कुछ वर्ष बाद डेढ़ हजार अरब रुपये से भी ज्यादा का हो जाएगा दुनिया में ड्रोन का बाजार
ड्रोन का उपयोग लगातार हर क्षेत्र में बढ़ता जा रहा है। आम जीवन के इस्तेमाल से लेकर सैन्य क्षेत्र में इसको इस्तेमाल किया जा रहा है। वर्ष 2019 में इसका वैश्विक बाजार 770 अरब रुपये का था जो आगामी छह वर्ष में बढ़कर 1700 अरब रुपये के पार हो जाएगा।
नई दिल्ली (जेएनएन)। सेना दिवस परेड में शुक्रवार को पहली बार ड्रोन की ताकत का प्रदर्शन किया गया। दुश्मन के ठिकानों पर कहर बनकर टूटने वाले ड्रोन सेना की शान हैं। हालिया दौर में ड्रोन हर सेना के अहम अंग बनते जा रहे हैं। हालांकि, सैन्य गतिविधियों के अलावा विभिन्न शोध गतिविधियों से लेकर फोटोग्राफी तक ड्रोन का खूब इस्तेमाल किया जा रहा है। आइए जानते हैं कि आज कैसी है ड्रोन की स्थिति है और इसका भविष्य कैसा होगा...
अगले कुछ वर्षों में और बड़ा हो जाएगा ड्रोन का बाजार
साल 2019 में वैश्विक सैन्य ड्रोन बाजार 10.53 अरब डॉलर (770 अरब रुपये) का था। अनुमान है कि 2027 तक यह बाजार बढ़कर 23.78 (1,739 अरब रुपये)अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। इस दौरान 12.12 फीसद की कुल वार्षिक वृद्धि दर का अनुमान लगाया गया है। इसके साथ ही 2020-2025 के मध्य ड्रोन का व्यावसायिक बाजार 22.5 अरब डॉलर (1,645 अरब रुपये) से 42.8 अरब डॉलर (3,129 अरब रुपये) होने का अनुमान लगाया गया है। इस दौरान 13.8 फीसद कुल वार्षिक वृद्धि दर का अनुमान है। चीन स्थित डीजेआइ दुनिया में सबसे बड़ी ड्रोन निर्माता कंपनी है। वैश्विक बाजार का 70 फीसद यहीं से आते हैं।
ऐसे जानिए ड्रोन को
साधारण रूप से कहें तो ड्रोन एक उड़ने वाला विमान है, जिसमें पायलट नहीं है। मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) के रूप में ड्रोन आमतौर पर पायलट द्वारा नियंत्रित रोबोट होते हैं। हालांकि पूरी तरह से स्वायत्त ड्रोन विकास के अंतिम चरण में हैं, जिसके बाद ड्रोन की दुनिया और भी बेहतर होगी।
ड्रोन प्रौद्योगिकी का इतिहास
ड्रोन को दो दशक से अधिक समय हो गया है, प्रथम विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और फ्रांस दोनों ने स्वचालित मानव रहित हवाई जहाज विकसित करने पर काम किया था। हालांकि ब्रिटेन ने 1917 में रेडियो से नियंत्रित होने वाले हवाई उड़ान का परीक्षण किया था। दुनिया भर में शौकीनों को लुभाने के साथ तकनीकी रूप से संवेदनशील सैन्य क्षेत्रों तक ड्रोन पहुंच बनाने में कामयाब रहा है। पिछले कुछ वर्षों में ड्रोन तकनीक विकसित और समृद्ध हुई है।
कारगिल युद्ध में ड्रोन ने किया था कमाल
भारत ने पहली बार 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान ड्रोन का इस्तेमाल किया था। इजरायल द्वारा आइएआइ हेरोन भारत को दिए गए थे। उसके बाद से भारतीय सेना इजरायली ड्रोन का इस्तेमाल कर रही है। भारत का रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) सैन्य जरूरतों के लिए कई तरह के ड्रोन विकसित करने में जुटा है। इनमें लक्ष्य, निशांत और रुस्तम शामिल हैं। फिक्की की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में ड्रोन का बाजार 88.57 करोड़ डॉलर (करीब 6,477 करोड़) रुपये का है।
सैन्य ड्रोन है आज और कल की जरूरत
वैश्विक स्तर पर सुरक्षा कई देशों के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है। ऐसे में ड्रोन कई तरह से कारगर है। लक्ष्य का पता लगाने से हमला करने तक इसके कई इस्तेमाल हैं। हालिया दौर में कई अभियानों के दौरान ड्रोन की अहमियत सामने आई है। इससे चालक पर होने वाले करोड़ों के खर्च से बचा जा सकता है और मानव हानि के जोखिम को भी कम किया जा सकता है।