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Dadasaheb Phalke Birth Anniversary: भारतीय सिनेमा के ‘पितामह’ को काशी में मिला था सुकून

Dadasaheb Phalke Birth Anniversary वाराणसी के ब्रह्म घाट स्थित इसी आंग्रे के बाड़े में भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहब फाल्के ने गुजारे थे अपने जीवन के दो साल। जागरण

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 30 Apr 2020 10:07 AM (IST)Updated: Thu, 30 Apr 2020 10:33 AM (IST)
Dadasaheb Phalke Birth Anniversary: भारतीय सिनेमा के ‘पितामह’ को काशी में मिला था सुकून
Dadasaheb Phalke Birth Anniversary: भारतीय सिनेमा के ‘पितामह’ को काशी में मिला था सुकून

विकास ओझा, वाराणसी। Dadasaheb Phalke Birth Anniversary: आज ही के दिन दादा साहब फाल्के (धुंधिराज गोविंद फाल्के) का जन्म 1870 में महाराष्ट्र में हुआ था। 19 साल के करियर में 95 फिल्में और 27 लघु फिल्में बनाईं। 1913 में उन्होंने राजा हरिश्चंद्र नाम से पहली मूक फिल्म बनाई। भारतीय इतिहास में उनके योगदान को देखते हुए 1969 से भारत सरकार ने उनके सम्मान में दादा साहब फाल्के अवॉर्ड की शुरुआत की। भारतीय सिनेमा का इसे सर्वोच्च और प्रतिष्ठित पुरस्कार माना जाता है। 16 फरवरी 1944 को उनका देहांत हो गया।

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भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहब फाल्के (धुंदीराज गोविंद फाल्के) का जब सिनेमा से मोहभंग हुआ तो काशी के ब्रह्मा घाट स्थित सरदार आंग्रे के बाड़ा में परिवार के साथ दो वर्ष गुजारे थे। ऐतिहासिक बाड़ा में कई जानी-मानी हस्तियां फाल्के से मुलाकात के लिए आईं। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक भी उनमें शामिल रहे। ट्र्रेंसग फाल्के मिशन में मिला दादा का प्रवास स्थल: भारतीय सिनेमा के जनक के काशी प्रवास की बात काशी के लिए भी रहस्य रही। इस रहस्य से पर्दा भारतीय सिनेमा के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर 2012-13 के दौरान वाराणसी आए निर्देशक कमल स्वरूप ने उठाया था।

फिल्म डिवीजन के लिए बन रही डाक्यूमेंट्री के दौरान वह यहां आए थे। टीम यहां महीनों डेरा डाले रही। बहुत खोजबीन के बाद टीम आंग्रे का बाड़ा पहुंची थी। जागरण से उस वक्त हुई बातचीत में उन्होंने कहा था कि ‘बहुत लोग नहीं जानते कि दादा साहब फाल्के का उनकी कंपनी में एक साथी के साथ विवाद था, इसलिए वह वाराणसी आए और 1920 से 1922 तक यहां रहे। तिलक समेत कई हस्तियों से उनकी यहां मुलाकात हुई। वह यहां खुश थे’। इस वृत्तचित्र निर्माण के लिए 2006 से ट्र्रेंसग फाल्के मिशन चल रहा था।

आंग्रे के बाड़ा का इतिहास तीन सौ साल से ज्यादा पुराना है। छत्रपति शिवाजी महाराज के सरदार यानी सरदार आंग्रे सैनिक अभियान के दौरान यहां ठहरे थे। गंगा किनारे, बाग-बगीचों से गुलजार यह स्थल इतना रमणीय लगा कि वह जब काशी आते, यहीं ठहरते। धीरे- धीरे उनके साथ आने वाले यहां प्रवास करने लगे। हवेली खड़ी हो गई। सरदार विवलकर ने परिपाटी को आगे बढ़ाया। गणेश उत्सव मंच की छांव में कंठे जी महाराज, विनायक राव व्यास जैसे उस दौर के ख्यातिलब्ध कलाकर यहां घंटों रियाज करते थे। बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में पुणे के बाद आंग्रे का बाड़ा से गणेश उत्सव का शुभारंभ किया था। इस स्थल की साख ही सिनेमा के पितामह का यहां खींच लाई थी।

- सुनील चितलय, श्री काशी गणेश उत्सव कमेटी के कार्यकारिणी सदस्य

ब्रह्मा घाट के आंग्रे के बाड़ा में गुजारे दो साल, बाल गंगाधर तिलक से भी यहीं हुई थी मुलाकात, 1913 में पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र से शुरू हुआ दादा का सफर।


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