Move to Jagran APP

इंटरनेट के आसरे डिजिटल होता भारत, विकास में भी निकल सकता है आगे

किसी राजनेता या सेलिब्रिटी का ट्रोल होना या फिर उनके बीच ट्विटर के माध्यम से ‘डिजिटल लड़ाई’ एक सामान्य बात बन चुकी है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 09 Apr 2018 10:55 AM (IST)Updated: Mon, 09 Apr 2018 11:28 AM (IST)
इंटरनेट के आसरे डिजिटल होता भारत, विकास में भी निकल सकता है आगे
इंटरनेट के आसरे डिजिटल होता भारत, विकास में भी निकल सकता है आगे

[शंभु सुमन] इन दिनों स्मार्टफोन का जादू लोगों के सिर पर चढ़कर बोल रहा है। यह अधिकतर लोगों के जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुका है। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत के ट्वीट के अनुसार 150 करोड़ जीबी प्रति महीने मोबाइल इंटरनेट डाटा इस्तेमाल करने के साथ भारत दुनिया का नंबर वन देश बन चुका है। यह आंकड़ा चीन और अमेरिका को मिलाकर भी काफी अधिक है। हालांकि भारत अभी शीर्ष 15 देशों से बाहर है। अब इस संदर्भ में चिंताजनक बात डाटा इस्तेमाल की बढ़ती भूख और उसकी खपत को लेकर है। कारण ज्यादातर लोग फिजूल की बेसिर पैर वाली अधकचरी, विवादित, जालसाजी या रसभरी बातों पर ही केंद्रित हो गए हैं। किसी राजनेता या सेलिब्रिटी का ट्रोल होना या फिर उनके बीच ट्विटर के माध्यम से ‘डिजिटल लड़ाई’ एक सामान्य बात बन चुकी है।

loksabha election banner

यानी कि हर कोई अपना-अपना वजूद स्मार्टफोन के सहारे ही बनाना चाहता है, लेकिन वे इसके अंधेरे से अनजान हैं। यह कहें कि हम सभी डिजिटल इंडिया के साये में अपनी अहमियत और नैतिकता को बेपरदा करने पर आमादा हो चुके हैं। एक बड़ा सवाल प्रतिदिन मिलने वाले डाटा के इस्तेमाल को लेकर यह है कि क्या उसकी उपयोगिता महज तीन-साढ़े तीन घंटे का मनोरंजक वीडियो देखने भर के लिए है या फिर वह दूसरे कामकाज निपटाने में भी उपयोगी साबित हो सकता है। अन्य सवाल यह भी है कि वे कौन सी वजहें हैं, जिससे अधिकतर लोगों ने स्मार्टफोन को महज मनोरंजन का साधन भर बना लिया है। इनके जवाब तलाशने के क्रम में भारतीय समाज में इंटरनेट यूजर की संख्या और उसके स्वरूप पर भी ध्यान देना होगा।

भारतीय कंपनी ‘कंतार आइएमआरबी’ की ताजा रिपोर्ट बताती है कि इंटरनेट यूजर की संख्या इस साल जून तक 50 करोड़ तक हो जाएगी। इनमें शहरी आबादी ग्रामीणों की तुलना में दोगुने से अधिक होगी। इस अंतर को अच्छा नहीं माना जा सकता है। कारण यह स्थिति शहरी और ग्रामीणों के बीच तकनीकी सुलभता की खाई बढ़ाने जैसी होगी। नतीजा ग्रामीण परिवेश पर शहरी जीवनशैली का दबाव बढ़ेगा या फिर ग्रामीणों को डिजिटल साक्षारता का लाभ नहीं मिल पाएगा। इसका नुकसान उन्हें कई मोर्चे पर उठाना पड़ सकता है। वे जानकारी के अभाव में इंटरनेट की दुनिया में ताक लगाए वैसे साइबर चोरों और आपराधिक मनोवृत्ति वाले लोगों के निशाने पर आसानी से आ जाएंगे, जिनके पास कंप्यूटर, कनेक्टिविटी और कंटेंट उपलब्ध हैं।

ऐसे में स्मार्टफोन का इस्तेमाल जाति, धर्म, सेक्स आदि के वर्चस्व वाली कुंठाओं के लिए किया जाना चिंतित करने और मानसिक दिवालियेपन को ही दर्शाता है। इस सिलसिले में सामान्य लोगों के लिए स्मार्टफोन सकारात्मक भूमिका भी निभा सकती है। उसमें उच्च दर्जे के कंप्यूटिंग की सहूलियत है। इस्तेमाल करना काफी सरल है। कमी है तो इस्तेमाल संबंधी सिर्फ साधारण से प्रशिक्षण की, लेकिन यह कौन देगा। इसकी जिम्मेदारी कौन निभाएगा, जिससे अशिक्षित ग्रामीण भी पर्याप्त डिजिटल साक्षरता हासिल कर सकें। कायदे से इस काम में सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिक दल और सरकार को पहल करनी चाहिए।

आज पंचायती राज के जरिये सरकार की पहुंच जब गांव-गांव तक हो चुकी है तो यह काम आसानी से किया जा सकता है। यह बहुत जरूरी है, क्योंकि भारत में 80 फीसद से अधिक की आबादी में डिजिटल साक्षरता की कमी है। उन्हें इसका सही इस्तेमाल सिखाया जाना चाहिए और फिजूल की वैसी बातों से सचेत भी किया जाना चाहिए, जो अनचाहे तौर पर इस्तेमाल कर लिए जाते हैं। यानी जब हमारे पास डाटा इस्तेमाल की सहूलियत मिल गई है तो फिर इसके उपयोग का एक सकारात्मक मकसद होना चाहिए। जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि के क्षेत्र में डाटा इस्तेमाल करने की उपयोगिता पर ध्यान केंद्रित किया जाए।

डाटा लीक की खबरों से उफान पर पहुंचा अविश्वास का माहौल, सचेत रहना जरूरी 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.