इंदौर शहर को स्वच्छ रखने के लिए बाहर की गई गायें, 900 परिवारों ने गोग्रास पहुंचाने शुरू की वाहन सेवा
यदि अनुबंधित वाहन पहुंचने में देरी होती है तो रहवासी हेल्पलाइन पर फोन कर सकते हैं। इसके अलावा यदि पर्व विशेष पर गायों के लिए विशेष सामग्री देना होती है तो भी फोन कर वाहन को बुलवाया जा सकता है।
लोकेश सोलंकी, इंदौर। स्वच्छता के मामले में देश में चार बार नंबर-1 रह चुके मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में गायों के लिए लोगों की आस्था ने अनूठा उदाहरण भी पेश किया है। स्वच्छता बरकरार रखने के लिए नगर निगम ने शहर में गोपालन प्रतिबंधित कर दिया। गोमाता शहर से बाहर हुई तो उन लोगों की आस्था के लिए समस्या खड़ी हो गई जिनके घरों में आज भी पहली रोटी गोग्रास के लिए निकाली जाती है। गाय के नाम की ये रोटियां या तो सड़क किनारे रखी जाने लगीं या फिर कचरे में फेंकी जाने लगीं। शहर के पश्चिमी क्षेत्र की तीन कॉलोनियों के जागरक रहवासियों और एक संस्था ने इसका हल निकाल लिया। उन्होंने गोग्रास एकत्रित करने के लिए वाहनों को अनुबंधित किया। अब ये तय समय पर गोग्रास घरों से एकत्र कर गोशालाओं तक पहुंचाते हैं। यही नहीं इस व्यवस्था में एक हेल्पलाइन भी बनाई गई है।
उषानगर, विश्वकर्मा नगर और बैंक कॉलोनी में अनुबंधित तीन वाहन सुबह नौ से 11.30 बजे के बीच घर-घर जाकर गोग्रास लेते हैं और गायों तक पहुंचाते हैं। तीनों कॉलोनियों के करीब 900 परिवार इनसे जुड़े हैं। इस पहल से उन वैष्णव धर्मावलंबियों के लिए भी सुविधा हो गई है जो रोजाना गायों को चारा खिलाने के नियम का पालन करते हैं।
रोटी और गुड़ के साथ हरा व सूखा चारा भी गोशालाओं में नियमित भेजा जाने लगा है। यदि अनुबंधित वाहन पहुंचने में देरी होती है तो रहवासी हेल्पलाइन पर फोन कर सकते हैं। इसके अलावा यदि पर्व विशेष पर गायों के लिए विशेष सामग्री देना होती है तो भी फोन कर वाहन को बुलवाया जा सकता है। इसकी शुरआत उषानगर से हुई। करीब 15 दिन पहले प्रायोगिक तौर पर क्षेत्र में एक ई-रिक्शा वाले को हर इच्छुक घर से गाय की रोटी इकट्ठा करने और गोशाला पहुंचाने की जिम्मेदारी दी गई।
लोगों का प्रतिसाद मिला तो आसपास के क्षेत्र जुड़ गए और 900 घर या परिवार वाहन से गायों को रोटी पहुंचाने की पहल में हिस्सेदार बन गए। सुबह 11.30 तक रोटी-गुड़ और चारा एकत्र करने के बाद ये ई-रिक्शा दोपहर में नजदीकी गोशाला पहुंच जाते हैं।
संस्था ब्रह्म समागम ने वाहनों की व्यवस्था और खर्च का जिम्मा लिया है। संस्था की अध्यक्ष जया तिवारी के अनुसार पहले आसानी से गली- मोहल्ले में गाय नजर आ जाती थी और उसे रोटी या चारा देने की परंपरा का पालन हो जाता था। क्षेत्र में ज्यादातर वैष्णव मतावलंबी है। कई लोग तो अलग-अलग दिन के अनुसार अलग अन्न व चारा गाय को खिलाने के नियम का पालन करते हैं। लेकिन गायें शहर से बाहर कर दी गई और रोटियां कचरे में फेंकी जाने लगीं। कई खास त्यौहारों पर परंपरा निभाने के लिए भी लोग खासे परेशान होते थे इसी के हल के रूप में इस व्यवस्था ने जन्म लिया है और इसे अच्छा समर्थन मिल रहा है।