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Rising India: कोरोना योद्धाओं ने दिखाई जीत की राह, अब इन्हें मिलेगा पहले वैक्सीन का डोज

वैक्सीन बनाने में सफलता मिल चुकी है। उम्मीद है कि नए साल के शुरुआती महीनों में यह सुलभ हो जाएगी। टीकाकरण की तैयारियां प्रारंभ कर दी गई हैं। ऐसी ही तैयारी जमशेदपुर में जोर-शोर से चल रही है जहां सबसे पहले 7500 कोरोना योद्धाओं को वैक्सीन का डोज दिया जाएगा।

By Manish MishraEdited By: Published: Thu, 03 Dec 2020 06:00 AM (IST)Updated: Thu, 03 Dec 2020 06:00 AM (IST)
Rising India: कोरोना योद्धाओं ने दिखाई जीत की राह, अब इन्हें मिलेगा पहले वैक्सीन का डोज
Corona warriors show the way to victory, now they will get the first vaccine dose

जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं..., इस नारे के सहारे भी कठिन वक्त डटकर गुजारा। अब दवाई यानी वैक्सीन बनाने में सफलता मिल चुकी है। प्रतीक्षा इस बात की है कि कब यह लोगों को सुलभ हो जाए। उम्मीद है कि नए साल के शुरुआती महीनों में हो जाएगी। टीकाकरण की तैयारियां प्रारंभ कर दी गई हैं। ऐसी ही तैयारी झारखंड के जमशेदपुर में जोर-शोर से चल रही है, जहां सबसे पहले साढ़े सात हजार कोरोना योद्धाओं को वैक्सीन का डोज दिया जाएगा। इनका नाम पहले चरण के वैक्सीनेशन के लिए आरक्षित कर दिया गया है। यह सभी लोग यहां के अग्रिम पंक्ति के कोरोना योद्धा हैं, जिन्होंने जी-जान लगाकर इस लड़ाई में अपना अहम योगदान दिया। कई कोरोना योद्धाओं का पता लगाकर हमने उनसे बात की और उनकी भूमिका को जाना। इनमें से अधिकांश वे हैं, जो इस लड़ाई के दौरान कोरोना संक्रमितों के सीधे संपर्क में रहे और अब भी इसी तरह की भूमिका में हैं। झारखंड में कोरोना से सबसे अधिक मौत जमशेदपुर में ही हुईं। आइये, चलते हैं जमशेदपुर और मिलते हैं इनमें से कुछ खास लोगों से। पढ़ें और साझा करें जागरण संवाददाता अमित तिवारी की यह रिपोर्ट।

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निश्चित ही, यह सभी वैक्सीन को लेकर उत्सुक हैं, लेकिन दिलचस्प बात यह कि अपनी जान की चिंता इन्हें उतनी नहीं है, जितनी औरों की। कहते हैं कि टीका लगने के बाद अपना काम और अधिक आत्मविश्वास के साथ कर पाएंगे, इसीलिए वैक्सीन को लेकर उत्सुक हैं। यही वह जज्बा है, जो इस लड़ाई के सापेक्ष मानवीयता के ऊंचे आयाम गढ़ देता है। वहीं, वैक्सीन के सुरक्षित रख-रखाव और वितरण के लिए भी यहां वैक्सीन सेंटर (कोल्ड चेन) बनाए जा रहे हैं। यह वाकिंग कूलर, वॉकिंग फ्रीजर व अन्य जरूरी उपकरणों से सुसज्जित होंगे। दूसरे चरण में आमजन को टीका लगाया जाएगा। नए कोरोना योद्धा भी तैयार हैं, जो वैक्सीनेशन में सहायक बनेंगे। वैक्सीन को हर इलाके में सुरक्षित तरीके से पहुंचाने की व्यवस्था भी बनाई जा रही है। अग्रिम पंक्ति के इन कोरोना योद्धाओं की सूची जिलास्तर पर प्रशासन ने तैयार की है। स्वास्थ्यकर्मियों, कोविड वार्ड के चिकित्सकों, चिकित्सा सहायकों, एंबुलेंस चालकों, सैंपल लेने वाले कर्मियों, जांच करने वाले तकनीशियनों के अलावा स्वच्छताकर्मियों, शवदाहकर्मियों और पुलिसकर्मियों को इस सूची में रखा गया है। आइये मिलते हैं, समझते और सराहते हैं इनके जज्बे को।

पांच माह में किया 540 शवों का दाह संस्कार

(सी गणेश राव। फोटो: जागरण)

