बेटियों को अपने पांव पर खड़े होने का दे रहे हुनर
एक रिटायर्ड कर्मचारी ने गांव की एक-दो नहीं बल्कि 40 बेटियों को स्वावलंबन का हुनर सिखाने की ठान ली। किराये पर कमरा लिया, एक प्रशिक्षक रख दिया।
संवादसूत्र, गोंडा : लोग पत्थरों पर पैसे चढ़ाते हैं। बेटियां साक्षात देवी का रूप होती हैं। मैंने सोचा अगर ये हुनर
सीख लेंगी, तो कम से कम अपने पैरों पर खड़ी हो सकेंगी। ये सोचकर एक रिटायर्ड कर्मचारी ने गांव की एक-दो नहीं बल्कि 40 बेटियों को स्वावलंबन का हुनर सिखाने की ठान ली। किराये पर कमरा लिया, एक प्रशिक्षक रख दिया। प्रशिक्षण पर आने वाला खर्च अपने पेंशन से उठाते हैं। परसपुर ब्लॉक की ग्राम पंचायत खरगूपुर के मजरे गोजहा में रहने वाले त्रिवेनी प्रसाद द्विवेदी ये नेक कार्य कर रहे हैं।
पैसे के अभाव में बंद हुआ सेंटर तो ले लिया संकल्प: त्रिवेनी प्रसाद द्विवेदी सिंचाई विभाग में वरिष्ठ लिपिक थे। जून 2016 में रिटायरमेंट के बाद वह गांव में ही दो कमरे का घर बनाकर पत्नी कांती देवी के साथ रहते हैं। इनके दो बेटे हैं। बड़ा बेटा सुशील कुमार दूबे व बहू डॉ. रश्मि अमेरिका में वैज्ञानिक हैं। जबकि दूसरा बेटा अनिल गुड़गांव में रहता है। त्रिवेनी प्रसाद ने बताया कि गांव में गरीब बेटियों को सिलाई- कढ़ाईसिखाने के लिए एक निजी केंद्र चल रहा था। अप्रैल माह में पैसा न देने पाने पर प्रशिक्षण सीख रही बेटियों ने आना छोड़ दिया। सेंटर बंद होने की जानकारी उन्हें मिली। हमने सोचा कि कहीं मंदिरों में दान चढ़ाने से अच्छा है, इन बेटियों को ही कुछ सिखाया जाए, जिससे वह आगे बढ़कर स्वावलंबी बने सकें।
गरीब बेटियों के प्रशिक्षण पर आने वाला खर्च खुद उठाने का संकल्प लेकर उन्होंने मई माह में प्रशिक्षण शुरू कराया। प्रशिक्षण देने के लिए एक महिला प्रशिक्षक रखी गई है, जिसे वह प्रति बच्चे के हिसाब से हरमाह 100 रुपये का शुल्क देते हैं। इसके अतिरिक्त सिलाई मशीन के साथ ही अन्य सामान भी जुटाए गए हैं। प्रशिक्षण की क्लास दो पालियों में चलाई जाती है। प्रत्येक पाली में 20 बालिकाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है।
-रिटायर्ड कर्मचारी उठा रहा है प्रशिक्षण का पूरा खर्च
-40 बालिकाएं ले रहीं सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण
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