धूल खा रही हैं ग्राहक सेवा संबंधी रिपोर्ट
पिछले पांच वर्षो के भीतर रिजर्व बैंक की तरफ से ग्राहक सेवा व बैंकिंग विस्तार पर दो उच्चस्तरीय समितियां गठित की गई लेकिन इन्हें लागू नहीं किया गया।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नोट बंदी के बाद बैंकों में ग्राहक सेवा को लेकर एक बार फिर चर्चा जोरों पर है। नोट बंदी को लेकर सरकार के फैसले की वजह से ग्राहक बैंक खाते में जमा अपनी ही राशि के लिए मारे मारे फिर रहे हैं लेकिन एक हकीकत यह भी है कि ग्राहक सेवा बैंकों के लिए कभी वरीयता नहीं रही।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि पिछले पांच वर्षो के भीतर रिजर्व बैंक की तरफ से ग्राहक सेवा व बैंकिंग विस्तार पर दो उच्चस्तरीय समितियां गठित की गई लेकिन उनकी रिपोर्टो को लागू करने पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। इसमें एक समिति प्रख्यात बैंकर व आरबीआइ के निदेशक बोर्ड के सदस्य नचिकेत मोर की अध्यक्षता में बनी थी जबकि दूसरी सेबी के पूर्व अध्यक्ष एम दामोदरन की अध्यक्षता में गठित हुई थी। दोनों समितियों की रिपोर्टो में ग्राहक सेवा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए समयबद्ध कार्यक्रम बनाने की सिफारिश की गई थी। लेकिन इनमें से अधिकांश का पालन होना अभी बाकी है।
प्रमुख सिफारिशें
1. एक जनवरी, 2016 तक हर भारतीय का हो बैंक खाता
2. किसी भी हिस्से से सिर्फ 15 मिनट की पैदल दूरी पर हो बैंक शाखा
3. उपभोक्ता मूल्य आधारित महंगाई दर से ज्यादा मिले जमा पर ब्याज
4. हर गरीब को उसकी सुविधा से कर्ज देने की हो व्यवस्था
5.आधार नंबर के साथ ही बैंक खाता नंबर देने की हो व्यवस्था
6. एनबीएफसी को बैंकों के एजेंट के तौर पर काम करने की अनुमति मिले
7. सस्ती दर पर सेवा देने के लिए बैंकों को किया जाएगा नए सिरे से तैयार
8. बैंकों की सेवा देने वाले एमएफआइ, एनजीओ आदि की निगरानी के लिए राज्य गठित करे आयोग
9. बैंको के एनपीए सूचनाओं को किया जाए सार्वजनिक
10. कर्ज माफी के बजाये सीधे किसानों को मिले वित्तीय मदद
11. सभी बैंकों में एक समान हो खाता खोलने या कर्ज लेने संबंधी कागजी कार्रवाई
12. सभी बैंक एक समान चार्ज करें ग्राहक सेवा शुल्क
13. ई-भुगतान करने पर ग्राहकों को दिये जाए छूट
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