जमशेदपुर में कोरोना संक्रमितों का दाह संस्कार भुइयांडीह स्थित स्वर्णरेखा बर्निंग घाट पर किया जा रहा है। बर्निंग घाट प्रबंध समिति के संयुक्त सचिव सी. गणेश राव के नेतृत्व में यहां दाह संस्कार किया जाता है। खुद सहकर्मियों के साथ मिलकर गणेश राव पांच माह में 540 शवों का दाह संस्कार कर चुके हैं। बैंक ऑफ इंडिया के सेवानिवृत्त कैशियर राव की उम्र करीब 68 वर्ष है, लेकिन जोश जवानों जैसा है। कोरोना संक्रमित शवों के सीधे संपर्क में आने के बावजूद सावधानी बरतने की वजह से बिल्कुल स्वस्थ हैं। जमशेदपुर में पहली बार चार जुलाई को दो कोरोना संक्रमितों की मौत हुई थी। पहले दिन बस्तीवासियों के विरोध की वजह से दाह संस्कार में बाधा आई थी। कर्मचारी भी डर कर भाग गए थे, लेकिन इन्होंने हिम्मत नहीं हारी और खुद दोनों शवों का इलेक्ट्रिक फर्नेस में दाह संस्कार किया। इनकी नि:शुल्क सेवा व समर्पण को देखते हुए स्वतंत्रता दिवस समारोह में राज्य सरकार ने इन्हें सम्मानित भी किया। गणेश राव सेवा के इस अवसर के ईश्वर का आदेश मानते हैं। वैक्सीन की बात पर कहते हैं कि इसके आने से आम लोगों में हिम्मत बढ़ेगी और तब एक-दूसरे के सहयोग से स्थितियां तेजी से सामान्य हो सकेंगी।

अब और निडर होकर कर सकेंगे सेवा

(सुरेश्वर सागर। फोटो: जागरण)

जमशेदपुर के महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एमजीएम) में 18 वर्षों से कार्यरत स्वच्छताकर्मी सुरेश्वर सागर कोरोना काल में कोविड वार्ड के मरीजों की सेवा में भी डटे रहे। खुद को कोरोना वायरस से बचाते हुए वार्ड की सफाई के साथ-साथ कोरोना मरीजों की सेवा भी की। सागर का कहना है कि डर तो लगता था, लेकिन अपनी जिम्मेदारी भी पूरी करनी थी। ऐसे में एहतियात के साथ लोगों की सेवा करने की ठानी और सफल रहा। कोरोना काल में महीनों अपने परिवार-बच्चों से दूर रहना पड़ा, ताकि वे सुरक्षित रहें। समय-समय पर अपनी जांच कराता रहा। रिपोर्ट निगेटिव आती तो राहत भी मिलती और हौसला भी बढ़ता। आज भी मैं कोरोना की जांच कराने से लेकर मरीजों को उनके बेड तक पहुंचाने का काम कर रहा हूं। वैक्सीन के संबंध में सागर ने कहा कि सरकार ने मुझ जैसे सफाईकर्मी को पहले वैक्सीन लगाने का जो निर्णय लिया है, इसके लिए धन्यवाद। वैक्सीन आने के बाद और निडर होकर सेवा करूंगा।

डर को परे रख काम में जुटी रही

(शर्मिला ठाकुर। फोटो: जागरण)

जमशेदपुर के परसुडीह स्थित सदर अस्पताल की नर्स शर्मिला की उम्र 52 साल है। हाई ब्लडप्रेशर की मरीज हैं। खुद और पति को भी डायबिटीज है, लेकिन तमाम चुनौतियों के बावजूद भी कोविड वार्ड में सेवाएं जारी रखीं। कहती हैं, हम सभी नर्सें अस्पताल में भर्ती कोरोना संक्रमित मरीजों की देखरेख तो कर ही रही थीं, इसके अलावा हमें टाटानगर स्टेशन पर रेल यात्रियों की जांच में भी लगाया गया। चुनौती बड़ी थी। लेकिन खुद को बचाते हुए मरीजों की देखभाल करने के साथ-साथ औरों को भी इससे बचने के उपाय देती रही। मैं कभी संक्रमित नहीं हुई, लेकिन डर तो रहा ही। डर को परे रख काम में जुटी रही और सुरक्षा बरतने में कोताही नहीं की। जो काम मिला, उसे जिम्मेदारी से निभाया। वैक्सीन की प्रतीक्षा सभी को है, लेकिन लोग सावधानी बरतें तो बिना वैक्सीन के भी सुरक्षित रह सकते हैं।

कई दिनों तक नहीं गए घर

(लक्ष्मीपति दास। फोटो: जागरण)

महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में तैनात लैब टेक्नीशियन लक्ष्मीपति दास की ड्यूटी कोविड वार्ड में है। इस दौरान नमूना लेने से लेकर कोविड वार्ड की व्यवस्था दुरुस्त करने तक में इनकी भूमिका रही। जब मरीजों की संख्या अधिक थी तो कई-कई दिन घर भी नहीं गए। वह बताते हैं कि शुरुआती दिनों में कई मानसिक रोगी भी संक्रमित हो गए थे, उन्हें भी कोविड वार्ड में भर्ती किया गया था। इस दौरान उन्होंने हंगामा व तोड़फोड़ भी की। संक्रमित होने के कारण उन्हें कहीं और भी नहीं भेजा जा सकता था। ऐसे में उन्हें संभालना काफी चुनौतीपूर्ण काम था। तभी मैंने तय कर लिया था कि इसे पूरी ईमानदारी से निभाऊंगा। वैक्सीन की प्रतीक्षा मुझे भी है। वैक्सीन के आने से सभी कर्मचारी निश्चिंत होकर काम कर सकेंगे।

