अनुभव की जमीन छोटी होने के बावजूद कम उम्र में ही दुनिया में मचा रहे धूम
माना जाता है कि उम्र के साथ आए अनुभवों से ही विचार ठोस आकार लेते हैं, जो शब्द बनकर किसी भी लेखक की कहानी या कविता में उतरते हैं।
[स्मिता श्रीवास्तव]। माना जाता है कि उम्र के साथ आए अनुभवों से ही विचार ठोस आकार लेते हैं, जो शब्द बनकर किसी भी लेखक की कहानी या कविता में उतरते हैं। पर दिलचस्प यह है कि इन दिनों कम उम्र की ऐसी कई प्रतिभाएं लेखन के क्षेत्र में आ रही हैं, जो अनुभव की जमीन छोटी होने के बावजूद रोचक और प्रेरक किताबें लिखकर खूब नाम कर रही हैं...
पंडित मदन मोहन मालवीय जब इलाहाबाद जिला स्कूल पढ़ने गए, तो उन्होंने ‘मकरंद’ उपनाम से कविताएं लिखनी शुरू कीं। उस समय समसामयिक घटनाओं पर लिखी उनकी कविताएं पत्र- पत्रिकाओं में खूब छपतीं, जिन्हें लोग चाव से पढ़ते। मालवीय जी की तरह जर्मनी की एन फ्रैंक 13 वर्ष की उम्र से ही अपने और अपने देशवासियों की पीड़ा एक डायरी में अंकित करने लगी थीं, जो बाद में ‘द डायरी ऑफ ए यंग गर्ल’ नाम से विश्व प्रसिद्ध हो गई। दोस्तो, प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती है। इसलिए ताज्जुब नहीं कि इन दिनों कम उम्र में ही बच्चे या किशोर लेखन शुरू कर दे रहे हैं।
हालांकि चर्चित बेस्टसेलर राइटर्स मानते हैं कि अच्छा और उपयोगी लिखने से पहले अलग-अलग विषयों पर पुस्तकों का अध्ययन भी बहुत जरूरी होता है। दरअसल, अलग-अलग लेखकों के नॉवेल्स या दूसरी किताबों के पढ़ने से न सिर्फ लेखन के नए-नए आइडियाज मिलते हैं, बल्कि यह भी पता चलता है कि किसी भी कहानी या फिर लेखन की दूसरी विधाओं को लिखने की शळ्रुआत किस तरह करते हैं या मिड बॉडी किस तरह क्रिएट करते हैं? कन्क्लूजन या अंत किस तरह का हो सकता है, इसकी भी जानकारी मिलती है।
सबसे कम उम्र के लेखक
4 वर्ष के अयान गोगोई गोहैन को जब भी मम्मा-पापा अक्षर ज्ञान के लिए किताबें पढ़ने को कहते, तो वे अपनी लिखी किताब पढ़ने की बात कहते। अयान रोज अपनी दिनचर्या के एक सुंदर अनुभव को रिकॉर्ड कर अपने दादाजी को वाट्सएप पर भेजा करते और उन अनुभवों को किताब में ढालने का आग्रह करते। कुछ दिनों में ही उन्होंने गूगल पर एक ऐसा एप ढूंढ़ लिया, जो स्पीच को वर्ड में कन्वर्ट करता है। इसके बाद अयान अपने रोज के अनुभवों को रिकॉर्ड कर शब्दों में बदलने लगे। उनकी मां संगीता बताती हैं कि जब अयान के 30 रिकॉर्डेड स्पीच शब्दों में कन्वर्ट हो गए, तो उन्होंने दो-तीन प्रकाशकों से संपर्क किया।
ऑथर्स प्रेस पब्लिकेशन ने सबसे पहले अयान के अनुभवों में व्याकरण की गलतियों को ठीक किया और फिर ‘हनीकॉम्ब’ नाम से अयान की किताब प्रकाशित की। अयान अब संभवत: भारत के सबसे कम उम्र के लेखक बन गए हैं। अयान ने अपनी स्टोरी के हिसाब से चित्र भी बनाए थे, जिन्हें उनकी किताब में शामिल किया गया है। अब पांच वर्ष के हो चुके अयान कहते हैं, ‘मैं आगे भी किताब लिखना चाहता हूं। इसके लिए मैं सामग्री इकट्ठा कर रहा हूं।’ अयान का नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज है, जो देश में असाधारण उपलब्धियां हासिल करने वालों के नाम अपने रिकॉर्ड में दर्ज करता है।
