अक्षय तृतीया पर जानें परशुराम के जीवन के अनछुए पहलू, भीष्म के साथ हुआ था महासंग्राम
परशुराम कौन थे उनका कुल क्या था। उनके माता-पिता का क्या नाम था। आदि-आदि। आइए आज हम आपकों इन प्रश्नों का उत्तर देते हैं।
By Ramesh MishraEdited By: Published: Tue, 07 May 2019 04:06 PM (IST)Updated: Tue, 07 May 2019 04:13 PM (IST)
नई दिल्ली, जागरण स्पेशल। रामचरित मानस में धनुष यज्ञ के समय परशुराम-लक्ष्मण संवाद की अति रोचक कथा का वर्णन मिलता है। मानस का जानने और समझने वाले भक्तगण इस संवाद में भक्ति व वीर रस का पान करते हैं। लेकिन क्या हम जानते हैं कि परशुराम का जन्म कब हुआ था। परशुराम कौन थे, उनका कुल क्या था। उनके माता-पिता का क्या नाम था। उन्होंने किस ग्रंथ को लिखा। आदि-अाादि। आइए आज हम आपकों इन प्रश्नों का उत्तर देते हैं।
अक्षया तृतिया के दिन हुआ था परशुराम का जन्म
सात मई को वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया है। इस दिन को अक्षय तृतीया भी कहा जाता है। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि इस तिथि को ही भगवान विष्णु के अवतार परशुराम का जन्म हुआ था। परशुराम के पिता एक महान ऋषि थे। उनका नाक ऋषि जमदग्नि था। उनके माता का नाम रेणुका था। ऋषि जमदग्नि चार पुत्र थे। परशुराम के अलावा रुक्मवान, सुषेणवसु, और विश्वासु उनके भाई थे। परशुराम अष्टचिरंजीवियों में से एक माने गए हैं।
ज्योतिषाचार्य वेद प्रकाश पांडेय ने कहा छठे अवतार थे परशुराम
ज्योतिषाचार्य एवं संस्कृत साहित्य के विद्वान वेद प्रकाश पांडेय ने बताया कि बहृावैवर्त पुराण के अनुसार श्रीहरि विष्णु के छठे अवतार थे। बहृावैवर्त पुराण के अनुसार परशुराम, ऋषि जमदग्नि की चौथी संतान थे। धर्मग्रंथों के अनुसार भृगश्रेष्ठ जमदग्नि द्वारा संपन्न पुन्नेष्टि यज्ञ के फलस्वरूप इंद्र के वरदान से परशुराम उत्पन्न हुए थे। परशुराम जी के जन्म समय को सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है। उन्हें राम के काल में भी देखा गया था और कृष्ण के काल में भी। ऐसा उल्लेख है कि उन्होंने भगवान कृष्ण को सुदर्शन चक्र उपलब्ध करवाया था। कहते हैं कि वे कलिकाल के अंत में उपस्थित रहेंगे। शिव के परम भक्त परशुराम को न्याय का देवता माना जाता है। उन्होंने एकादश छंदयुक्त 'शिव पंचत्वारिंशनाम' स्तोत्र भी लिखा है।
वह शस्त्र व शास्त्र दोनों के ज्ञाता थे। शास्त्रों में यह उल्लेख मिलता है कि परशुराम अपने पिता के बेहद आज्ञाकारी संतान थे। अपने पिता के कहने पर उन्होंने अपनी मां का वध किया था। उन्होंने अपने फरसे से मां का गला काट दिया था। लेकिन पिता का वचन पालन करने के बाद उन्होंने अपनी मां को जीवित करने का वरदान भी पिता से मांगा था।
भीष्म पितामह के साथ भी हुआ था महासंग्राम
ज्यातिषविद् वेद प्रकाश पांडेय के अनुसार महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह परशुराम के शिष्य थे। एेसी कथा मिलती है कि एक बार भीष्म काशीराज की बेटियां अंबा, अंबिका और अंबालिका को अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य से विवाह कराने के लिए उनका हरण कर लाए। तब अंबा ने भीष्म को बताया कि वह राजा शाल्व से प्रेम करती हैं। तब भीष्म ने उसे छोड़ दिया। लेकिन राजा शाल्व ने अंबा को अस्वीकार कर दिया। जब अंबा ने यह चर्चा परशुराम से किया तो उन्होंने भीष्म को विवाह करने के लिए कहा। इस बात को लेकर दोनों मे ठन गई। मामला रण क्षेत्र तक पहुंच गया। दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ। अंत में पितरों की बात मानकर परशुराम ने अपने अस्त्र रख दिए। इस तरह युद्ध में न किसी की हार हुई न किसी की जीत।
