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डिजिटल साक्षरता की कमी बनती है धोखाधड़ी का कारण, साइबर सुरक्षा समय की मांग

आने वाला समय और भी अधिक डिजिटल होगा क्योंकि इंटरनेट अपनी पांचवीं पीढ़ी में प्रवेश करने वाला है। अतः हमें इंटरनेट संबंधी समस्याओं का समाधान अच्छे से निकालना होगा ताकि इंटरनेट को और भी अधिक सुरक्षित एवं भरोसेमंद बनाया जा सके।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 15 Sep 2022 12:46 PM (IST)Updated: Thu, 15 Sep 2022 12:46 PM (IST)
डिजिटल साक्षरता की कमी बनती है धोखाधड़ी का कारण, साइबर सुरक्षा समय की मांग
Cyber Security: साइबर सुरक्षा समय की मांग

देवेंद्रराज सुथार। इन दिनों तकनीक की मदद से किसी की भी निजता में सेंध लगाना आसान हो गया है। इंटरनेट मीडिया और वाट्सएप ग्रुप ऐसे लिंक से भरे पड़े हैं, जो शुरू में अमीर बनने का लालच देते हैं और बाद में लोगों के बैंक खातों से रकम निकाल लेते हैं। अनपढ़ ही नहीं, बल्कि पढ़े-लिखे भी अक्सर इनसे बच नहीं पाते और आसानी से साइबर ठगी का शिकार हो जाते हैं। तरह-तरह के मोबाइल एप की बढ़ती तादाद के बावजूद देश-दुनिया में इनकी सुरक्षा पर चर्चा नहीं हो पा रही है।

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ऐसी घटनाओं के पीछे मोबाइल एप बनाने पर निगरानी तंत्र का निरंकुश रवैया जगजाहिर है। हमारे देश में डिजिटल साक्षरता की कमी भी इस तरह की धोखाधड़ी का कारण बनती है। जांच एजेंसियां तभी जागती हैं जब इस तरह का कोई मामला संज्ञान में आता है। पुलिस थानों में साइबर अपराध से निपटने के प्रति उदासीनता है, क्योंकि अधिकांश पुलिसकर्मी साइबर सुरक्षा प्रशिक्षण से वंचित हैं। समस्या यह है कि साइबर धोखाधड़ी में अपराधियों से राशि वापस हासिल करना और उन्हें सजा देना बहुत कठिन है।

दुनिया के अन्य देशों में साइबर क्राइम की शिकायत धोखाधड़ी का शिकार हुए उपभोक्ता के बैंक या उसके मोबाइल सेवा प्रदाता द्वारा दर्ज कराई जाती है, जबकि हमारे देश में यह काम पीड़ित उपभोक्ता को ही करना पड़ता है। पीड़ित के बैंक और मोबाइल सेवा प्रदाता उसे कोई सहयोग देने से इन्कार कर देते हैं। न्यायिक क्षेत्राधिकार का अलग-अलग होना भी पुलिस के लिए बाधा बनता है। प्रायः साइबर फ्राड के जरिये निकाली गई रकम देश के दूसरे भागों में खोले गए खातों में स्थानांतरित कर दी जाती है। इन खातों के खाता धारक ही फेक होते हैं।

लिहाजा असली दोषी तक पहुंचना कठिन होता है। भारत में अब तक कोई विशेष साइबर सुरक्षा कानून नहीं बनाया गया है। आइटी एक्ट, 2000 के तहत ही मामले दर्ज किए जाते हैं। आने वाला समय और भी अधिक डिजिटल होगा, क्योंकि इंटरनेट अपनी पांचवीं पीढ़ी में प्रवेश करने वाला है। अतः हमें इंटरनेट संबंधी समस्याओं का समाधान अच्छे से निकालना होगा, ताकि इंटरनेट को और भी अधिक सुरक्षित एवं भरोसेमंद बनाया जा सके। जिससे कि यह वरदान साबित हो, वरना जितनी तेजी से इंटरनेट में सेंधमारी बढ़ रही है तो ऐसे में जल्द ही इंटरनेट अभिशाप भी बन सकता है।

(लेखक लोक नीति विशेषज्ञ हैं)


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