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अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे गांवों के लोगों की बेहाल जिंदगी, कभी कुदरत तो कभी पाकिस्तान की मार

लोगों की जिंदगी में कभी कुदरत कहर बरपाती है तो कभी पाकिस्तान की गोलाबारी उनकी मेहनत पर पानी फेर देता है।

By Arti YadavEdited By: Published: Sat, 26 May 2018 08:11 AM (IST)Updated: Sat, 26 May 2018 08:22 AM (IST)
अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे गांवों के लोगों की बेहाल जिंदगी, कभी कुदरत तो कभी पाकिस्तान की मार
अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे गांवों के लोगों की बेहाल जिंदगी, कभी कुदरत तो कभी पाकिस्तान की मार

जम्मू (रोहित जंडियाल)। अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे गांवों के लोगों की जिंदगी में कभी कुदरत कहर बरपाती है तो कभी पाकिस्तान की गोलाबारी उनकी मेहनत पर पानी फेर देता है। लोगों की मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं।

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सीमा से सटे गांव कमोर में बसंतर नदी बहती है। 2014 में आई विनाशकारी बाढ़ ने इस गांव के कई किसानों की जिंदगी बदल दी। पाकिस्तान की गोलाबारी के कारण परिवार सहित घर छोड़ने के लिए विवश हुए 82 वर्षीय दुर्गा दास का कहना है कि उनकी कमाई का एकमात्र साधन खेतीबाड़ी है। वर्ष 2014 में बहुत बाढ़ आई थी। उनकी 45 कनाल जगह इसी बाढ़ में बह गई थी। सिर्फ तीन से चार कनाल ही खेती के लिए बची है। उसमें भी गोलाबारी के कारण खेती नहीं हो पाती है। उन्होंने कहा कि न तो बाढ़ से हुए नुकसान और न ही पाकिस्तान की गोलाबारी से हुए नुकसान का मुआवजा मिल सका है। अब बेटा सेना में है और उसी की कमाई से पूरे घरवालों का पालन-पोषण हो रहा है। कोई भी उनकी हालत को नहीं देखता। इस समय पूरा परिवार राधास्वामी आश्रम में शरण लिए हुए है। इस गांव के कई लोग कैंप में रह रहे हैं। बसंतर में आई बाढ़ के कारण कई लोगों के खेत बह गए थे। बहुत नुकसान हुआ था। मगर किसी ने सहायता नहीं की।

दग गांव के रहने वाले बुजुर्ग कृपा राम का दर्द भी कम होने का नाम नहीं ले रहा है। उनका कहना है कि पूरा परिवार खेती पर ही निर्भर है। मगर उनकी जमीनों पर तारें लगने के कारण वह इस पर खेती नहीं कर पाते हैं। खेतों में कई साल पहले मोटर चलाने के लिए बिजली का कनेक्शन लगाया था। सीमा सुरक्षा बल के पास जगह होने के कारण अब वहां नहीं जाते हैं। मगर बिजली का बिल हर महीने आता है। अब तो बिल भी 50 हजार के पास पहुंच गया है। अगर उनकी जगहों पर तारें बिछाई हैं तो उन्हें उसका मुआवजा मिलना चाहिए, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। राहत शिविर में ऐसे कई सीमांत लोग हैं, जिनकी जगह सीमा के साथ हैं और उन पर तारें बिछाई गई हैं, मगर मुआवजा नहीं मिला है।

किसान जगदीश शर्मा का कहना है कि पहले वह खेती करते थे, मगर जब जमीनें ही नहीं रही तो उन्होंने अपनी दुकान खोल ली। यह भी पाकिस्तान की गोलाबारी के कारण बंद रहती है। सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की शिकायतें हैं कि उनकी समस्याओं को कोई नहीं सुनता। अगर सरकार उन्हें मूलभूत सुविधाएं नहीं दे पाती है तो कम से कम उनकी जमीनों का मुआवजा ही दिया जाए। अगर ऐसे ही गोलाबारी होती रही और सरकार ने उनकी समस्याओं को नहीं सुना तो वे खेतीबाड़ी छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगे।

सरकार नहीं संस्था आ रही काम

पाकिस्तान की गोलाबारी के कारण पलायन करने के लिए विवश हुए लोगों की सहायता के लिए सरकार आगे नहीं आई। लोग ठंडी खुई स्थित राधास्वामी आश्रम में रुके हुए हैं। आश्रम से ही सैकड़ों लोगों को खाने से लेकर ठहरने और स्वास्थ्य की सुविधाएं भी दी जा रही हैं। नेता और अधिकारी आते तो हैं, मगर आश्वासनों के अलावा कुछ नहीं करते। लोगों का कहना है कि नेता और अधिकारी सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए ही आते हैं। लोगों में प्रशासन व सरकार के प्रति रोष है। उनका कहना है कि उन्हें सरकार ने दरबदर कर दिया।


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