Move to Jagran APP

विश्व में युद्ध का नया हथियार बन रहे साइबर टूल्स, जानें- इसके बारे में सबकुछ

दूसरे देशों और वहां की कंपनियों के कंप्यूटर एवं नेटवर्क पर हमला करने वाले साइबर टूल्स अब युद्ध का नया हथियार बनकर सामने आए हैं। साइबर अटैक किसी देश को अव्यवस्थित करने और वहां की अर्थव्यवस्था को तबाह करने की ताकत रखते हैं।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Thu, 22 Jul 2021 08:08 PM (IST)Updated: Thu, 22 Jul 2021 08:08 PM (IST)
विश्व में युद्ध का नया हथियार बन रहे साइबर टूल्स, जानें- इसके बारे में सबकुछ
साइबर अटैक किसी देश को अव्यवस्थित करने की ताकत रखते हैं (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, एजेंसी। समय के साथ युद्ध का तरीका और हथियार भी बदल गए हैं। दूसरे देशों और वहां की कंपनियों के कंप्यूटर एवं नेटवर्क पर हमला करने वाले साइबर टूल्स अब युद्ध का नया हथियार बनकर सामने आए हैं। साइबर अटैक किसी देश को अव्यवस्थित करने और वहां की अर्थव्यवस्था को तबाह करने की ताकत रखते हैं। यूनिवर्सिटी आफ साउथ वेल्स के एथम इलबिज और क्रिश्चियन कौनर्ट ने इस संबंध में कई सवालों के जवाब दिए हैं।

loksabha election banner

खतरनाक है हाइब्रिड वारफेयर

विभिन्न रैंसमवेयर और वायरस के जरिये होने वाले साइबर अटैक को हाइब्रिड वारफेयर नाम दिया गया है। किसी मजबूत दुश्मन को हराने के लिए इसमें पारंपरिक और गैर पारंपरिक दोनों तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। इसका उद्देश्य उस राजनीतिक लक्ष्य को हासिल करना होता है, जिसे पारंपरिक हथियारों से हासिल करना संभव नहीं होता। इसमें किसी देश की संवेदनशील जानकारियों को चुराने से लेकर वहां की पूरी व्यवस्था को ध्वस्त करने तक की क्षमता होती है। यही कारण है कि दुनियाभर में विभिन्न देश इस समय इनसे बचने के लिए व्यवस्था को मजबूत करने में जुटे हैं। साइबर हमलों से निपटने में नीति नियंताओं को रणनीतिक सुझाव देने के लिए यूरोपीय यूनियन (ईयू) ने हाइब्रिड फ्यूजन सेल स्थापित किया है। बहुत से हमलों में संदिग्ध भूमिका को देखते हुए ईयू और अमेरिका दोनों ने रूस के कई व्यक्तियों और इकाइयों को प्रतिबंधित भी किया है।

हमलावर का पता लगाना चुनौती

युद्ध के इस तरीके में हमलावर का पता लगाना सबसे बड़ी चुनौती होती है। किसी दूसरे देश की सरकार या कंपनी में सेंध लगाने के लिए सरकारें आमतौर किसी गैर सरकारी व्यक्ति या संस्थान की मदद लेती हैं। इसलिए किसी भी तरह का आरोप लगने पर सरकारों के लिए इनसे पल्ला झाड़ना आसान होता है। कई बार ऐसा भी होता है कि संबंधित देश की रक्षा एजेंसियां ऐसे साइबर हमलावरों के खिलाफ जांच में मदद का भरोसा भी देती हैं, लेकिन अमूमन कोई नतीजा नहीं निकलता।

बहुत महीन है जिम्मेदारी की लकीर

साइबर स्पेस में तीन लेयर होती हैं, फिजिकल लेयर (हार्डवेयर), लाजिकल लेयर (डाटा पर किस तरह काम होता है) और ह्यूमन लेयर (यूजर)। ज्यादातर इस व्यवस्था को सरकार के बजाय निजी संस्थान संभालते हैं। इसलिए यह तय कर पाना मुश्किल होता है कि बचाव की जिम्मेदारी किसकी है। इसी तरह यह सवाल भी है कि हमला करने वाले आपराधिक लोग हैं या सरकारी एजेंसियों की मदद से काम करने वाले। बचाव की जिम्मेदारी तय करने की उलझन ही हमलावर देशों के लिए फायदेमंद होती है।

बहुत सक्रिय है रूस

जिस तरह से सैन्य स्तर पर साइबर हमले हो रहे हैं, उससे इनके पीछे सरकारों का हाथ होने का स्पष्ट संकेत मिलता है। रूस इस मामले में बहुत ज्यादा सक्रिय है। उसने एक व्यवस्थित साइबर वारफेयर रणनीति बनाई हुई है। बताया जाता है कि इस रणनीति को बनाने में एलेक्जेंडर डगिन जैसे राजनीतिक विज्ञानी की भूमिका रही है। उन्हें राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का दिमाग भी कहा जाता है। वह मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी में सोशियोलाजी के प्रोफेसर हैं। 2014 में क्रीमिया पर रूस के कब्जे के बाद अमेरिका ने प्रोफेसर डगिन को प्रतिबंधित लोगों की सूची में डाल दिया था। पुतिन के वरिष्ठ सलाहकार आइगर पैनारिन और कई सैन्य हस्तियों ने भी इसमें भूमिका निभाई है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.