Cryptocurrency: आसान नहीं नकेल कसना, क्रिप्टोकरेंसी को सशर्त अनुमति से सधेंगे संतुलन
केंद्र सरकार जानती है कि क्रिप्टोकरेंसी को मान्यता देने के अपने खतरे और खामियां हैं लेकिन कुछ खूबियों और फायदों से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। जब प्रतिबंधित करना कठिन हो परोक्ष आर्थिक अपराधों में बढ़ोतरी हो सकती है।
संजय श्रीवास्तव। संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में सरकार क्रिप्टोकरेंसी के नियमन वाला बिल ‘द क्रिप्टोकरेंसी एंड रेगुलेशन आफ आफिशियल डिजिटल करेंसी बिल-2021’ लेकर आ रही है। पहले यह अनुमान था, अब इस सत्र में पेश होने वाले जिन 26 विधेयकों की सूची जारी की गई है, उसमें यह बिल 10वें नंबर पर मौजूद है। यानी केंद्र सरकार इस बिल के माध्यम से यह सुनिश्चित करेगी कि निवेशक क्रिप्टोकरेंसी से सुरक्षित दूरी बनाएं। अगर वे नहीं बनाते हैं तो इसका जोखिम उन्हें खुद भुगतना होगा।
संसद के आगामी सत्र में क्रिप्टोकरेंसी को लेकर निश्चित तौर पर स्पष्ट हो जाएगा कि देश अधिकृत रूप से इस पर क्या राय रखता है? वैसे अभी तक के हिसाब से सरकार चाहती है कि आरबीआइ अपनी क्रिप्टोकरेंसी जारी करे और भारत में मौजूद तमाम निजी क्रिप्टोकरेंसी पर बैन लगे। हालांकि एक संभावना यह भी है कि शायद सरकार कुछ प्रमुख क्रिप्टोकरेंसी को चलन के लिए कुछ शर्तो के साथ मान्यता दे दे। लेकिन अभी इस बारे में कुछ भी दावे से नहीं कहा जा सकता, संसद में व्यापक विचार विमर्श के बाद ही इस संबंध में कुछ स्पष्ट हो सकेगा।
बहरहाल दो साल पहले सरकार क्रिप्टोकरेंसी पर बैन लगाने का इरादा रखती थी। क्रिप्टोकरेंसी को लेकर बनाई पूर्व वित्त सचिव की अध्यक्षता वाली उसकी एक्सपर्ट कमेटी ने इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की बात कही थी और वह राजी भी थी। अब सरकार का मानना है कि सुभाष गर्ग की अध्यक्षता वाली कमेटी की सिफारिशंे पुरानी हो गई। बेशक यह उसका यू-टर्न है। संसार के तमाम देश अब स्वीकारने लगे हैं कि यह भविष्य की वैश्विक मुद्रा है और आगे चलकर इसके व्यापक प्रचलन को देखते हुए इस पर रोक लगाना अथवा इसके प्रभाव को नकारना शुतुरमुर्गी कोशिश होगी। इस मामले में वैश्विक वस्तुस्थिति का आकलन कर भारत सरकार की नीति ठीक लगती है।
तमाम तथ्य ये संकेत करते हैं कि अगले बरस से पहले देश में क्रिप्टोकरेंसी और उसके निवेशकों का भविष्य, मार्ग और दिशा इसी बरस तय हो जाएगी। इससे पहले फिलहाल सरकारी रुख से इतना तो तय हो चुका है कि हम न तो चीन, थाइलैंड सरीखे देशों की तरह इस पर पूर्ण प्रतिबंध लागू कर सकते हैं और न ही अल सल्वाडोर जैसे देशों की तरह इसे खुला छोड़ सकते हैं। हमारे लिए सुविचारित और व्यावहारिक नीति अपनाकर इसे नियमित और नियंत्रित करना ही श्रेयस्कर होगा। हालांकि कुछ वित्तीय संस्थान तथा आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ सरकार के इस कदम से पूरी तरह सहमत नहीं हैं, उनके अनुसार क्रिप्टोकरेंसी पर पूर्ण प्रतिबंध ही उचित है, लेकिन सरकार मध्यमार्ग ही अपनाने जा रही है। सरकार का यह निर्णय वर्तमान परिस्थितियों और भविष्य के आकलन के अनुसार स्वागत योग्य है।
इस आभासी मुद्रा के प्रवाह, प्रसार, प्रभाव को तो समय तय करेगा, पर सरकार बाढ़ की तरह बढ़ती इस मुद्रा की बढ़त पर नियमों के तटबंध बांधेगी, इस आभासी मुद्रा के प्रचलन और उसमें निवेश की प्रक्रिया तय करने का प्रयास करेगी। क्रिप्टोकरेंसी पर नियंत्रण के लिए नई नीति समय की मांग है। यह न केवल देश के हर तरह के छोटे, बड़े, खुदरा निवेशकों, अर्थव्यवस्था तथा वित्तीय परिवेश के हक में होगा, बल्कि राष्ट्रीय रक्षा, सुरक्षा से संबंधित आतंकवाद, हवाला कारोबार, अवैध धन प्रेषण जैसी तमाम गंभीर चुनौतियों, मुद्दों, मसलों पर भी प्रभावी रोक का कारण बनेगा। क्रिप्टोकरेंसी के लगातार बढ़ते प्रसार को देखते हुए सरकार इस पर कराधान की भी सोच रही है। यदि यह व्यवस्था लागू हो पाती है, तो इसके निवेश, लाभ को आय, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों के दायरे में लाया जा सके तो सरकार को मोटा राजस्व भी मिलेगा। सरकार यदि इस उम्मीद में यह उपक्रम कर रही है तो यह भी एक उचित कदम ही कहा जाएगा।
