पढ़ाई के लिए अब विदेश नहीं जाना चाहते भारतीय छात्र, कोरोना महामारी से प्रतिकूल हुए हालात
ब्रिटिश कंपनी क्वाक्वारेली साइमंड्स ने कहा है कि कोरोना के चलते विदेश जाकर पढ़ाई करने वाले 48 प्रतिशत से अधिक भारतीय छात्रों अब नहीं जाना चाहते हैं।
नई दिल्ली, पीटीआइ। कोरोना महामारी का असर चारों तरफ दिखने लगा है। इसका गहरा प्रभाव विदेश जाकर उच्च शिक्षा हासिल करने वाले भारतीय छात्रों पर सामने आने लगा है। वैश्विक स्तर पर शैक्षणिक संस्थानों का विश्लेषण करने वाली ब्रिटिश कंपनी क्वाक्वारेली साइमंड्स (क्यूएस) ने कहा है कि कोरोना के चलते विदेश जाकर पढ़ाई करने वाले 48 प्रतिशत से अधिक भारतीय छात्रों अब नहीं जाना चाहते हैं। पहले ये छात्र शिक्षा के लिए भारत से बाहर का रुख करने के पक्ष में थे।
क्यूएस से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि कई देशों में उच्च शिक्षा पाने में होने वाले खर्च के मुकाबले आमदनी में आई कमी के हालात को महामारी ने और गंभीर बना दिया है। कोरोना के चलते उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने से बचने वालों में विज्ञान, तकनीक, गणित और इंजीनियरिंग की तुलना में दूसरे क्षेत्र के छात्रों की संख्या ज्यादा है। महामारी के कारण भविष्य में नौकरियों की संख्या में कमी आना तय माना जा रहा है।
इस बीच नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बताया है कि वंदे भारत मिशन के दूसरे चरण में 16 से 22 मई के बीच 31 देशों से 30 हजार भारतीयों को स्वदेश लाया जाएगा। वंदे भारत मिशन के पहले चरण में एयर इंडिया और उसकी सब्सिडियरी एयर इंडिया एक्सप्रेस को सात से 14 मई के बीच 12 देशों से 64 उड़ानों के जरिए 14,800 भारतीयों को वापस लाना है। पुरी ने बताया कि बुधवार सुबह तक 8,500 भारतीयों को वापस लाया जा चुका है।
मालूम हो कि पहले चरण में बाकी भारतीयों को लाने के लिए अन्य उड़ानें भी संचालित हो रही हैं। बता दें कि एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस आगे की घरेलू उड़ाने भी संचालित कर रही हैं ताकि विदेश से लाए जा रहे भारतीय लॉकडाउन के दौरान देश के भीतर अपने गंतव्यों तक पहुंच सकें। उधर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी आइएमए ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को विदेश से लौट रहे भारतीयों का स्वैब टेस्ट कराने का सुझाव दिया है।