Move to Jagran APP

स्वतंत्रता के महोत्सव पर आनंद और गौरव की भावना से ओतप्रोत डा. मोहनराव भागवत का आलेख...

Swatantrata diwas 2022 कई दशक के संघर्ष और अनगिनत क्रांतिकारियों के साहस के परिणामस्वरूप 15 अगस्त 1947 को हम आत्मसम्मान व स्वाभिमान के साथ देश का वर्तमान व भविष्य गढ़ने और सळ्व्यवस्था स्थापित करने का अधिकार प्राप्त कर सके।

By Dr Mohan Rao BhagwatEdited By: Sanjay PokhriyalPublished: Sun, 14 Aug 2022 11:09 AM (IST)Updated: Sun, 14 Aug 2022 11:09 AM (IST)
स्वतंत्रता के महोत्सव पर आनंद और गौरव की भावना से ओतप्रोत डा. मोहनराव भागवत का आलेख...
स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में डा. मोहनराव भागवत का आलेख..

डा. मोहनराव भागवत। कल (15 अगस्त)भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होंगे, स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के निमित्त समारोह पहले ही शुरू हुए हैं, आगे वर्षभर भी चलते रहेंगे। जितना लंबा गुलामी का यह कालखंड था, उतना ही लंबा और कठिन संघर्ष भारतीयों ने स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु किया। भारतीय जनता का विदेशी सत्ता के विरुद्ध यह संघर्ष भौगोलिक दृष्टि से सर्वव्यापी था। समाज के सब वर्गों में जिसकी जैसी शक्ति रही, उसने वैसा योगदान दिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के सशस्त्र व निशस्त्र प्रयासों के साथ समाज जागृति व परिष्कार के अन्य कार्य भी समाज के व्यापक स्वतंत्रता संघर्ष का भाग बनकर चलते रहे। इन प्रयासों के चलते 15 अगस्त, 1947 को हम भारत को अपनी इच्छानुसार, अपने लोगों के द्वारा चलाने की स्थिति में आ गए।

loksabha election banner

ब्रिटिश राज्यकर्ताओं को यहां से विदाई देकर अपने देश का संचालन अपने हाथ में ले पाए। इस अवसर पर हमें, इस प्रदीर्घ संघर्ष में त्याग तथा कठोर परिश्रम द्वारा, जिन वीरों ने इस स्वतंत्रता को हमारे लिए अर्जित किया, जिन्होंने सर्वस्व को होम कर दिया, प्राणों को भी हंसते-हंसते अर्पित कर दिया, (अपने इस विशाल देश में हर जगह, देश के प्रत्येक छोटे-छोटे भू-भाग में भी कई वीर पराक्रम दिखा गए) उनका पता लगाकर उनके त्याग व बलिदान की कथा संपूर्ण समाज के सामने लानी चाहिए। मातृभूमि तथा देशबांधवों के प्रति उनकी आत्मीयता, सर्वस्व त्याग करने की प्रेरणा तथा उनका तेजस्वी त्यागमय चरित्र आदर्श के रूप में हम सबको स्मरण करना चाहिए, वरण करना चाहिए।

स्वतंत्रता ही प्रथम शर्त

इस अवसर पर हमें अपने प्रयोजन, संकल्प तथा कर्तव्य का भी स्मरण करते हुए उनको पूरा करने के लिए पुन: एक बार कटिबद्ध व सक्रिय होना चाहिए। देश को स्वराज्य की आवश्यकता क्यों है? मात्र सुराज्य से, फिर वह किसी परकीय सत्ता से ही संचालित क्यों न हों, देश और देशवासियों के प्रयोजन सिद्ध क्यों नहीं हो सकते? हम सब नि:संदिग्ध रूप से यह जानते हैं कि यह नहीं हो सकता। स्व की अभिव्यक्ति, जो प्रत्येक व्यक्ति व समाज की स्वाभाविक आकांक्षा है, स्वतंत्रता की प्रेरणा है। मनुष्य स्वतंत्रता में ही सुराज्य का अनुभव कर सकते हैं अन्यथा नहीं। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि प्रत्येक राष्ट्र का उदय विश्व में कुछ योगदान करने के लिए होता है। किसी भी राष्ट्र को वैश्विक जीवन में योगदान कर सकने के लिए स्वतंत्र होना पड़ता है। विश्व में स्व की अभिव्यक्ति द्वारा वह राष्ट्र विश्वभर में योगदान के कर्तव्य का निर्वाह करता है। इसलिए योगदान करने वाले राष्ट्र का स्वतंत्र होना, समर्थ होना, योगदान की पूर्व शर्त है।

