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जानिए- तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का महत्वपूर्ण तर्क, खुद को बताया 'भारत का बेटा'

दलाई लामा ने बताया आखिर वे क्यों भारत के बेटे हुए? चीनी, अमेरिकी मीडिया के सवाल पर बोले, मैं भारत का खाता हूं और नालंदा के विचार रखता हूं।

By Nancy BajpaiEdited By: Published: Thu, 13 Dec 2018 11:12 AM (IST)Updated: Thu, 13 Dec 2018 02:56 PM (IST)
जानिए- तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का महत्वपूर्ण तर्क, खुद को बताया 'भारत का बेटा'
जानिए- तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का महत्वपूर्ण तर्क, खुद को बताया 'भारत का बेटा'

नई दिल्ली, एएनआइ। तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा और भारत का आखिर कनेक्शन क्या है? देश से लेकर विदेश तक हर कोई यह जानना चाहता है कि आखिर दलाई लामा को भारत से इतनी मोहब्बत क्यों है। ऐसा ही एक सवाल चीनी और अमेरिकी मीडिया ने भी दलाई लामा से पूछा। उनका सवाल था, किस कारण आप (दलाई लामा) खुद को भारत के बेटे के रूप में देखते हैं? दलाई लामा ने भी इसका दिलचस्प जवाब दिया।

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'इसलिए मैं भारत का बेटा हूं....'

चीनी और अमेरिकी मीडिया के इस सवाल के जवाब में दलाई लामा ने कहा, 'मेरा दिमाग नालंदा के विचारों से भरा है और मेरा शरीर भारतीय व्यंजन (दाल-रोटी और डोसा) खाकर चल रहा है। इसलिए शारीरिक और मानसिक रूप से मैं इस देश से हूं और इस तरह मैं भारत का बेटा हुआ।'

आखिर क्यों चीन दलाई लामा से चिढ़ता है?

83 वर्षीय दलाई लामा तिब्बती आध्यात्मिक नेता है, चीन हमेशा से तिब्बत पर अपना दावा पेश करता आया है। दलाई लामा को हमेशा से भारत के प्रति प्रेम की भावना रही है, लेकिन चीन हमेशा से उनसे चिढ़ता आया है। दलाई लामा जिस भी देश जाते हैं, चीन उसपर आपत्ति दर्ज कराता है। दरअसल, चीन दलाई लामा को अलगाववादी मानता है, वह सोचता है कि दलाई लामा उसके लिए समस्या हैं।

भारत और दलाई लामा का कनेक्शन

13वें दलाई लामा ने 1912 में तिब्बत को स्वतंत्र घोषित कर दिया था, लेकिन 14वें दलाई लामा के चुनने की प्रक्रिया के दौरान चीन के लोगों ने तिब्बत पर आक्रमण कर दिया। तिब्बत को इस लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा। वहीं, कुछ सालों बाद अपनी संप्रभुता की मांग उठाते हुए तिब्बत के लोगों ने भी चीनी शासन के खिलाफ विद्रोह कर दिया, हालांकि विद्रोहियों को इसमें सफलता नहीं मिली। जब दलाई लामा को लगा कि वह चीनी चंगुल में बुरी तरह से फंस जाएंगे, तब उन्होंने भारत का रुख किया। साल 1959 में दलाई लामा के साथ भारी संख्या में तिब्बती भी भारत आए थे।

भारत में दलाई लामा को शरण मिलना चीन को अच्छा नहीं लगा, उस वक्त चीन में माओत्से तुंग का शासन था। दलाई लामा और चीन के बीच शुरू हुआ विवाद अभी तक खत्म नहीं हुआ है। हालांकि दलाई लामा को दुनियाभर से सहानुभूमि मिली, इसके बावजूद वे निर्वासन की ही जिंदगी जी रहे हैं। दलाई लामा भी अब खुद को भारत का पुत्र बोलने में पीछे नहीं रहते। यहीं कारण है कि दलाई लामा के भारत में रहने से चीन से रिश्ते अक्सर खराब रहते हैं। बात दें कि 1989 में दलाई लामा को शांति का नोबेल सम्मान मिला था।


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