...तो फिर जमेगी आर्कटिक की बर्फ, डिजाइनरों ने खोजा नायाब तरीका, जानें कैसे करेगा काम
इंडोनेशियाई डिजाइनर्स के मुताबिक आर्कटिक की पिघलती बर्फ को दोबारा से जमाया जा सकेगा। कैसे होगा यह संभव इस बारे में जानने के लिए पढ़ें यह दिलचस्प रिपोर्ट...
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। दुनियाभर के वैज्ञानिकों के बीच एक नहीं बहस चल रही है कि जिस तरह धरती पर कॉर्बन डाइऑक्सइड को कम करने के लिए पेड़ लगाए जा रहे हैं, क्या उसी तरह कोई ऐसा रास्ता है जिससे आर्कटिक की पिघलती बर्फ को दोबारा से जमाया जा सकेगा..? इंडोनेशियाई डिजाइनर्स के मुताबिक, ऐसा संभव है। आइसबर्ग (समुद्र में तैरती बर्फ की चट्टान) बनाने वाली पनडुब्बी से ऐसा किया जा सकता है। कैसे होगा यह संभव इस बारे में जानने के लिए पढ़ें यह दिलचस्प रिपोर्ट...
आइसबर्ग बनाने में सक्षम है पनडुब्बी
इंटरनेशनल डिजाइन प्रतियोगिता में इन डिजाइनर्स के इस प्रस्ताव को दूसरा स्थान हासिल हुआ। इंडोनेशियाई डिजाइनर्स की अगुआई करने वाले 29 साल के आर्किटेक्ट फारिस रज्जाक ने बताया कि बर्फ बनाने के लिए सबमर्सिबल लगी पनडुब्बी का इस्तेमाल किया जाएगा। यह पनडुब्बी 16 फीट मोटे और 82 फीट चौड़े हेक्सागोनल आइसबर्ग बनाने में सक्षम होगी।
इस तरह से बनाया जाएगा आइसबर्ग
पनडुब्बी को समुद्र की तलहटी तक ले जाया जाएगा, जहां उसमें पानी भरा जाएगा। पानी भरने के बाद एक प्रक्रिया से उसमें से नमक अलग कर लिया जाएगा। इसके बाद पानी को -15 डिग्री सेल्सियस तापमान तक पर जाएगा। यह प्रक्रिया जिस कंटेनर में की जाएगी, उसे सूर्य की किरणों से बचाया जाएगा। डिजाइनर्स के मुताबिक, कंटेनर में एक महीने अंदर हेक्सागोनल आकार का आइसबर्ग अपने आप तैयार हो जाएगा। इसे आइस बेबी नाम दिया गया है।
सवाल भी उठे
आइसबर्ग बनाने का यह डिजाइन फिलहाल शुरुआती स्थिति में है। डिजाइनर्स ने यह नहीं बताया कि इस काम के लिए उनको ऊर्जा कहां से मिलेगी? कई वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि क्या पनडुब्बी इस थ्योरी पर काम कर सकती है। ब्रिटेन के लीड्स विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एंड्रयू शेफर्ड के मुताबिक, यह आइडिया कमाल का है। अगर हम ऐसा कर सके तो इससे धरती के तापमान पर भी असर पड़ेगा। इससे बर्फ पिघलना और समुद्र तल का बढ़ना रुकेगा, लेकिन बीते 40 साल में जितनी बर्फ पिघली है, उसकी भरपाई करने के लिए करीब एक करोड़ पनडुब्बियों की जरूरत होगी।
अलग तरह से करना होगा काम
फारिस कहते हैं, आर्कटिक की बर्फ हर साल कम हो रही है। इसे भरने के लिए हमें नए तरीकों पर विचार करना होगा। अमीर देश तो पिघलने से रोकने के लिए सी-वॉल (समुद्र में दीवार) पर खर्च कर रहे हैं, लेकिन गरीब देशों के पास समुद्र का स्तर बढ़ने से रोकने के लिए कोई बजट नहीं है। समस्या से निपटने के लिए हमें साथ मिलकर खड़ा होना होगा। इसके लिए अलग नजरिए से सोचना होगा।
तेजी से पिघल रही है बर्फ
130 देशों के 11 हजार वैज्ञानिकों के मुताबिक, आर्कटिक में दुनिया का सबसे पुराना और स्थिर बर्फ वाला इलाका द लास्ट आइस एरिया तेजी से पिघल रहा है। द लास्ट आइस एरिया में 2016 में बर्फ की चादर 41,43,980 वर्ग किमी थी, जो अब घटकर 9.99 लाख वर्ग किमी ही बची है। अगर इसी गति से यह पिघलती रही तो 2030 तक यहां से बर्फ पिघल कर खत्म हो जाएगी। 1970 के बाद से अब तक आर्कटिक में करीब पांच फीट बर्फ पिघल चुकी है यानी हर दस साल में करीब 1.30 फीट बर्फ पिघल रही है। ऐसे में समुद्र के जलस्तर के बढ़ने की आशंका ज्यादा है।