बिमारी से बढ़ा वजन निकम्मा किया बचपन
दो छोटी सी लड़कियों को इस भयावह रोग से जूझते देखने का दृश्य बहुत हृदयविदारक है, लेकिन गुजरात के निवासी रमेशभाई नंदवाना की बेटियां योगिता और अमीषा, जो क्रमश: 5 व 3 वर्ष की हैं, इससे बेखबर अक्सर खिलखिलाती दिखती हैं।
नई दिल्ली। दो छोटी सी लड़कियों को इस भयावह रोग से जूझते देखने का दृश्य बहुत हृदयविदारक है, लेकिन गुजरात के निवासी रमेशभाई नंदवाना की बेटियां योगिता और अमीषा, जो क्रमश: 5 व 3 वर्ष की हैं, इससे बेखबर अक्सर खिलखिलाती दिखती हैं। वह प्रेडर-विली सिंड्रोम नामक रोग से जूझ रही हैं जिसमें शरीर बेहिसाब फूल जाता है और व्यक्ति अपने छोटे-छोटे काम करने लायक भी नहीं रहता। इस रोग से जूझ रहा व्यक्ति हर समय भूख से भी बेहाल रहता है। तीन वर्षीय अमीषा और 5 वर्षीय योगिता का वजन क्रमश: 48 किग्रा और 35 किग्रा है। इतना ही नहीं, उनके डेढ़ वर्षीय भाई हर्ष का वजन भी 15 किग्रा है। उनके पिता रमेशभाई एक दिहाड़ी मजदूर हैं और केवल 3000 रुपये प्रतिमाह कमा पाते हैं। ऐसे में अपने बच्चों का पेट भरने की चिंता उन्हें हर समय सताती है। हालांकि उनकी एक छह वर्षीय बेटी भविका भी है, जो हर तरह से सामान्य है।
उम्मीदें बाकी हैं
रमेशभाई के अनुसार जन्म के समय उनकी बेटी योगिता बेहद कमजोर थी। यह देखते हुए उन्होंने उसे अच्छी खुराक देनी शुरू की थी। लेकिन पहले जन्मदिन तक योगिता का वजन बेहद बढ़ चुका था। अमीषा के साथ भी ऐसा ही हुआ था। इसके बाद बेटे के साथ ऐसी ही समस्या देखते हुए उन्होंने डॉक्टरों से संपर्क साधा, लेकिन डॉक्टर उन्हें बड़े अस्पतालों में भेज देते थे। रमेशभाई आज तक हजारों रुपया खर्च चुके हैं, लेकिन बच्चों की हालत में कोई सुधार नहीं आया। उन्होंने कई बार उधार भी लिया है। उनकी पत्नी के अनुसार सबसे पीड़ादायक बात यह है कि वह अपने बच्चों को गोद में नहीं ले सकतीं। अकेले में उन्हें संभालना तो और बड़ी चुनौती होती है। पूरा दिन बच्चे एक ही स्थान पर बैठे रहते हैं। प्रग्नाबेन चाहती हैं कि उनकी बेटियां और बेटा शिक्षा प्राप्त करें।
डॉक्टरों की राय
स्थानीय डॉक्टरों के अनुसार योगिता, अमीषा और हर्ष संभवत: प्रेडर-विली सिंड्रोम नामक रोग से जूझ रहे हैं। इसके कारण लगातार भूख लगना, विकास और समझने की क्षमता में रुकावट आती है। गुजरात के मंदाविया बाल अस्पताल के डॉ. अक्षय मंदाविया के अनुसार बच्चों में यह वसा के असामान्य तरीके से जमा होने का मामला है। सांस ठीक से न ले पाने के कारण इनके मुंह से घरघराने की आवाज आती है, लेकिन रोग के बारे में ठीक से परीक्षण होने पर ही कुछ बताया जा सकता है। इसके बावजूद रमेशभाई अपनी किडनी बेचने की भी सोचते हैं। वह सिर्फ यही चाहते हैं कि उनके बच्चों को सही उपचार मिले।
छह बार दिया जाता है भोजन
रमेशभाई की पत्नी प्रग्नाबेन के अनुसार उनका अधिकांश समय रसोई में ही बीतता है। उनके बच्चे हर समय भोजन की मांग करते हैं और न मिलने पर रोना शुरू कर देते हैं। बच्चों को प्रतिदिन सुबह 6, 10 दोपहर 12:30, 3, शाम 5 और रात 8 बजे खाना खिलाना पड़ता है। रोज उन्हें दर्जनों चपातियां, केले, सब्जी, दूध, लस्सी व बिस्कुट आदि दिए जाते हैं। फिलहाल बच्चों को सीमित खुराक पर रखा गया है जिस कारण वजन कुछ कम होने पर उन्होंने पहली बार चलना भी शुरू किया है।