सरकार क्रिप्टोकरेंसी बिल को कैबिनेट से पास करा लेगी यह तय है, देर सवेर यह कानून बन भी जाएगा, पर बड़ा सवाल यह है कि क्या कानून बना देने भर से सरकार का उद्देश्य पूरा हो जाएगा? यह भी देखना होगा कि यह सरकारी फैसला तकनीकी तौर पर कितना व्यावहारिक तथा निरापद है। क्या इस कानून से क्रिप्टोकरेंसी पर सरकार अपना वांछित नियंत्रण कर पाएगी? शायद नहीं, क्योंकि यह सामान्य बैंकिंग या निवेश संबंधी साधारण वित्तीय मामला नहीं, बल्कि डिजिटल कूटलेख या इन्क्रिप्शन और ब्लाकचेन तकनीक से जुड़ा बेहद जटिल और संवेदनशील तकनीकी मसला है। इस पर नियंत्रण कागजों अथवा बयानों से नहीं, बल्कि उन्नत और विशिष्ट तकनीक के जरिये ही होगा। क्या इस विषय में सरकार की तकनीकी तैयारियां पूरी हैं? क्या उसने इस बिल को लाने से पहले क्रिप्टोकरेंसी के प्रभावी नियमन की उचित तकनीकी व्यवस्था कर ली है? क्या वह इस बात पर मुतमईन है कि वैश्विक तौर पर प्रचलित आभासी मुद्रा को स्थानीय स्तर पर और प्रत्यक्षत: पूरी तरह से नियमित कर लेगी?
बेशक यह काम जितना समझा जा रहा है उतना आसान बिल्कुल नहीं होने वाला है। सरकार के सामने यही असली चुनौती होगी। क्रिप्टोकरेंसी पर पाबंदी असंभव की हद तक कठिन है तो इस पर नियंत्रण भी कतई आसान नहीं होने वाला। जटिल तकनीक विवरणों में न भी जाएं, तब भी इसकी कठिनाई को सामान्यजन तक आसानी से समझ सकते हैं। विश्व में कहीं से भी कोई व्यक्ति स्वयं या निजी संस्थाओं द्वारा संचालित एक्सचेंजों के माध्यम से क्रिप्टोकरेंसी में निवेश कर सकता है। यह किसी भी देश के केंद्रीय प्राधिकरण द्वारा नियंत्रित नहीं है। यहां किसी तरह की कोई एजेंसी या मध्यस्थता नहीं है तो सीधे किसे नियंत्रित करेंगे। शेयर मार्केट में ट्रेड करने के लिए निवेशक को परिचय देना पड़ता है। क्रिप्टो में किसी तरह की कागजी कार्रवाई की जरूरत नहीं, यह खुला बाजार है। आंशिक नियमितीकरण संभव भी हुआ तो इसे कानूनी दायरे में लाना कठिन है, क्योंकि इस ब्लाकचेन आधारित वैश्विक डिजिटल करेंसी को ट्रैक करना बेहद कठिन है। क्रिप्टो मुद्राओं को ट्रैक करने के लिए सरकार ने नियम बना भी दिए तो केंद्रीय बैंक के पास तकनीकी अवसंरचना ही उपलब्ध नहीं है।
इन्क्रिप्शन तकनीक के मामले में हम अमेरिका या जापान सरीखे उन्नत नहीं हैं। गड़बड़ी पर रोक और उसके पुख्ता प्रमाण ढूंढना मुश्किल होगा। ब्लाकचेन की तकनीक में पारंगत लोगों की आवश्यकता होगी जिससे आतंकवाद की फाइनेंसिंग और अवैध लेन-देन की आशंकाओं को रोका जा सके, ऐसे संकटों की सतत निगरानी हो सके। एस्टोनिया, बेलारूस और स्विट्जरलैंड ही नहीं, माल्टा जैसे देशों का भी अध्ययन आवश्यक है जो हमसे पहले क्रिप्टोकरेंसी को कानूनी दायरे में ले चुके हैं। क्रिप्टोकरेंसी वैश्विक है तो फिर विश्व व्यापार संगठन जैसे निकायों की मदद की दरकार भी होगी। सरकार को प्रापर्टी गेन टैक्स, जीएसटी, टैक्स कलेक्शन आन सोर्स, इनकम टैक्स और दूसरे कराधान की प्रकिया पर नए सिरे से विचार करना होगा। कयास है कि सरकार क्रिप्टोकरेंसी से होने वाले लाभ पर 40 फीसद से अधिक का टैक्स वसूल सकती है। फिलहाल ये सब तो भविष्य की बातें हैं, अभी तो सरकार प्राथमिकता के साथ इन आभासी परिसंपत्तियों के लिए नियामकीय ढांचा तैयार करने के रास्ते में जो कर रही है, उसका स्वागत किया जाना चाहिए, क्योंकि प्रधानमंत्री के अनुसार इस डिजिटल डेंजर के खिलाफ अभी से तैयारी जरूरी है। (ईआरसी)
[विज्ञान मामलों के पत्रकार]