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खतरे की घंटी: छत्‍तीसगढ़ में चुनाव से पहले और तेज होगा किसानों का आंदोलन

17 सितंबर को रायपुर जिले के अभनपुर में किसानों ने महासम्मेलन बुलाया है। इसमें प्रदेश स्तर पर किसान फेडरेशन बनाने और किसानों की मांगों पर लगातार आंदोलन करने की रणनीति बनाई जाएगी।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 16 Sep 2018 08:28 PM (IST)Updated: Sun, 16 Sep 2018 08:36 PM (IST)
खतरे की घंटी: छत्‍तीसगढ़ में चुनाव से पहले और तेज होगा किसानों का आंदोलन

रायपुर, नई दुनिया राज्य ब्यूरो। चुनावी साल में किसानों के आंदोलन ने सरकार के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। किसान अपना आंदोलन और तेज करने की तैयारी कर रहे हैं। 17 सितंबर को रायपुर जिले के अभनपुर में किसानों ने महासम्मेलन बुलाया है। इसमें प्रदेश स्तर पर किसान फेडरेशन बनाने और किसानों की मांगों पर लगातार आंदोलन करने की रणनीति बनाई जाएगी।

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जगदलपुर से रायपुर तक पदयात्रा  
दरअसल किसानों के आंदोलन का दमन करने से नाराजगी और बढ़ गई है। प्रदेश में 80 फीसद किसान हैं। ऐसे में किसानों की नाराजगी सरकार को भारी पड़ सकती है। बस्तर के किसान कर्जमाफी, किसान क्रेडिट कार्ड पर दलाली, ड्रिप सिंचाई, ट्रैक्टर फाइनेंस आदि में कंपनियों के फर्जीवाड़े से मुक्ति, धान का समर्थन मूल्य 2500 करने, फसल बीमा का क्लेम देने, किसानों के वाहनों को टोलटैक्स से मुक्त करने आदि मांगों को लेकर 10 सितंबर से जगदलपुर से रायपुर तक पदयात्रा पर निकले हैं। ये किसान 18 सितंबर को रायपुर पहुंचेंगे।

राजनांदगांव के किसान भी 14 सितंबर से पदयात्रा पर निकलने वाले थे लेकिन प्रशासन ने उन्हें अनुमति नहीं दी। प्रदेश के दूसरे जिलों से भी किसान पदयात्रा में शामिल हो रहे हैं। बताया गया है कि राष्ट्रीय किसान परिषद के बैनर तले एकजुट किसान राजधानी में एक बड़ा प्रदर्शन करने जा रहे हैं। इसकी भनक लगते ही प्रशासन दमन पर उतर गया।

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राजनांदगांव के किसानों को पदयात्रा से रोका गया। प्रशासन ने किसानों को गिरफ्तार कर लिया। इससे नाराज किसान जिला कार्यालय के सामने धरने पर बैठ गए हैं। पिछले तीन दिन से किसान कलेक्ट्रेट की सामने डटे हुए हैं। वहीं खाना बना रहे हैं और वहीं सो रहे हैं। किसानों के इन तेवरों ने सरकार की नींद उड़ा दी है।

बोनस से भी नहीं बनी बात 
किसानों का कहना है कि सरकार ने हर साल धान का बोनस देने का वादा किया था लेकिन चुनाव सिर पर आया तो बोनस देने की याद आई। किसान स्वामीनाथ आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग भी कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने इस साल समर्थन मूल्य बढ़ाया है लेकिन किसान इससे संतुष्ट नहीं हैं। सबसे ज्यादा गुस्सा फसल बीमा के भुगतान को लेकर है। किसी को एक तो किसी को दो रपये का मुआवजा मिला तो बात बिगड़ गई।


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