चेतावनी देने वाले होंगे दिल्ली विस चुनाव के परिणाम
दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने में अब कुछ घंटे शेष रह गए हैं। उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के साथ-साथ इस बार आम जनता के लिए भी यह नतीजे उत्सुकता का पर्याय बने हुए हैं। सभी का अपना आंकलन है, अपने समीकरण और अपना कयास। कुछ का मानना है कि अबकी बार भाजपा ही सत्तारूढ़ होगी तो कुछ के दिमाग में क
संजीव गुप्ता, पानीपत। दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने में अब कुछ घंटे शेष रह गए हैं। उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के साथ-साथ इस बार आम जनता के लिए भी यह नतीजे उत्सुकता का पर्याय बने हुए हैं। सभी का अपना आंकलन है, अपने समीकरण और अपना कयास। कुछ का मानना है कि अबकी बार भाजपा ही सत्तारूढ़ होगी तो कुछ के दिमाग में कांग्रेस चौथी बार भी सरकार बनाने में सफल होती नजर आ रही है। एक बड़ा तबका आम आदमी पार्टी को सत्ता में देखना चाह रहा है। कुछ घंटों बाद स्पष्ट तस्वीर भले ही कुछ हो, लेकिन इतना जरूर है कि यह नतीजे भविष्य के लिए संकेत ही नहीं बल्कि राजनीतिक दलों और राजनीतिज्ञों दोनों ही के लिए चेतावनी देने वाले भी होंगे।
इसमें कोई दो राय नहीं कि दिल्ली विस चुनाव में इस बार भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरकर सामने आएगी। सीटों की संख्या 35 से 42 के बीच रह सकती है। कांग्रेस करीब 20 सीटों तक सिमटकर रह सकती है। आप की झोली में अधिकतम 10 सीटें आने की संभावना है। संभावना यही है कि भाजपा अपने दम पर सरकार बना लेगी। अगर एक-दो सीटों की कमी रही तो वह निर्दलीय या अन्य उम्मीदवारों के समर्थन से पूरी हो जाएगी। यह निर्दलीय या अन्य उम्मीदवार नजफगढ़ व ओखला सीट से हो सकते हैं।
कांग्रेस अबकी बार विपक्ष में ही बैठेगी, इसमें संदेह नहीं रह गया है। वह जोड़ तोड़ करके भी सरकार नहीं बना सकेगी। जहां तक आप का सवाल है तो वह विधानसभा में तो अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगी, मगर सरकार में नहीं। कायदे से उसे करना भी ऐसा ही चाहिए।
जहां तक संकेत और संदेश की बात है तो निस्संदेह भाजपा की जीत और कांग्रेस की हार से लोकसभा चुनाव में परचम फहराने के लिए नरेंद्र मोदी की डगर आसान होगी। इसके अलावा कांग्रेस को दिल्ली ही नहीं, देश भर में गहराई से यह आत्ममंथन करना होगा कि जनता के प्रतिनिधि जनता से ऊपर कभी नहीं हो सकते। कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए जनहित के खिलाफ ही निर्णय लिए हैं। जिसमें सबसे अहम उदाहरण सुरसा के मुंह की तरह बढ़ी महंगाई है। इससे जनता में आक्रोश उत्पन्न होना लाजमी था। दो दो (पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह) के स्तर पर सरकार का काम करना भी हर किसी को अखरना था और अखरा भी।
आप की बात करें तो बहुत कम समय में जिस तरह उसे जनता का समर्थन व सहयोग मिला है, उसे इसको बरकरार रखते हुए भविष्य की राह मजबूत करनी चाहिए। आशंकाओं के विपरीत उसे बिना किसी से गठबंधन किए विपक्ष में रहकर जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निवर्हन करना चाहिए। सरकार से बाहर रहकर भी लेकिन विधानसभा का हिस्सा होते हुए वह जनता विरोधी निर्णयों पर लगाम लगा सकती है। यदि वह ऐसा करेगी तो उस पर जनता का डांवाडोल' भरोसा और मजबूत होगा। तब अगले चुनाव में उसे बहुमत पाने से कोई नहीं रोक पाएगा।
अब अगर भाजपा की बात की जाए तो उसे भी इस जीत से गर्वान्वित नहीं होना चाहिए। वजह, बहुत मायनों में यह भाजपा की जीत नहीं बल्कि कांग्रेस की हार है। अगर उसे सत्ता मिल रही है तो उसे उस भरोसे को कायम रखना होगा जो जनता ने आंखें बंद करके उस पर किया है। नरेंद्र मोदी को भी यह स्मरण रखना होगा कि जनता उससे ढेरों उम्मीदें संजोए हुए है। उन्हें महंगाई और भ्रष्टाचार ही नहीं, आतंकवाद, पाकिस्तान, सुरक्षा इत्यादि मसलों पर भी जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरना होगा। आज जनता भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को सही अथरें में प्रजातंत्र के रूप में देखने के लिए लालायित है। इस हसरत को पूरा करके ही किसी भी राजनीतिक दल के लिए भविष्य में अपना अस्तित्व बचाना संभव हो पाएगा अन्यथा नहीं।
(मुख्य उप संपादक)
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