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देहरादून कोर्ट में तारीख पर तारीख, शीर्ष कोर्ट नाराज, छह महीने के भीतर मामले की पूरी सुनवाई करने का आदेश

न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षतावाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि सात साल पुराने मामले में सुनवाई निचली अदालत में एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी। पीठ ने जांच अधिकारी को निर्देश दिया कि वह निर्धारित तारीखों में गवाहों को परीक्षण के लिए अदालत में पेश करे।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Fri, 17 Sep 2021 07:57 PM (IST)Updated: Fri, 17 Sep 2021 08:05 PM (IST)
मामला वर्ष 2014 से चल रहा है जो तीन लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी और जालसाजी से संबंधित है

नई दिल्ली, प्रेट्र। देहरादून की एक निचली अदालत में एक मामले की सुनवाई के 78 स्थगनों से नाराज शीर्ष कोर्ट ने छह माह के भीतर सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया। मामला वर्ष 2014 से चल रहा है जो तीन लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी और जालसाजी से संबंधित है।

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न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षतावाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि सात साल पुराने मामले में सुनवाई निचली अदालत में एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी। पीठ ने जांच अधिकारी को निर्देश दिया कि वह निर्धारित तारीखों में गवाहों को परीक्षण के लिए अदालत में पेश करे। पीठ ने कहा कि हम निचली अदालत को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं कि इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से छह महीने के भीतर सुनवाई पूरी की जाए। पीठ ने कहा, हमें यह निर्देश इसलिए जारी करना पड़ा, क्योंकि हमने देखा कि निचली अदालत लगभग सात साल पहले संज्ञान लेने और 78 स्थगन के बावजूद इस मामले पर एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी, यहां तक कि आरोप भी तय नहीं किए गए। पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति रविकुमार भी शामिल थे।

2014 से साल 2020 के बीच मामले पर सुनवाई के लिए दी गईं 78 तारीखें

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने मामले के जल्द निपटारे की याचिकाकर्ता डा. अतुलकृष्ण की याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद वह शीर्ष कोर्ट पहुंचे थे। उनकी याचिका पर शीर्ष कोर्ट ने 15 सितंबर को यह आदेश जारी किया। याचिकाकर्ता ने वर्ष 2012 में मेरठ जिले के जानी थाने में प्रतिवादियों के खिलाफ भूमि सौदे को लेकर धोखाधड़ी और जालसाजी की एफआइआर दर्ज करवाई थी। संपत्ति से जुड़े कागजात देहरादून जिले से संबंधित थे, इसलिए मामले को वहां स्थानांतरित कर दिया गया। 28 जून, 2014 से 15 अक्टूबर, 2020 के बीच मामले पर सुनवाई के लिए 78 तारीखें दी गईं, लेकिन प्रतिवादियों के खिलाफ आरोप तक तय नहीं किए गए।


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