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वंशज बोले -वोट बैंक के लिए टीपू सुल्तान को निशाना बनाया जाना शर्मनाक, पीएम को लिखेंगे पत्र

टीपू सुल्तान के वंशज मोहम्मद शाहिद का कहना है कि सुल्तान एक स्वतंत्रता सेनानी थे जिनको वोटबैंक की राजनीति के लिए निशाना बनाया जाना शर्मनाक है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Thu, 24 Oct 2019 10:40 PM (IST)Updated: Thu, 24 Oct 2019 11:30 PM (IST)
वंशज बोले -वोट बैंक के लिए टीपू सुल्तान को निशाना बनाया जाना शर्मनाक, पीएम को लिखेंगे पत्र
वंशज बोले -वोट बैंक के लिए टीपू सुल्तान को निशाना बनाया जाना शर्मनाक, पीएम को लिखेंगे पत्र

 जागरण संवाददाता, कोलकाता। टीपू सुल्तान के वंशज मोहम्मद शाहिद का कहना है कि सुल्तान एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनको वोटबैंक की राजनीति के लिए निशाना बनाया जाना शर्मनाक है। भाजपा नेता के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि इतिहास को कभी भी नष्ट नहीं किया जा सकता है। मैं इस मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखूंगा। मानहानि का केस भी दायर करूंगा।

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टीपू सुल्तान के नाम को हटाने का प्रस्ताव 

दरअसल, शाहिद का यह बयान बंगाल के मादिकेरी के विधायक और भाजपा नेता अप्पाचू रंजन द्वारा शिक्षा मंत्री एस सुरेश कुमार को लिखे एक पत्र की पृष्ठभूमि में दिया गया है। विधायक ने शिक्षा मंत्री को पत्र लिखकर इतिहास की पाठ्यपुस्तकों से टीपू सुल्तान के नाम को हटाने का प्रस्ताव दिया है। इसके जवाब में उनके वंशज ने कहा कि कुछ लोग वोट पाने के लिए सिर्फ वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं, जो काफी शर्मनाक है। लोग इस बात से इन्कार नहीं कर सकते कि टीपू सुल्तान एक स्वतंत्रता सेनानी थे। इतिहास ऐसा ही है और भविष्य में भी ऐसा ही रहेगा। उन्होंने आगे कहा कि वह इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखेंगे और टीपू सुल्तान को निशाना बनाने वालों के खिलाफ मानहानि का मुकदमा भी दायर करेंगे।

इतिहास को गलत तथ्यों के साथ नहीं लिखा जाए

गौरतलब है कि कुमार को लिखे पत्र में रंजन ने कहा है कि टीपू सुल्तान को एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में चित्रित किया गया है, जबकि इतिहास को गलत तथ्यों के साथ नहीं लिखा जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा है कि टीपू कोडगु, मंगलुरु और राज्य के अन्य हिस्सों में अपने क्षेत्र का विस्तार करने को आए थे। वह यहां सिर्फ लोगों को अपने धर्म में शामिल करने और अपने राज्य का विस्तार करने को आए थे। रंजन ने आगे आरोप लगाया कि टीपू का कन्नड़ के लिए कोई सम्मान नहीं था। उनकी प्रशासनिक भाषा फारसी थी। उन्होंने कई स्थानों के नाम बदल दिए थे।


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