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प्रशिक्षण अवधि घटाकर पूरी कर रहे लोको पायलटों की कमी

हाल में बढ़ी ट्रेन दुर्घटनाओं की एक बड़ी वजह लोको पायलट और गार्डो को दी जा रही कम समय की ट्रेनिंग है। लोको पायलटों की कमी के चलते इनके कोर्स की अवधि को घटा दिया है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 01 May 2017 12:37 AM (IST)Updated: Mon, 01 May 2017 12:37 AM (IST)
प्रशिक्षण अवधि घटाकर पूरी कर रहे लोको पायलटों की कमी
प्रशिक्षण अवधि घटाकर पूरी कर रहे लोको पायलटों की कमी

नई दिल्ली (संजय सिंह)। रेलवे में लोको पायलट और गार्डो को अल्प अवधि के मेन व रिफ्रेशर ट्रेनिंग कोर्स कराये जा रहे हैं। मेन कोर्स की अवधि 52 सप्ताह से घटकर 17 सप्ताह और रिफ्रेशर कोर्स की अवधि 15 दिन से घटाकर तीन दिन कर दी गई है। इससे लोको पायलट नई तकनीक व प्रक्रियाओं को पूरी तरह आत्मसात नहीं कर पा रहे और आपात स्थितियां में ट्रेन पर नियंत्रण रखने में असमर्थ हो रहे हैं। हाल में बढ़ी ट्रेन दुर्घटनाओं की यह भी एक वजह है।

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रेलवे में लोको पायलटों को ट्रेन संचालन और इंजन तकनीक में आए नवीनतम बदलावों से रूबरू कराने के लिए प्रत्येक तीन वर्ष के अंतराल पर तीन महीने का रिफ्रेशर ट्रेनिंग कोर्स कराने का प्रावधान है। लेकिन रेलवे में 31 फीसद लोको पायलटों की कमी है। फलस्वरूप पिछले दस सालों में इस व्यवस्था का बड़े पैमाने पर उल्लंघन हो रहा है। लोको पायलटों की कमी तथा खर्च बचाने के लोभ के कारण कई जोनों और मंडलों में लोको पायलटों को तीन महीने के बजाय मात्र तीन दिन का रिफ्रेशर कोर्स कराया जाने लगा है। इससे लोको पायलटों के अद्यतन ज्ञान व दक्षता स्तर पर गिरावट देखने में आ रही है। आधा अधूरा प्रशिक्षण पाने वाले ये लोको पायलट व गार्ड आपात स्थितियों में उचित निर्णय नहीं ले पाते हैं और दुर्घटना का कारण बनते हैं।

इसका सबसे बड़ा उदाहरण 20 मार्च, 2015 में बछरावां स्टेशन पर हुई देहरादून वाराणसी जनता एक्सप्रेस दुर्घटना के वक्त सामने आया था। जांच में पाया गया कि दुर्घटना इंजन के सामान्य व आपात ब्रेक फेल होने की वजह से हुई थी और ये दोनो ब्रेक इसलिए फेल हुए थे क्योंकि पाइप में लगे अतिरिक्त कट आउट कॉक को किसी ने जाने-अनजाने गलत तरीके से लगा दिया था। नियमानुसार ऐसी स्थिति में तीसरे डायनामिक ब्रेक का उपयोग किया जाना चाहिए था, जो पूरी तरह कार्य कर रहे थे। लेकिन ड्राइवर और गार्ड की ओर से ऐसा कोई प्रयास ही नहीं किया गया क्योंकि उन्हें न तो डायनामिक ब्रेक प्रणाली की कोई जानकारी थी और न ही उन्होंने कभी इसका उपयोग किया था।

दरअसल, ट्रेन के ड्राइवर को 2014 में मिलने वाला तीन महीने का आवश्यक रिफ्रेशर प्रशिक्षण मिला ही नहीं था। तीन महीने के बजाय उसे केवल एक सप्ताह का कोर्स करा कर पुन: काम पर लगा दिया गया था। ऐसे में बछरावां से पहले कब और कहां पर ब्रेक पावर फेल हो गई थी इसका उसे अंदाजा ही नहीं हुआ। कुछ ऐसा ही हाल गार्ड का था, जिसने यह जानते हुए भी कि ट्रेन आवश्यकता से काफी अधिक स्पीड पर लूप लाइन में प्रवेश कर रही है, डायनामिक ब्रेक लगाने का प्रयास नहीं किया।

दुर्घटना की जांच करने वाले दक्षिण-मध्य रेलवे के रेलवे संरक्षा आयुक्त दिनेश कुमार सिंह ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि या तो लोको पायलट और गार्ड दोनो को चीजों की पूरी जानकारी नहीं थी, अथवा उन्होंने शराब पी रखी थी। हालांकि दुर्घटना के बाद काफी देर से बे्रथ एनालाइजर टेस्ट न होने से शराब की पुष्टि नहीं की जा सकी। जांच में संरक्षा आयुक्त को ब्रेथ टेस्ट एनालाइजर की कमी भी देखने को मिली। ड्राइवर व गार्ड आपसी संवाद के लिए वॉकी-टॉकी के बजाय सीयूजी मोबाइल फोन का उपयोग कर रहे थे।


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