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अगर देश की हवा हो जाए साफ तो इतने साल बढ़ जाएगी हमारी जिंदगी

एक अध्ययन में हवा जनित कणीय पदार्थ प्रदूषण-पीएम 2.5 का संज्ञान लिया गया और देखा गया कि इसकी मात्रा में कमी से जीवन चक्र पर क्या असर पड़ सकता है।

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Wed, 13 Sep 2017 09:52 AM (IST)Updated: Wed, 13 Sep 2017 09:54 AM (IST)
अगर देश की हवा हो जाए साफ तो इतने साल बढ़ जाएगी हमारी जिंदगी
अगर देश की हवा हो जाए साफ तो इतने साल बढ़ जाएगी हमारी जिंदगी

नई दिल्ली, पीटीआई। दिल्ली की प्रदूषित हवा यदि साफ होकर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों पर खरी उतर जाए तो यहां के लोगों की उम्र औसतन नौ वर्ष बढ़ सकती है। यह बात एक नए अध्ययन में सामने आई है। यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा विकसित वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (एक्यूएलआइ) के अनुसार, भारत में यदि राष्ट्रीय स्तर पर वायु गुणवत्ता के विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों को पूरा कर लिया जाए तो भारतीयों की आयु में औसतन चार साल की बढ़ोतरी हो सकती है।

यह परिणाम आए समाने
अध्ययन में हवा जनित कणीय पदार्थ प्रदूषण-पीएम 2.5 का संज्ञान लिया गया और देखा गया कि इसकी मात्रा में कमी से लोगों के जीवन चक्र पर क्या असर पड़ सकता है। इसमें सामने आया कि यदि दिल्ली की हवा में पीएम 2.5 के संदर्भ में डब्ल्यूएचओ के सालाना 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (म्यू/एम3) के मानक को पूरा कर लिया जाता है तो शहर के लोग नौ साल अधिक जी सकते है। वहीं, यदि राष्ट्रीय राजधानी में 40 म्यू/एम3 के राष्ट्रीय मानक को पूरा किया जाता है तो दिल्ली के लोगों का जीवन छह साल बढ़ जाएगा।

संयुक्त रूप से बढ़ेगा 4.7 अरब जीवन वर्ष

एक्यूएलआइ के अनुसार यदि भारत डब्ल्यूएचओ के वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा करने के लिए वायु प्रदूषण में कमी करता है तो देश के लोग औसतन लगभग चार साल अधिक और संयुक्त रूप से 4.7 अरब जीवन वर्ष से ज्यादा जी सकते हैं।

मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे खतरनाक प्रदूषण कण

वाहनों व उद्योगों के कारण उत्पन्न पीएम 2.5 अत्यंत महीन पदार्थ कण होते हैं, जिनका आकार 2.5 माइक्रोन से कम होता है। यह मानव की श्वसन प्रणाली और फिर रक्त प्रवाह में प्रवेश कर अपूरणीय क्षति पहुंचा सकते हैं। एनर्जी एंड पॉलिसी इंस्टिट्यूट के निदेशक माइकल ग्रीनस्टोन के मुताबिक, पर्यावरण में मौजूद प्रदूषण कण वर्तमान में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इनसे विश्व के कई हिस्सों में जीवन पर उसी तरह का असर पड़ता है जैसे दशकों तक सिगरेट पीने से पड़ता है।

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