समझें सही प्रयोजन

देश की स्वतंत्रता के लिए भारतीय जनमन की जागृति करने वाले, स्वतंत्रता संग्राम में प्रत्यक्ष सशस्त्र अथवा निशस्त्र आंदोलन का मार्ग पकड़कर सक्रिय रहने वाले, भारतीय समाज को स्वतंत्रता प्राप्ति व उस स्वतंत्रता की संभाल के लिए योग्य बनाने का प्रयास करने वाले सभी महापुरुषों ने भारत की स्वतंत्रता का प्रयोजन अन्यान्य शब्दों में बताया है। कवि रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपनी प्रसिद्ध कविता ‘चित्त जेथा भयशून्य उन्नत जतो शिर’ में स्वतंत्र भारत के अपेक्षित वातावरण का ही वर्णन किया है। स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर ने अपनी प्रसिद्ध ‘स्वतंत्रता देवी की आरती’ में स्वतंत्रता देवी के आगमन पर सहचारी भाव से उत्तमता, उदात्तता, उन्नति आदि का अवतरण भारत में अपने आप होगा, ऐसी आशा व्यक्त की है। महात्मा गांधी ने हिंद स्वराज में उनकी कल्पना के स्वतंत्र भारत का चित्र वर्णित किया है तथा डा. बाबासाहेब आंबेडकर ने देश की संसद में संविधान को रखते समय दिए दो भाषणों में भारत की इस स्वतंत्रता का प्रयोजन तथा वह सफल हो, इसके लिए हमारे कर्तव्यों का नि:संदिग्ध उल्लेख किया है।

चिंतन से जानें स्व की परिभाषा

अमृत महोत्सव के इस आनंद और उत्साह से भरे पुण्य पर्व पर, हर्षोल्लासपूर्वक विभिन्न आयोजनों को संपन्न करने के साथ ही हमको अंतर्मुख होकर यह विचार भी करना चाहिए कि हमारी स्वतंत्रता का प्रयोजन यदि भारत के जीवन में ‘स्व’ की अभिव्यक्ति से होने वाला है, तो वह भारत का स्व क्या है? विश्वजीवन में भारत के योगदान के उस प्रयोजन को सिद्ध करने के लिए हमको भारत को किस प्रकार शक्तिशाली बनाना होगा? इन कार्यों को संपन्न करने के लिए हमारे कर्तव्य क्या हैं? उसका निर्वाह करने के लिए समाज को कैसे तैयार किया जाए? 1947 में हमने खुद को प्राणप्रिय भारतवर्ष का जो युगादर्श व तदनुरूप उसका युगस्वरूप खड़ा करने के लिए महत्प्रयासपूर्वक स्वाधीन कर लिया, वह कार्य पूर्ण करने हेतु यह चिंतन तथा हम सबके कर्तव्य की दिशा की स्पष्टता आवश्यक है।

विविधता में है एकता

भारतवर्ष की सनातन दृष्टि, चिंतन, संस्कृति तथा विश्व में अपने आचरण द्वारा प्रेषित संदेश की यह विशेषता है कि वह प्रत्यक्षानुभूत विज्ञानसिद्ध सत्य पर आधारित समग्र, एकात्म है। वह स्वाभाविक ही सर्वसमावेशी है। विविधता को वह अलगाव नहीं, एकात्मता की अभिव्यक्ति मात्र मानती है। वहां एक होने के लिए एक सा होना अविहित है। सबको एक जैसा रंग देना, उसकी अपनी जड़ों से दूर करना, कलह व बंटवारे को जन्म देता है। अपनापन अपनी विशिष्टता पर पक्का रहकर भी अन्यों की विशिष्टताओं का आदर करते हुए सबको एक सूत्र में पिरोकर संगठित एक समाज के रूप में खड़ा करता है। मां भारती की भक्ति हम सबको उसके पुत्रों के नाते जोड़ती है। हमारी सनातन संस्कृति हमें सुसंस्कृत, सद्भावना व आत्मीयतापूर्ण आचरण का ज्ञान देती है। मन की पवित्रता से लेकर पर्यावरण की शुद्धता तक को बनाने बढ़ाने का ज्ञान देती है। प्राचीन काल से हमारी स्मृति में चलते आए हम सबके समान पराक्रमी शीलसंपन्न पूर्वजों के आदर्श हमारा पथनिर्देश कर ही रहे हैं। हम अपनी इस समान थाती को अपनाकर, अपनी विशिष्टताओं सहित, परंतु उनके संकुचित स्वार्थ व भेदभावों को संपूर्ण रूप से त्याग कर, स्वयं केवल देशहित को ही समस्त क्रियाकलापों का आधार बनाएं। संपूर्ण समाज को हम इसी रूप में खड़ा करें, यह समय की अनिवार्यता है, समाज की स्वाभाविक अवस्था भी!

