दिल्ली ने चौंकाया, सशक्त विकल्प को तरजीह
देहरादून,(विकास धूलिया)। दिल्ली,राजस्थान,मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम, इन पांच में से मिजोरम को छोड़कर रविवार को हुई मतगणना के बाद नतीजों की जो तस्वीर उभरी है, वह काफी कुछ वैसी ही नजर आ रही है, जैसे अपेक्षा की जा रही थी।
देहरादून,(विकास धूलिया)। दिल्ली,राजस्थान,मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम, इन पांच में से मिजोरम को छोड़कर रविवार को हुई मतगणना के बाद नतीजों की जो तस्वीर उभरी है, वह काफी कुछ वैसी ही नजर आ रही है, जैसे अपेक्षा की जा रही थी। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का जादू चलता नजर आया तो राजस्थान और मध्य प्रदेश में भाजपा जोरदार जीत की ओर अग्रसर है, हालांकि मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की परफारमेंस को कम करके आंका नहीं जा सकता है। दिल्ली और छत्तीसगढ़ में भी अब तक के नतीजे भाजपा के लिए उम्मीद जगाने वाले ही हैं।
हालांकि यहां इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि केंद्र की कांग्रेसनीत सरकार के खिलाफ एंटी इन्कंबेसी फैक्टर ने भी अपना काम किया। हां,अगर किसी राज्य के नतीजों के रुझान ने बहुत ज्यादा चौंकाया है तो वे हैं दिल्ली के रुझान। यह तो राजनैतिक विश्लेषक पहले से ही मान रहे थे कि शीला दीक्षित की चौथी बार सत्ता में वापसी मुश्किल है और भाजपा इस चुनाव में कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर देगी लेकिन यह किसी को अनुमान नहीं था कि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन उसे कांग्रेस से आगे, दिल्ली में नबर दो पर ला खड़ा करेगा।
रविवार दोपहर तक के रुझान जाहिर कर रहे हैं कि आप के झाड़ू ने शीला को तो सत्ता से बाहर किया ही, साथ ही हर्षवर्धन को सत्ता के स्पर्श के लिए भी तरसा दिया। नौबत यहां तक आ पहुंची कि अलग-अलग चैनलों के एंकर, भले ही अति उत्साह में आकर, दलीय नेताओं से सवाल करने लगे कि क्या कांग्रेस,आम आदमी पार्टी को सरकार बनाने के लिए सहयोग देगी।
हालांकि जब तक रुझान पूरी तरह नतीजों में तब्दील नहीं हो जाते, यह कहना जल्दबाजी होगा कि ऐसी नौबत आएगी या नहीं। दिल्ली की सियासी तस्वीर क्या रंग लेती है, यह तो आज शाम तक सामने आ जाएगा लेकिन इतना जरूर है कि इसने राष्ट्रीय राजनैतिक दलों के लिए भविष्य के लिहाज से एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। यह है सशक्त विकल्प, यानी वोटर के सामने कोई बिल्कुल नया मगर उसकी नजर में सशक्त विकल्प आता है तो वोटर उसे हाथों-हाथ लेने से गुरेज नहीं करेगा। खासकर दिल्ली की तरह छोटे-छोटे 100 से कम विधानसभा सीटों वाले राज्यों के लिए तो इसे भविष्य की राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत माना जाना चाहिए।
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