साढ़े तीन से चार लाख लीटर पानी जमीन के अंदर पहुंचा रहा है। रिकार्ड के अनुसार एक सामान्य हैंडपंप से हर साल 3 लाख 60 हजार लीटर तक पानी निकाला जाता है। यानी खराब हैंडपंप उतना ही पानी जमीन में वापस भेज रहा है, जितना एक सही हैंडपंप जमीन से खींच रहा है।

इसे इंजेक्शन पद्धति कहते हैं। इसके तहत वर्षाजल और उपयोग में लाए जा चुके पानी को फिल्टर कर जमीन के अंदर पहुंचाया जाता है। एक सूखा हैंडपंप इतना पानी जमीन को लौटाता है, जिनता दूसरा हैडपंप जमीन से खींच लेता है।

-सत्यनारायण घोष, सोशल साइंटिस्ट,

जीआइजेड संस्था 

श्योपुर, मप्र के बनार, अजनोई, डाबली और झरेर गांव के अधिकांश बोर और कुएं सूख चुके थे, इसलिए इन गांवों में यह प्रयोग किया गया। परिणामों से बेहद खुशी है, सूखे हैंडपंपों के रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम में तब्दील हो जाने के कारण ही दूसरे सूखे हैंडपंप अब पानी दे रहे हैं।

-जयसिंह जादौन, प्रबंधक, गांधी सेवा

आश्रम, श्योपुर


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