नोट बंदी पर बदले अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के सुर, अभी तो नुकसान ज्यादा
एजेंसियां मानती हैं कि लंबी अवधि में यह फैसला अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद होगा लेकिन यह किस तरह से होगा, यह कोई बताने को तैयार नहीं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नोट बंदी के फैसले के दो हफ्ते बीतते बीतते अंतरराष्ट्रीय आर्थिक एजेंसियों के सुर भी बदलने लगे हैं। वैसे सरकार यह मानने को तैयार नहीं है कि नोट बंदी के किसी भी तरफ से अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है लेकिन एक के बाद एक अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां इस तर्क को सुनने को तैयार नहीं दिखती हैं।
एजेंसियां मानती हैं कि लंबी अवधि में यह फैसला अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद होगा लेकिन यह किस तरह से होगा, यह कोई बताने को तैयार नहीं। अधिकांश एजेंसियां मानती हैं कि फिलहाल तो मांग में कमी होने से उद्योग जगत व अर्थव्यवस्था को काफी चुनौती भरे दिनों का सामना करना पड़ेगा।
क्रेडिट स्विस : बेहद प्रतिष्ठित एजेंसी क्रेडिट स्विस ने कहा है कि भारत को बाजार से 14.18 लाख करोड़ रुपये को खारिज करने के बाद प्रचलन में सिर्फ 1.50 लाख करोड़ रुपये की राशि ही बची है। 22 अरब नोट प्रचलन से बाहर किये गये हैं। इसके बदले पिछले शुक्रवार तक सिर्फ 150 करोड़ नोट ही मुद्रित किये गये है। बाजार में जो नए नोट डाले जा रहे हैं उनमें 2,000 रुपये के नोटों की संख्या ज्यादा है जिससे समस्या को सुलझाने में खास मदद नहीं मिल रही है। रिपोर्ट के मुताबिक आरबीआइ सिर्फ रोजाना 4-5 करोड़ नए 500 के नोट ही छाप पा रहा है जो जरुरत को देखते हुए बेहद कम है। ऐसे में हालात के सुधरने के आसार कम ही है।
ड्यूश बैंक : ड्यूश बैंक ने नोट बंदी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था पर जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जब रिटेल क्षेत्र में मांग में भारी कमी हो रही है तो यह कहना मुश्किल है कि अर्थव्यवस्था को इससे फायदा होने जा रहा है। नवंबर, 2016 से ही अधिकांश उपभोक्ता वर्ग में गिरावट है। रियल एस्टेट क्षेत्र में सबसे ज्यादा कमी देखी जा रही है। एजेंसी ने अनुमान लगाया है कि भारत में तमाम उपभोक्ता क्षेत्र में मांग तीन फीसद तक घट सकती है। इससे अगले छह महीने के भीतर भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर औसतन छह फीसद रहेगी। सनद रहे कि केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष के दौरान 7.6 फीसद की आर्थिक विकास दर का लक्ष्य तय किया है।
दुनिया की दो बड़ी रेटिंग एजेंसियां मूडीज और स्टैंडर्ड एंड पुअर्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि आगे चल कर नोट बंदी का फैसला भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है लेकिन इसके तत्कालिक असर काफी परेशान करने वाले होंगे। देश के बड़े उद्योग चैंबर भी ऐसा ही विचार रखते हैं। भारत की आर्थिक सलाहकार संस्थानों की तरफ से भी ऐसी ही बातें सामने आई हैं। क्रिसिल ने भी चार तिमाहियों तक मांग में कमी का असर होने की बात कही है।
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