राजनीति के शिखर पर पहुंचाने वाले दलित अब आठवले के साथ नहीं है
मराठवाड़ा विश्वविद्यालय के नामकरण की वर्षगांठ समारोह में केंद्रीय समाज कल्याण मंत्री रामदास आठवले की सभा में जमकर हंगामा हुआ।
मुंबई [ ओमप्रकाश तिवारी ]। उसी मराठवाड़ा विश्वविद्यालय के नामकरण की वर्षगांठ समारोह में केंद्रीय समाज कल्याण मंत्री रामदास आठवले की सभा में जमकर हंगामा हुआ, जहां से उनकी राजनीति की शुरुआत मानी जाती है। इसे भीमा-कोरेगांव की घटना के बाद महाराष्ट्र की दलित राजनीति में आए परिवर्तन का परिणाम माना जा रहा है।
14 जनवरी को औरंगाबाद में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय के नामकरण का वर्षगांठ समारोह था। जिसमें रामदास आठवले समर्थकों ने अपने समारोह के लिए अलग मंच बनाया था। जबकि अन्य दलित समूह का मंच अलग था। रामदास आठवले अपने मंच पर भाषण देने खड़े हुए तो उनका विरोध कर रहे दलितों ने हंगामा शुरू कर दिया। कुर्सियां उछाली जाने लगीं। आठवले के विरोध में नारेबाजी होने लगी। भाषण करते समय आठवले की सुरक्षा के लिए उनके समर्थकों को घेरा बनाकर खड़ा होना पड़ा। इसके बावजूद आठवले को मुश्किल से छह-सात मिनट में ही अपना भाषण खत्म करना पड़ा। सभा में हंगामा करने के आरोप में 130 लोगों को गिरफ्तार किया गया। आठवले की सभा में हुआ यह हंगामा एक जनवरी एवं भीमा-कोरेगांव में हुए उपद्रव एवं तीन जनवरी को राज्यव्यापी बंद की प्रतिक्रिया माना जा रहा है। इस दौरान दलित नेता एवं बाबासाहब आंबेडकर के पौत्र प्रकाश आंबेडकर काफी सक्रिय नजर आए। जबकि रामदास आठवले कहीं दिखाई नहीं दिए।
मराठवाड़ा विश्वविद्यालय को डॉ. बाबा साहब आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय नाम देने के लिए मराठवाड़ा को बड़े आंदोलन के दौर से गुजरना पड़ा था। यह आंदोलन 1978 से शुरू होकर 14 साल चला था। इस आंदोलन के दौरान दलितों और मराठों में टकराव भी कई बार हुआ। इसी आंदोलन के दौरान रामदास आठवले युवा दलित नेता के रूप में उभरे और शरद पवार ने ३१ वर्षीय आठवले को 1990 में कैबिनेट मंत्री बनाकर एक नया दलित नेतृत्व खड़ा कर दिया। तब से आठवले महाराष्ट्र में रिपब्लिकन पार्टी के एक बड़े नेता के रूप में जाने जाते हैं। वह लंबे समय तक कांग्रेस-राकांपा के साथ रहे। लेकिन अब भाजपानीत केंद्र सरकार में समाज कल्याण राज्यमंत्री हैं।
राज्य के एक और दलित नेता एवं प्रकाश आंबेडकर के भाई आंनदराज आंबेडकर का कहना है कि आठवले की सभा में हुआ हंगामा इस बात का संकेत है कि महाराष्ट्र का दलित वर्ग अब उनके साथ नहीं है। जिस विश्वविद्यालय के नामकरण आंदोलन ने रामदास आठवले को राजनीति के शिखर पर पहुंचाया, उसी नामकरण के वर्षगांठ समारोह में आठवले का बोल न पाना कुछ ऐसा ही दर्शाता भी है।