एक भी दिन नहीं ली छुट्टी 

(डॉ. साहिर पॉल। फोटो: जागरण)

कोरोना के खिलाफ जंग में जमशेदपुर के जिला सर्विलांस पदाधिकारी डा. साहिर पॉल ने सेनापति की भूमिका निभाई। वह कहते हैं कि शुरुआती दिनों में डॉक्टर और कर्मचारी सभी सहमे हुए थे। हम में से एक भी संक्रमित होता तो सभी डर जाते, लेकिन जंग जारी रही। योजना बनाना और उसे धरातल पर उतारना मेरी जिम्मेदारी थी। लॉकडाउन में हजारों लोग दूरदराज से अपने-अपने घर पहुंचने लगे। ऐसे में उनकी पहचान कर जांच करना काफी मुश्किल काम था। फिर भी हम लोगों ने युद्धस्तर पर काम किया। झारखंड में कोरोना से सबसे अधिक मौत जमशेदपुर में हुईं। अब मरीजों और मौत की संख्या में काफी गिरावट आई है। जब से कोरोना संक्रमण फैला तब से एक दिन भी छुट्टी नहीं ली। सुबह से रात तक जुटा रहा। संयोग से इस महामारी में मेरा पूरा परिवार जुटा है। मेरी पत्नी और बेटी भी डॉक्टर हैं। वे दोनों भी अपनी जिम्मेदारी निभा रही हैं।

ठीक होते ही फिर से काम पर लौट गया

(डा. असद। फोटो: जागरण)

पूर्वी सिंहभूम जिले के महामारी रोग विशेषज्ञ डॉ. असद परिस्थिति के अनुसार, रणनीति बनाने में शुरू से जुटे रहे। वह कहते हैं कि हम जनवरी से अलर्ट मोड पर थे। जमशेदपुर के लोग विश्वभर में रहते हैं। ऐसे में चीन, अमेरिका, रूस सहित भारत के विभिन्न राज्यों से आने वाले लोगों के घर जाता और उनका नमूना लेता। शुरुआती दिनों में जिला सर्विलांस विभाग में सिर्फ दो ही कर्मचारी थे, लेकिन बाद में पूरा विभाग जुट गया। कोरोना वायरस से कभी सामना नहीं हुआ था, इसलिए मन में डर जरूर था, लेकिन जब संक्रमण जमशेदपुर में फैला और लोग ठीक होने लगे तो सारा डर खत्म हो गया। शुरुआती दिनों में हमारे पास मास्क, पीपीई किट, सैनिटाइजर भी पर्याप्त मात्रा में नहीं थे। एक बार मैं भी पॉजिटिव हो चुका हूं, लेकिन ठीक होते ही फिर से काम पर लौट गया। कोरोना ने सबको सचेत रहना सिखाया। अब हर किसी को वैक्सीन की प्रतीक्षा है।

कोरोना के खात्मे तक जारी रहेगा संघर्ष 

(रवि भारती। फोटो: जागरण)

जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति के सिटी मैनेजर रवि भारती को जिला प्रशासन ने सैनिटाइजेशन व सफाई व्यवस्था के साथ दंडाधिकारी की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी दे दी। धनबाद निवासी रवि भारती इस बीच अपने घर भी नहीं जा सके हैं, क्योंकि जमशेदपुर की स्थिति नियंत्रित भले ही है, लेकिन सामान्य नहीं कही जा सकती है। रवि भारती के जिम्मे कोरोना से मौत होने पर शवों को स्वर्णरेखा बर्निंग घाट तक पहुंचाने और उनका दाह संस्कार कराने की भी जिम्मेदारी थी। कई बार हंगामा भी हुआ, लेकिन अपनी सूझबूझ से मामलों को सुलझाने में वह कामयाब रहे। कहते हैं, यह संघर्ष कोरोना के खात्मे तक जारी रहेगा। वैक्सीन आ जाने के बाद शहरवासियों को वैक्सीन लगवाने की भूमिका भी निभाऊंगा।

झारखंड के मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि हम लोगों ने सूझबूझ, धैर्य, संयम और अनुशासन का परिचय देते हुए कोरोना पर काफी हद तक नियंत्रण पाया है। इन कोरोना योद्धाओं के सहयोग के बिना इस वैश्विक महामारी पर काबू पाना आसान नहीं था। अब भी ये अपने काम में उसी तरह जुटे हुए हैं। सभी नागरिकों से हमारी अपील है कि कोरोना से बचाव के निर्देशों का सख्ती से पालन करें। इसमें कोई दो राय नहीं कि वैक्सीन हम सभी के लिए रक्षक साबित होगी, लेकिन इसके लिए आम लोगों को परेशान होने या बहुत हड़बड़ी दिखाने की जरूरत नहीं है। जब यह प्रक्रिया शुरू होगी तो बारी-बारी से सबको वैक्सीन लगेगी। तब तक मास्क, सैनिटाइजर और शारीरिक दूरी से अपना बचाव करते रहें।   


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