कोरोना के चलते एशिया-प्रशांत देशों को हर साल सेहत पर खर्च करने पड़ेंगे 88 करोड़ डॉलर
संयुक्त राष्ट्र ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में विकासशील देशों को कोरोना महामारी के चलते स्वास्थ्य क्षेत्र में हर साल 88 करोड़ डॉलर खर्च करने पड़ेंगे..
नई दिल्ली, पीटीआइ। संयुक्त राष्ट्र ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में विकासशील देशों को कोरोना महामारी के चलते स्वास्थ्य आपात क्षेत्र में हर साल 88 करोड़ डॉलर (करीब 66.76 अरब रुपये) खर्च करने चाहिए। संयुक्त राष्ट्र एशिया प्रशांत क्षेत्र के लिए आर्थिक और सामाजिक आयोग (ईएससीएपी) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के चलते एशिया-प्रशांत क्षेत्र में विकासशाील देशों को लंबे अरसे तक गंभीर आर्थिक और सामाजिक परिणाम भुगतने होंगे।
विभिन्न देशों, राज्यों और शहरों की सीमाएं बंद होने से व्यापार, पर्यटन और अन्य संबंधित आर्थिक योजनाओं को भारी नुकसान होगा। संयुक्त राष्ट्र की क्षेत्रीय इकाई का कहना है कि इन देशों को कोरोना संक्रमण को लेकर अपना खर्च बढ़ाना होगा। साथ ही पर्यावरण परिवर्तन के चलते कार्बन उत्सर्जन पर भी नियंत्रण रखने की जरूरत होगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना की वैश्विक महामारी ने क्षेत्र की आर्थिक स्थिति को एकाएक तबाह कर दिया है। हालांकि विश्व पहली ही मंदी के दौर से गुजर रहा था। इसके बावजूद इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए इन देशों को हर साल स्वास्थ्य के क्षेत्र में 88 करोड़ डॉलर (करीब 66.76 अरब रुपये) खर्च करने पड़ेंगे। इन देशों को भविष्य में स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थितियों के लिए साझा कोष की भी स्थापना करनी चाहिए।
भारत में 40 करोड़ मजदूरों पर संकट
इस बीच संयुक्त राष्ट्र के श्रम निकाय ने चेतावनी दी है कि कोरोना संकट के चलते भारत में लगभग 40 करोड़ मजदूर गरीबी में फंस सकते हैं। यही नहीं अनुमान यह भी है कि इस साल दुनिया भर में 19.5 करोड़ लोग की पक्की नौकरी खो सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने अपनी रिपोर्ट कोरोना संकट को सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद का सबसे भयानक संकट बताया है। आईएलओ के महानिदेशक गाय राइडर ने कहा कि विकसित और विकासशील दोनों तरह के देशों में श्रमिकों और व्यवसायों को बर्बादी का सामना करना पड़ रहा है। इस समय तेजी से निर्णायक फैसलों को लेने की जरूरत है।