काम आए डायरी के शब्द
15 साल के अभिनव रॉय और 12 वर्ष के आयुष रॉय भाई हैं। दोनों ने कम उम्र में लेखन की शुरुआत कर दी है। अभिनव ने स्कूल की रोबोट प्रतियोगिता में भाग लिया और उसके रोचक अनुभवों पर एक किताब लिखी ‘रोब्रो’। वहीं आयुष ने अपने आसपास के परिवेश के अनुभवों के आधार पर ‘गीगी गिलहरी’ और ‘रोशनी वाली गेंद’ किताबें लिखी हैं। अभिनव कहते हैं, ‘मां-पापा बचपन से हम लोगों को हमेशा एक डायरी साथ रखने और उसमें अपने अनुभवों को लिखने के लिए कहते। इन्हीं अनुभवों के आधार पर हमारी किताब प्रकाशित हुई।’आयुष कहते हैं,‘मुझे क्रिकेट खेलने का शौक है। टाइम मैनेज कर मैं न सिर्फ लेखन, बल्कि क्लास की पढ़ाई करता हूं और क्रिकेट भी खेलता हूं। यहां तक कि परीक्षा के दिनों में भी मैं थोड़ा बहुत लिख लेता हूं।’ बेस्टसेलर लेखिका अनुराधा बेनीवाल कहती हैं कि अपनी पसंद का काम करने के लिए टाइम मैनेजमेंट पहली शर्त है।
इमेजिनेशन के लिए जरूरी नहीं बड़ी उम्र का होना
‘ट्रेजर ऑफ शॉर्ट स्टोरीज’ किताब में 14 छोटी कहानियां हैं। इसे लिखा है 10 वर्ष की अनंतिनी ने। अनंतिनी बताती हैं, ‘इमेजिनेशन के लिए बड़ी उम्र का होना जरूरी नहीं है। मैंने जो ऑब्जर्व किया और मेरे जो व्यक्तिगत अनुभव रहे, उन्हें ही मैंने इमेजिनेशन के साथ मिक्स कर कहानियां लिखीं।’ सेलिब्रिटी राइटर चेतन भगत इस बात पर जोर देते हैं कि लिखने से पहले पढ़ना बहुत जरूरी होता है। छठी क्लास में पढ़ने वाली अनंतिनी नॉवेल्स खूब पढ़ती हैं। इससे उन्हें यह पता चल पाया कि पाठक के सामने कहानियों को किस तरह पेश करना चाहिए। अनंतिनी की मां नयनतारा उन्हें लिखने से मना करती थीं, लेकिन वे कोर्स की पढ़ाई के बाद कहानियां लिखतीं। अनंतिनी ने अपनी किताब के लगभग 21 हजार शब्दों को खुद टाइप किया।
आइडिया को ढाला किताबों में
‘ए सेलिब्रेशन इन ट्रिब्यूलेशन’ यानी ‘पीड़ा में उत्सव’। किताब का ऐसा गंभीर नाम देख आप लेखक के बड़ी उम्र के होने का अनुमान लगा सकते हैं, पर इस किताब को 16 साल के किशोर यश तिवारी ने मात्र 22 दिनों में लिख लिया। यश कहते हैं,‘यह एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी पर आधारित फिक्शन है। मैं अपनी किताब के जरिए एक ऐसी डिजीज को हाईलाइट करना चाहता था, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।’ यश को सामाजिक मुद्दों पर लिखने का पैशन है। उनके दो रिसर्च पेपर आ चुके हैं। इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट की ओर से यश को यंगेस्ट रिसर्च पेपर प्रजेंटर का अवॉर्ड भी मिल चुका है। लिखने से पहले अध्ययन को जरूरी मानते हैं यश, पर उन्होंने कोर्स की किताबों के अलावा अब तक कोई भी नॉवेल नहीं पढ़ा है। उनके दिमाग में जो भी आइडिया आए, उसे ही उन्होंने नॉवेल के रूप में ढाल दिया।
