बारूद की गंध पर भारी 'मददगार' की महक, कश्मीरियों के लिए फरिश्ता बनी CRPF की हेल्पलाइन
आतंकी हमले में 40 जवानों की शहादत के बावजूद पैदा आक्रोश, तनाव व बदले के लिए उठ रहे ज्वार को मददगार केंद्र में बैठे सीआरपीएफ कर्मियों ने कभी अपनी जिम्मेवारी पर हावी नहीं होने दिया।
नवीन नवाज, श्रीनगर। 'मैं मददगार नियंत्रण कक्ष श्रीनगर से बोल रहा हूं। आपके शहर में बस स्टैंड के पास मोहल्ले में कश्मीर के रहने वाले आदिल और उसके परिवार के पास राशन खत्म हो गया है। कर्फ्यू के कारण बाजार बंद है। कृपया आप इसकी व्यवस्था कर हमें बताएं...।' संबंधित विभाग को उक्त सूचना पहुंचा सीआरपीएफ अधिकारी ने फोन नीचे रखा। इसके बाद दोबारा फोन की घंटी बजी। यह फोन मैसूर से था। फोन करने वाले ने कहा कि पुलिस पूछताछ के लिए ले जा रही है...। यह सुनते ही सीआरपीएफ अधिकारी ने मैसूर में पुलिस के साथ सीधा संवाद किया और उनकी गलतफहमी को दूर किया। फिर सीआरपीएफ अधिकारी ने उक्त युवक से बात की और उसके परिजनों को पूरी बात बताई। यह दृश्य है श्रीनगर में सीआरपीएफ के मददगार केंद्र (हेल्पलाइन सेंटर) का। हर पल यह केंद्र देशभर से कश्मीर के लोगों की शिकायतें सुन उनका समाधान कर रहा है।
पुलवामा के गोरीपोरा आतंकी हमले में 40 जवानों की शहादत के बावजूद पैदा आक्रोश, तनाव और बदले के लिए उठ रहे ज्वार को मददगार केंद्र में बैठे सीआरपीएफ कर्मियों ने कभी अपनी जिम्मेवारी पर हावी नहीं होने दिया। सभी देशभर से कश्मीरी नागरिकों की शिकायतों को न केवल तल्लीनता से सुन रहे हैं, बल्कि यह सुनिश्चित भी कर रहे हैं कि उन तक हर हाल में मदद पहुंचे। इस मददगार हेल्पलाइन की स्थापना सीआरपीएफ ने वर्ष 2016 में कश्मीर से कन्याकुमारी तक कहीं भी किसी भी परिस्थिति में फंसे नागरिकों विशेषकर कश्मीरियों की मदद के लिए की थी। मददगार केंद्र में 20 कर्मी और असिस्टेंट कमांडेंट रैंक के एक अधिकारी 24 घंटे मौजूद रहते हैं, जो फोन की घंटी सुनते ही पूरी तरह सक्रिय हो जाते हैं। मंगलवार को भी 30 से ज्यादा कॉल मददगार नियंत्रण कक्ष में आए। जम्मू से भी कई लोगों ने संपर्क किया।
बीते पांच दिन में बढ़ गई सरगर्मी
मददगार केंद्र श्रीनगर के प्रभारी सह कमांडेंट जुनैद ने दैनिक जागरण के साथ बातचीत में कहा कि बीते पांच दिन में हमारा काम ज्यादा बढ़ गया है। हमारे पास कश्मीर से देश के विभिन्न हिस्सों में पढऩे गए छात्र-छात्राओं और रोजी रोटी कमाने गए कई अन्य लोगों के फोन भी आ रहे हैं। किसी को वहां से सुरक्षित कश्मीर लौटना है तो किसी को हॉस्टल में ही सुरक्षा चाहिए। किसी को पुलिस से डर लग रहा है तो किसी के पास पैसे खत्म हो गए हैं। देहरादून से कुछ छात्रों की सुरक्षित वापसी के लिए हमने वहां की पुलिस से बात की है, मैसूर में तीन नर्सिंग छात्रों का मसला हल किया है। जम्मू में फंसे कुछ कश्मीरियों ने राशन की किल्लत की समस्या बताई है। इसके अलावा हमने कई जगह बीमार कश्मीरियों के लिए दवा और रक्त की व्यवस्था भी की है।
मदद अपनों से मांगी जाती है...
जिन्होंने हमला किया था, वह हमारे दुश्मन हैं। लेकिन जो हमसे मदद मांगते हैं, वह कश्मीरी हमारे भाई और हमारे ही परिवार का हिस्सा हैं। इसलिए उनकी मदद करना हमारा फर्ज है। अगर कश्मीरियों को हम सीआरपीएफ वालों से कोई दुश्मनी होती तो उन्हें हमारी हेल्पलाइन 14411 और एसएमएस के लिए नंबर 7082814411 कतई याद नहीं होती। मुसीबत में लोग दुश्मन से नहीं अपनों से ही मदद मांगते हैं।
-जुनैद, मददगार केंद्र श्रीनगर के प्रभारी सह कमांडेंट