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ढाई हजार फीट ऊंची पहाड़ी चोटी पर विराजित हैं ढोलकल के एकदंत, जानिए क्‍यों है मशहूर

इस पर्वत शिखर पर साढ़े तीन फीट ऊंची दुर्लभ गणेश प्रतिमा है। पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार यह प्रतिमा एक हजार वर्ष पुरानी है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Wed, 12 Sep 2018 09:34 PM (IST)Updated: Thu, 13 Sep 2018 01:48 PM (IST)
ढाई हजार फीट ऊंची पहाड़ी चोटी पर विराजित हैं ढोलकल के एकदंत, जानिए क्‍यों है मशहूर
ढाई हजार फीट ऊंची पहाड़ी चोटी पर विराजित हैं ढोलकल के एकदंत, जानिए क्‍यों है मशहूर

दंतेवाड़ा, जेएनएन। छत्तीसगढ़ के बस्तर में समुद्र तल से समुद्र तल से 2592 फीट ऊंची ढोलकल पहाड़ी पर स्थापित गणेश प्रतिमा के दर्शन के लिए हजारों लोग हर साल यहां आते हैं। दंतेवाड़ा से करीब 26 किमी दूर छत्तीसगढ़ के लोह अयस्क केंद्र बैलाडिला के एक पर्वत शिखर को ढोलकल कहा जाता है। इस पर्वत शिखर पर साढ़े तीन फीट ऊंची दुर्लभ गणेश प्रतिमा है। पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार यह प्रतिमा एक हजार वर्ष पुरानी है, जिसे छिंदक नागवंशीय राजाओं ने स्थापित करवाया था। गुरूवार को गणेश चतुर्थी का पर्व शुरू हो रहा है और यहां श्रद्धालुओं का मेला लगने लगा है।

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ट्रेकिंग भी करेंगे लोग
देश- विदेश में ख्यात 11वीं शताब्दी के ढोलकल गणेश दर्शन के साथ इस बार ट्रेकिंग का भी आनंद लोग लेंगे। इतना ही नहीं हेरिटेज वॉक के साथ पहाड़ी के नीचे रात भी गुजारी जा सकती है। जिला प्रशासन और स्थानीय युवाओं के सहयोग से श्रद्धालु और पर्यटकों को मुहैया कराई जाएगी। इस बार गणेश चतुर्थी पर यहां युवाओं का दल ट्रेकिंग भी करेगा। बताया गया कि 13 से 21 सितंबर के बीच ढोलकल पहाड़ी के नीचे स्थानीय युवा गाइड चाय- नाश्ते और भोजन के साथ रात ठहरने की सुविधा भी मुहैया करा रहे हैं।

पर्यटकों के लिए लगाए जा रहे टेंट

यहां करीब एक दर्जन विशेष टेंट लगाया जा रहा है। जहां एक निर्धारित शुल्क के साथ पर्यटक रात ठहर सकते हैं। इसके अलावा देश के विभिन्न् हिस्सों आ रहे युवाओं का ट्रेकिंग भी करेगा। इसमें गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के युवा शामिल होंगे। बताया जा रहा है कि गणेश चतुर्थी के दौरान पर्यटक बारसूर में भी हेरिटेज वाक का भी आनंद लेंगे।

यहां से जुड़ी यह पौराणिक कथा

दंतेवाड़ा के फरसपाल क्षेत्र में यह पौराणिक कथा प्रचलित है कि हजारों साल पहले ढोलकल ढोल के आकार का दिखने वाले पत्थर के ऊपर ही भगवान गणेश और परसुराम का युद्ध हुआ था जिसमें फरसा के वार से गणेशजी का एक दांत टूट गया। इस घटना को चिरस्थायी बनाने के लिए करीब एक हजार साल पहले बस्तर के छिंदक नागवंशी राजाओं ने इस चट्टान पर गणेश प्रतिमा स्थापित कराई और पहाड़ के नीचे की बसती का नाम फरसपाल रखा।

ऐसे आया चर्चा में 
वर्ष 2017 के जनवरी माह में असामाजिक तत्वों ने प्रतिमा को नीचे गिरा दिया था। शुरूआत में प्रतिमा चोरी की बात आई थी, लेकिन फोर्स के जवानों ने नीचे खाई से प्रतिमा के टुकड़ों को एकत्र कर ऊपर लाया। इसके बाद इसे पुरातत्वाविद और विशेषज्ञों ने विशेष लेप के साथ जोड़कर पुन: स्थापित किया। इसी दौरान मीडिया में इसकी चर्चा हुई और ख्याति मिली। खाई में गिरने से प्रतिमा के करीब 52 टुकड़े हो गए थे।

विश्व प्रसिद्ध हैं यह विशाल प्रतिमाएं
बारसूर में एक साथ दो बड़ी गणेश प्रतिमाएं है। बालू पत्थरों से निर्मित इन प्रतिमाओं को दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमाओं में तीसरे नंबर का बताया जाता है। पुरामहत्व की इस प्रतिमा को 11वीं शताब्दी से पहले की बताई जाती है। इसके दर्शन के लिए साल भर श्रद्धालु और सैलानियों का आना-जाना लगा रहता है।


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