अक्षया तृतिया के दिन हुआ था परशुराम का जन्म
सात मई को वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया है। इस दिन को अक्षय तृतीया भी कहा जाता है। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि इस तिथि को ही भगवान विष्णु के अवतार परशुराम का जन्म हुआ था। परशुराम के पिता एक महान ऋषि थे। उनका नाक ऋषि जमदग्नि था। उनके माता का नाम रेणुका था। ऋषि जमदग्नि चार पुत्र थे। परशुराम के अलावा रुक्मवान, सुषेणवसु, और विश्वासु उनके भाई थे। परशुराम अष्टचिरंजीवियों में से एक माने गए हैं।
ज्योतिषाचार्य वेद प्रकाश पांडेय ने कहा छठे अवतार थे परशुराम
ज्योतिषाचार्य एवं संस्कृत साहित्य के विद्वान वेद प्रकाश पांडेय ने बताया कि बहृावैवर्त पुराण के अनुसार श्रीहरि विष्णु के छठे अवतार थे। बहृावैवर्त पुराण के अनुसार परशुराम, ऋषि जमदग्नि की चौथी संतान थे। धर्मग्रंथों के अनुसार भृगश्रेष्ठ जमदग्नि द्वारा संपन्न पुन्नेष्टि यज्ञ के फलस्वरूप इंद्र के वरदान से परशुराम उत्पन्न हुए थे। परशुराम जी के जन्म समय को सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है। उन्हें राम के काल में भी देखा गया था और कृष्ण के काल में भी। ऐसा उल्लेख है कि उन्होंने भगवान कृष्ण को सुदर्शन चक्र उपलब्ध करवाया था। कहते हैं कि वे कलिकाल के अंत में उपस्थित रहेंगे। शिव के परम भक्त परशुराम को न्याय का देवता माना जाता है। उन्होंने एकादश छंदयुक्त 'शिव पंचत्वारिंशनाम' स्तोत्र भी लिखा है।
वह शस्त्र व शास्त्र दोनों के ज्ञाता थे। शास्त्रों में यह उल्लेख मिलता है कि परशुराम अपने पिता के बेहद आज्ञाकारी संतान थे। अपने पिता के कहने पर उन्होंने अपनी मां का वध किया था। उन्होंने अपने फरसे से मां का गला काट दिया था। लेकिन पिता का वचन पालन करने के बाद उन्होंने अपनी मां को जीवित करने का वरदान भी पिता से मांगा था।
भीष्म पितामह के साथ भी हुआ था महासंग्राम
ज्यातिषविद् वेद प्रकाश पांडेय के अनुसार महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह परशुराम के शिष्य थे। एेसी कथा मिलती है कि एक बार भीष्म काशीराज की बेटियां अंबा, अंबिका और अंबालिका को अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य से विवाह कराने के लिए उनका हरण कर लाए। तब अंबा ने भीष्म को बताया कि वह राजा शाल्व से प्रेम करती हैं। तब भीष्म ने उसे छोड़ दिया। लेकिन राजा शाल्व ने अंबा को अस्वीकार कर दिया। जब अंबा ने यह चर्चा परशुराम से किया तो उन्होंने भीष्म को विवाह करने के लिए कहा। इस बात को लेकर दोनों मे ठन गई। मामला रण क्षेत्र तक पहुंच गया। दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ। अंत में पितरों की बात मानकर परशुराम ने अपने अस्त्र रख दिए। इस तरह युद्ध में न किसी की हार हुई न किसी की जीत।
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