कोरोना का टीका बनाने के लिए भारत बायोटेक और अमेरिकी विश्वविद्यालय साथ आए, चूहे पर प्रयोग में मिली सफलता
भारत बायोटेक ने एक बयान में कहा कि इस कैरियर टीका से भारी मात्रा में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है जो बच्चों और गर्भवती महिलाओं समेत सभी लोगों के लिए मान्य है।
हैदराबाद, आइएएनएस। कोविड-19 का टीका बनाने के लिए भारत बायोटेक और अमेरिका के फिलाडेल्फिया स्थित थॉमस जेफरसन विश्वविद्यालय के बीच समझौता हुआ है। इस टीके का विकास जेफरसन कंपनी ने किया है। भारत बायोटेक ने बुधवार को यह घोषणा की।
निष्क्रिय हो चुके रैबीज के टीके का इस्तेमाल
इस टीके को वर्तमान में निष्क्रिय हो चुके रैबीज के टीके का इस्तेमाल कर विकसित किया गया है। यह कोरोना वायरस प्रोटीन के वाहक के रूप में काम करेगा। भारत बायोटेक ने एक बयान में कहा है कि इस वाहक या कैरियर टीका से भारी मात्रा में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है, जो बच्चों और गर्भवती महिलाओं समेत सभी लोगों के लिए मान्य है।
चूहे पर प्रयोग में मिली बड़ी सफलता
संक्रामक रोग विशेषज्ञ प्रोफेसर मैत्थिआस श्नेल की लैब ने इस साल जनवरी में इस टीके को विकसित किया था और हाल ही में जानवरों पर इसका परीक्षण का काम पूरा हुआ है। चूहे पर इस टीके के प्रयोग में बड़ी सफलता मिली है। यह टीका लगाने के बाद चूहे के शरीर में मजबूत एंटीबॉडी तैयार हुई। अब वैज्ञानिक यह टेस्ट कर रहे हैं कि क्या जिन जानवरों को यह टीका लगाया गया है, उनकी कोरोना वायरस के संक्रमण से सुरक्षा हो पाती है। अगले महीने तक इसके नतीजे आने की उम्मीद है।
सरकार से मंजूरी का इंतजार
जेफरसन वैक्सीन इंस्टीट्यूट के निदेशक और जेफरसन विश्वविद्यालय में माइक्रोबायोलॉजी एंड इम्मूनोलॉजी विभाग के अध्यक्ष प्रो श्नेल ने कहा कि भारत बायोटेक के साथ साझेदारी से टीका बनाने के काम में तेजी आएगी और हम इसके विकास के अगले चरण में पहुंच जाएंगे। बता दें कि अभी इस टीके को सरकार से मंजूरी नहीं मिली है। दोनों कंपनियां मिलकर इस टीके का विकास करेंगी और जब सरकार से इसे मंजूरी मिल जाएगी तब आम लोगों के लिए इसका उत्पादन शुरू होगा।
रोग निरोधक दवा के रूप में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन उपयोगी
नई दिल्ली। तेलंगाना सरकार द्वारा तैयार एक अंतरिम रिपोर्ट में कोरोना वायरस से बचाव में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन यानी एचसीक्यू दवा का रोग निरोधक दवा के रूप में इस्तेमाल के नतीजे अच्छे आए हैं।
तेलंगाना सरकार के अध्ययन में पाया गया है कि कोरोना वायरस से रक्षा के लिए स्वास्थ्य सेवा से जुड़े जिन कर्मचारियों को मलेरिया की यह दवा दी गई थी, उनमें से 70 फीसद से ज्यादा में कोरोना के लक्षण नहीं दिखाई दिए यानी कोरोना वायरस के संक्रमण से उनका बचाव हुआ।
कोरोना वायरस संक्रमित मरीजों के लगातार संपर्क में आने वाले 394 स्वास्थ्यकर्मियों को यह दवा दी गई थी, इनकी समय-समय पर कोरोना वायरस की जांच कराई गई, जिनमें से 71 फीसद की रिपोर्ट निगेटिव आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह दवा कोरोना वायरस से बचाव में बहुत कारगर पाई गई है।