धारावाहिक ‘संकट मोचन महाबली हनुमान’ में बाल हनुमान बने ईशांत भानुशाली सातवीं कक्षा के छात्र हैं। उन्हें साइंस से खासा लगाव है। इन दिनों वह धारावाहिक ‘पापा बाई चांस’ में नटखट बलविंदर चटवाल उर्फ ‘उल्लू’ की भूमिका निभा रहे हैं। ईशांत बताते हैं,‘एक्टिंग का शौक मुझे बचपन से रहा है। मुझे किरदार के लिए ज्यादा तैयारी नहीं करनी पड़ती है। निर्देशक सर कहते हैं कि अगर डायलॉग लंबा हो और कोई गड़बड़ हो जाए तो घबराना नहीं। सीन को समझना बेहद जरूरी है। अगर सीन को समझ जाओगे, तो बेहतर परफॉर्म करोगे। मैं इन बातों का हमेशा ध्यान रखता हूं। मेरा पहला शो ‘साथ निभाना साथिया’ था। तब मेरी उम्र छह साल थी। उसमें मेरी छोटी बहन ने भी काम किया था।
मेरी प्रिंसिपल मैम मुझे प्यार से अब भी हनुमान ही बुलाती हैं। मैंने सलमान खान के साथ ‘बजरंगी भाईजान’में भी काम किया था। वह बच्चों से बहुत प्यार से बात करते हैं। मैंने उनके साथ फोटो खिंचवाने का आग्रह किया था। छोटा होने के कारण मैंने उनसे कुछ नहीं पूछा था। सेट पर ही हमारी ट्यूशन टीचर हमें पढ़ाने के लिए मौजूद रहती हैं। बीच-बीच में ब्रेक मिलने पर वह हमें पढ़ाती हैं। साइंस मेरा पसंदीदा विषय है, जबकि इतिहास और मराठी कठिन लगता है। मराठी में अक्सर कुछ शब्द याद नहीं रहते। इतिहास में तारीखें और नाम याद करना कठिन होता है। एक्टिंग के अलावा मुझे फुटबाल, डांस और स्वीमिंग पसंद है। क्रिकेट में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है। बड़े होकर मैं एक्टर के साथ साइंटिस्ट बनना चाहूंगा।’
प्रिंसिपल मैम भी बुलाती हैं हनुमान : ईशांत भानुशाली
उम्र नहीं, कहानी रखती है मायने
उम्र नहीं, कहानी रखती है मायने उम्र नहीं, लेखक ने क्या लिखा है, यह मायने रखता है। मैंने भी छोटी उम्र के कुछ बच्चों को लिखने के लिए प्रोत्साहित किया, क्योंकि उनकी कहानी बहुत दमदार थी।
-अशोक बैंकर, साहित्यकार
लिखने से पहले पढ़ना जरूर
लिखने से पहले पढ़ना जरूरी कम उम्र में लिखकर उसे पब्लिश कराना जल्दबाजी है। यदि किताब नहीं चलती है, तो आप निराश हो जाते हैं। इसलिए आपको किताबें खूब पढ़ने के बाद ही लेखन की शुरुआत करनी चाहिए।
-चेतन भगत, जाने-माने अंग्रेजी लेखक
पढ़ने से सोच होती है व्यापक
पढ़ने से सोच होती है व्यापक लिखने के साथ-साथ पढ़ना बेहद जरूरी है। पढ़ने से हमारी सोच व्यापक होती है। नया अनुभव देती है। इसलिए जितना संभव हो सके, उतना पढ़ें।
-साहित्य सागर पांडे, जागरण बेस्टसेलर राइटर
प्रकाशन हुआ आसान
प्रकाशन हुआ आसान पहले की अपेक्षा इन दिनों किताबों का प्रकाशन आसान हुआ है।
-अमीश त्रिपाठी, बेस्टसेलर राइटर