पुंछी समिति की रिपोर्ट, यूपी समेत तीन राज्य अड़े तो मान गया केंद्र
अंतरराज्यीय परिषद की स्थायी समिति की शुक्रवार को हुई बैठक में जस्टिस पुंछी समिति की सिफारिशों पर विस्तार से चर्चा हुई।
By Manish NegiEdited By: Published: Fri, 25 May 2018 11:21 PM (IST)Updated: Fri, 25 May 2018 11:21 PM (IST)
style="text-align: justify;">नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। उत्तर प्रदेश समेत तीन राज्य अड़े तो केंद्र सरकार मान गई। पर्यावरण व पारस्थितिकी जैसे अहम मसले को समवर्ती सूची से निकालकर केंद्रीय सूची में डालने की सिफारिश पर राज्य सरकारों ने सख्त आपत्ति जताई। अंतरराज्यीय परिषद की स्थायी समिति की शुक्रवार को हुई बैठक में जस्टिस पुंछी समिति की सिफारिशों पर विस्तार से चर्चा हुई। लेकिन स्थायी समिति के सदस्य राज्यों ने कई मुद्दों पर कड़ा विरोध जताया, जिससे उसे आगामी अंतरराज्यीय परिषद की बैठक में फैसला लेने के लिए टाल दिया गया।
स्थायी समिति की बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने की। बैठक में उनके साथ केंद्रीय रेल व वित्तमंत्री पीयूष गोयल, सड़क परिवहन व जलसंसाधन मंत्री नीतिन गडकरी व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने हिस्सा लिया। स्थायी समिति के सदस्यों में आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान व त्रिपुरा के प्रतिनिधि बैठक में मौजूद थे। बैठक में केंद्रीय नेता पुंछी समिति की 273 सिफारिशों को आधार बनाकर पर्यावरण व पारिस्थितिकी (इकोलॉजी) को केंद्रीय सूची में शामिल करने पर जोर दे रहे थे। राज्यों के विरोध के बाद इस मुद्दे को अंतरराज्यीय परिषद की बैठक में चर्चा के लिए छोड़ दिया गया।
राज्यों का विरोध इस बात पर था कि ईज आफ डुईंग बिजनेस जैसी नीति बेमानी हो जाएगी। राज्यों के निवेश रुक जाएंगे, हर छोटी बड़ी परियोजना के लिए दिल्ली का चक्कर काटना होगा। लेकिन केंद्रीय नेताओं का तर्क था कि पर्यावरण एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा हो गया है, जिस पर केंद्र को फैसला लेना होता है। समवर्ती सूची में होने की वजह से कई तरह की मुश्किलें पेश आती है। उत्तर प्रदेश का तर्क था कि उसके यहां जेवर एयरपोर्ट, कई शहरों में मेट्रो रेल, बुंदेलखंड डिफेंस कॉरिडोर, पूर्वाचल व बुंदेलखंड एक्सप्रेस जैसी परियोजनाओं के शुरु होने में विलंब हो सकता है।
राज्यों ने तर्क दिया कि केंद्र इसके लिए गाइड लाइन बनाए, जिसे राज्य स्वीकार करेंगे। अध्यक्षता कर रहे राजनाथ सिंह ने भी राज्यों के साथ सहमति जताई और मामले को परिषद की बैठक तक के लिए टाल दिया गया। दूसरा मुद्दा पीपीपी मॉडल का था, जिसके लिए पंुछी समिति ने कई सिफारिशें की हैं। राज्यों में इसके लिए रेगुलेटर बनाने का प्रस्ताव है। जितनी परियोजनाएं उतने रेगुलेटर। इस पर भी राज्यों ने सवाल खड़े किये। उनका कहना था कि सरकारें चुनकर आती हैं, फैसला लेने का अधिकार उसे होना चाहिए। इसके बजाय रेगुलेटर को नहीं। राज्यों की इस राय से केंद्र के नेता भी सहमत हुए।
आंध्र प्रदेश की ओर से चौदहवें वित्तायोग के आधार पर राज्यों को मिलने वाली धनराशि और केंद्रीय योजनाओं के बीच तालमेल को लेकर सवाल उठाये गए। इस पर वित्तमंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि इससे राज्यो को पहले के मुकाबले ज्यादा धनराशि मिल रही है। फिर भी कोई दिक्कत है तो राज्य चर्चा कर सकते हैं।
स्थायी समिति की बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने की। बैठक में उनके साथ केंद्रीय रेल व वित्तमंत्री पीयूष गोयल, सड़क परिवहन व जलसंसाधन मंत्री नीतिन गडकरी व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने हिस्सा लिया। स्थायी समिति के सदस्यों में आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान व त्रिपुरा के प्रतिनिधि बैठक में मौजूद थे। बैठक में केंद्रीय नेता पुंछी समिति की 273 सिफारिशों को आधार बनाकर पर्यावरण व पारिस्थितिकी (इकोलॉजी) को केंद्रीय सूची में शामिल करने पर जोर दे रहे थे। राज्यों के विरोध के बाद इस मुद्दे को अंतरराज्यीय परिषद की बैठक में चर्चा के लिए छोड़ दिया गया।
राज्यों का विरोध इस बात पर था कि ईज आफ डुईंग बिजनेस जैसी नीति बेमानी हो जाएगी। राज्यों के निवेश रुक जाएंगे, हर छोटी बड़ी परियोजना के लिए दिल्ली का चक्कर काटना होगा। लेकिन केंद्रीय नेताओं का तर्क था कि पर्यावरण एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा हो गया है, जिस पर केंद्र को फैसला लेना होता है। समवर्ती सूची में होने की वजह से कई तरह की मुश्किलें पेश आती है। उत्तर प्रदेश का तर्क था कि उसके यहां जेवर एयरपोर्ट, कई शहरों में मेट्रो रेल, बुंदेलखंड डिफेंस कॉरिडोर, पूर्वाचल व बुंदेलखंड एक्सप्रेस जैसी परियोजनाओं के शुरु होने में विलंब हो सकता है।
राज्यों ने तर्क दिया कि केंद्र इसके लिए गाइड लाइन बनाए, जिसे राज्य स्वीकार करेंगे। अध्यक्षता कर रहे राजनाथ सिंह ने भी राज्यों के साथ सहमति जताई और मामले को परिषद की बैठक तक के लिए टाल दिया गया। दूसरा मुद्दा पीपीपी मॉडल का था, जिसके लिए पंुछी समिति ने कई सिफारिशें की हैं। राज्यों में इसके लिए रेगुलेटर बनाने का प्रस्ताव है। जितनी परियोजनाएं उतने रेगुलेटर। इस पर भी राज्यों ने सवाल खड़े किये। उनका कहना था कि सरकारें चुनकर आती हैं, फैसला लेने का अधिकार उसे होना चाहिए। इसके बजाय रेगुलेटर को नहीं। राज्यों की इस राय से केंद्र के नेता भी सहमत हुए।
आंध्र प्रदेश की ओर से चौदहवें वित्तायोग के आधार पर राज्यों को मिलने वाली धनराशि और केंद्रीय योजनाओं के बीच तालमेल को लेकर सवाल उठाये गए। इस पर वित्तमंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि इससे राज्यो को पहले के मुकाबले ज्यादा धनराशि मिल रही है। फिर भी कोई दिक्कत है तो राज्य चर्चा कर सकते हैं।
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