स्वाधीनता की करें सुरक्षा

काल के प्रवाह में प्राचीन समय से चलते आए समाज में रूढ़ि-कुरीतियों की बीमारी, जाति, पंथ, भाषा, प्रांत आदि के भेदभाव, लोकेषणा, वित्तेषणा के चलते खड़े होने वाले क्षुद्र स्वार्थ इत्यादि का मन-वचन-कर्म से संपूर्ण उच्चाटन करने के लिए, प्रबोधन के साथ-साथ स्वयं को आचरण के उदाहरण के रूप में ढालना होगा। अपनी स्वाधीनता की सुरक्षा करने का बल केवल वही समाज धारण करता है जो समतायुक्त व शोषण मुक्त हो। समाज को भ्रमित कर, भड़काकर अथवा आपस में लड़ाकर स्वार्थ का उल्लू सीधा करने वालों अथवा द्वेष की आग को ठंडा करने वाली षड्यंत्रकारी मंडलियां देश में व देश के बाहर से भी सक्रिय हैं। उन्हें यत्किंचित भी अवसर अथवा प्रश्रय न मिल पाए, ऐसा सजग, सुसंगठित, सामथ्र्यवान समाज ही स्वस्थ समाज होता है। आपस में सद्भावना के साथ समाज का नित्य परस्पर संपर्क तथा नित्य परस्पर संवाद फिर से स्थापित करने होंगे।

विधि व आचरण की मर्यादा

स्वतंत्र व प्रजातांत्रिक देश में नागरिकों को अपने प्रतिनिधि चुनकर देने होते हैं। देश का समग्र हित, प्रत्याशी की योग्यता तथा दलों की विचारधारा का समन्वय करने का विवेक, कानून, संविधान तथा नागरिक अनुशासन की सामान्य जानकारी व उनके आस्थापूर्वक पालन का स्वभाव, यह प्रजातांत्रिक रचना की सफलता की अत्यावश्यक पूर्वशर्त है। राजनीतिक हथकंडों के चलते इसमें आया क्षरण हम सबके सामने है। आपस के विवादों में अपनी वीरता को सिद्ध करने के लिए बरता जाने वाला वाणी असंयम (जो अब सामाजिक मंचों व संप्रेषण माध्यमों में शिष्टाचार बनता जा रहा है) भी एक प्रमुख कारण है। हम सभी को ऐसे आचरण से दूर होकर नागरिकता का अनुशासन व कानून की मर्यादा का पालन करना होगा व सम्मान का वातावरण बनाना पड़ेगा। खुद को तथा संपूर्ण समाज को इस प्रकार योग्य बनाए बिना विश्व में कहीं भी किसी भी प्रकार का परिवर्तन न आया, न यशस्वी हुआ। स्व के आधार पर स्वतंत्र देश का युगानुकूल तंत्र, प्रचलित तंत्र की उपयोगी बातों को देशानुकूल बनाकर स्वीकार करना है तो समाज में स्व का स्पष्ट ज्ञान, विशुद्ध देशभक्ति, व्यक्तिगत तथा राष्ट्रीय अनुशासन तथा एकात्मता का चतुरंग सामथ्र्य चाहिए। तभी भौतिक ज्ञान, कौशल व गुणवत्ता, प्रशासन व शासन की अनुकूलता इत्यादि सहायक होते हैं।

स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव हम सभी के लिए कठोर तथा सतत परिश्रम से पाई उस स्थिति का उत्सव है, जिसमें संकल्पबद्ध होकर उतने ही त्याग व परिश्रम से, हमें स्व आधारित युगानुकुल तंत्र के निर्माण द्वारा भारत को परम वैभवसंपन्न बनाना है। आइए, उस तपोपथ पर हर्षोल्लासपूर्वक संगठित, स्पष्ट तथा दृढ़भाव से हम अपनी गति बढ़ाएं।

(लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक हैं)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.