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जवानों को भीषण ठंड से बचाएगा स्पेस हीटिंग डिवाइस, -40 डिग्री में भी बंकर को रखेगा गर्म

स्पेस हीटिंग डिवाइस (Space Heating Devices) का इस्तेमाल भारतीय सेना लद्दाख के ठंड से बचने के लिए कर सकती है। इससे जवानों के टेंट को गर्म करने में मदद मिलेगी। यह प्राकृतिक गैस मिट्टी के तेल या इलेक्ट्रिसिटी से गर्मी पैदा करती है।

By Manish PandeyEdited By: Published: Sun, 10 Jan 2021 03:16 PM (IST)Updated: Sun, 10 Jan 2021 03:16 PM (IST)
डीआरडीओ ने भारतीय सेना के जवानों को ठंड से बचाने के लिए स्पेस हीटिंग डिवाइस विकसित किया है।

नई दिल्ली, एएनआइ। चीन के साथ तनावपूर्ण स्थिति में पूर्वी लद्दाख की जमा देने वाली ठंड में भारतीय सेना के 50 हजार से ज्यादा जवान वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तैनात हैं। इन जवानों को रोजमर्रा की जरूरतों के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने कई ऐसी चीजें विकसित की हैं, जो उन्हें काफी सहूलियत दे रही हैं। इनमें वातावरण को गर्म करने वाला हिम तापक है और बर्फ को पिघलाने वाला डिवाइस भी है।

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हिम तापक हीटिंग डिवाइस एक तरह की बुखारी है। यह डिवाइस पूर्वी लद्दाख, सियाचिन और अन्य ऊंचे इलाकों में तैनात सैनिकों के लिए बनाई गई है। इससे शून्य से 40 डिग्री सेंटीग्रेड नीचे वाले माहौल में रहने की स्थितियां बनाई जा सकती हैं। इसे उस कमरे या बंकर में फिट कर दिया जाता है जहां पर सैनिक रहते हैं। यह जहरीली गैसें पैदा किए बगैर उन्हें गर्म रखता है। इसके लिए डीआरडीओ को 420 करोड़ रुपये का ऑर्डर मिला है। यह डिवाइस जवानों की कार्बन मोनो ऑक्साइड और अग्निकांड से बचाती है। इस डिवाइस को डीआरडीओ की शाखा डिफेंस इंस्टीट्यूट फॉर फिजियोलॉजी एंड एलाइड साइंसेज ने तैयार किया है। यह संस्था असामान्य वातावरण और युद्ध की स्थिति में सैनिकों की क्षमता बढ़ाने वाले उपकरण विकसित करती है।

संस्था ने एलोकल क्रीम भी तैयार की है, जो भीषण ठंड से त्वचा को होने वाले नुकसान और ठंड से शरीर को होने वाली क्षति से बचाती है। संस्था ने फ्लेक्सिबिल वाटर बोटल और सोलर स्नो मेल्टर भी तैयार किया है। ये दोनों चीजें जवानों को अत्यंत ऊंचाई वाले इलाकों में पीने का पानी मुहैया कराती हैं। इनसे जवान बर्फ पिघलाकर उससे बनने वाले पानी को बोटल में रख लेते हैं, जो काफी देर तक काम आता है।

लैंडिंग गेयर और फिल्टर भी विकसित किए

डीआरडीओ ने तापस और स्विफ्ट मानवरहित विमानों (ड्रोन) के लिए अलग होने वाले लैंडिंग गेयर विकसित किए हैं। साथ ही पी-75 पनडुब्बियों के लिए 18 तरह के फिल्टर बनाकर भी नौसेना को सौंपे हैं। जबकि लैंडिंग गेयर एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एस्टाब्लिशमेंट (एडीई) को सौंपे गए हैं। दोनों उपकरण डीआरडीओ की सीवीआरडीई (कॉम्बैट वेहिकिल्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टाब्लिशमेंट) लैब ने विकसित किए हैं।


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