सत्ता संभालो, वरना दिल्ली छोड़ो
भारतीय लोकतंत्र में यह शायद पहला मौका होगा जब किसी राज्य में बहुमत के करीब खड़ी दो बड़ी पार्टियां सरकार बनाने से इन्कार कर रही हो और प्रदेश को दोबारा चुनाव के मुहाने पर ढकेल रही हो। सबसे बड़ी पार्टी होने और बहुमत से 4 सीट पीछे होने के बावजूद भाजपा जहां जोड़-तोड़ की राजनीति से परहेज कर
नई दिल्ली। भारतीय लोकतंत्र में यह शायद पहला मौका होगा, जब किसी राज्य में बहुमत के करीब खड़ी दो बड़ी पार्टियां सरकार बनाने से इन्कार कर रही हों और प्रदेश को दोबारा चुनाव के मुहाने पर ढकेल रही हों। सबसे बड़ी पार्टी होने और बहुमत से 4 सीट पीछे होने के बावजूद भाजपा जहां जोड़-तोड़ की राजनीति से परहेज करती हुई नजर आ रही है, उसके पीछे कहीं न कहीं दिल्ली में 'आप' के उदय का प्रभाव भी माना जा सकता है। 'आप' के उद्भव के साथ ही देश की राजनीति में नए आयाम स्थापित होने की उम्मीद संजोये आम जनता पिछले कुछ दिनों से 'आप' को मैदान छोड़ते देखकर आश्चर्यचकित है।
'आप' का रवैया जनता के बीच में यह संदेश दे रहा है कि सत्ता के मुहाने पर पहुंचने के बाद भी सरकार न बनाकर, वह इसकी जवाबदेही से सीधे-सीधे बचना चाहती है। पहले किसी भी पार्टी को न समर्थन देने और न लेने के बयान के बाद अब, जब कांग्रेस ने 'आप' के समर्थन में वो भी 'बिना शर्त' का पत्र उप राज्यपाल महोदय को सौंप दिया है, तब खुद को चक्रव्यूह में फंसा पाकर शनिवार को अरविंद केजरीवाल द्वारा कांग्रेस और भाजपा के समक्ष सरकार बनाने से पहले 18 सूत्रीय मांग पत्र रखना राजनीति में उनकी अपरिपक्वता को दर्शाता है।
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लेकिन, आम जनता इतना तो जानती है कि इन 18 में से ज्यादातर मांगे जैसे- बिजली की दरें घटाना, बिजली कंपनियों का ऑडिट करवाना, 700 लीटर पानी मुफ्त देना, प्रशासन को भ्रष्टाचार मुक्त बनाना आदि सत्तारूढ़ दल खुद ही पूरा कर सकता है, ऐसे में 'आप' को दूसरों के कंधों पर बंदूक रखकर चलाने की क्या जरूरत पड़ रही है? सभी चाहते हैं 'आप' सत्ता में आए और राजनीति में फैली गंदगी को झाडू से साफ करे। बिना गद्दी पर बैठे 'आप' इस गंदगी को साफ नहीं कर सकती, ठीक उसी तरह जैसे राजनीति में उतरे बिना 'आप' देश की दिशा और नीति में नए आयाम स्थापित नहीं कर सकती थी। अभी भी वक्त है 'आप' सत्ता को संभाले, वरना राजनीति ही छोड़ दे। 'आप' क्यों जनता की उम्मीदों को जगाकर उनपर कुठाराघात कर रही है, कहीं ऐसा न हो कि अगले चुनाव में 'आप' पर जनता का झाड़ू चल जाए।
अरविंद जी आपको भी एक बात और स्पष्ट समझ लेनी चाहिए कि 'आप' का यह रवैया कहीं 'आप' को 'रणछोड़ दास' की पदवी न प्रदान करवा दें।
जिम्मेदारी लेने से बचनादेश की राजनीति में फैली गंदगी को दूर करने इसमें उतरा 'झाडू' कहीं ठिठक गया है। दिल्ली में दूसरी बड़ी पार्टी होने के बावजूद वह सरकार बनाने की जिम्मेदारी से बचती हुई नजर आ रही है। उसे शायद यह डर कहीं न कहीं सता रहा है कि उसके पास अनुभव की कमी है और वह यदि सरकार चलाती है तो उसकी कमजोरियां जग जाहिर हो जाएंगी।
किए वायदे पूरे न होने का डर'आप' को शायद यह भी डर सताने लगा है कि शायद वह दिल्ली की जनता से किए गए अपने वायदे पूरे न कर पाए। दिल्ली में बिजली की दरों को 50 फीसद तक कम करना और दिल्ली की जनता को रोजाना 700 लीटर मुफ्त पानी देना कहीं उसके गले की फांस न बन जाए।
लोकसभा चुनाव को लेकर रणनीतिदिल्ली में चमत्कारिक सफलता प्राप्त करने के बाद 'आप' कहीं न कहीं लोकसभा चुनाव में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करवाने की अभिलाषा पाल बैठी है। शायद इसलिए वह दिल्ली की गद्दी पर न बैठने के लगातार नए-नए बहाने ढूंढ़ रही, ताकि सरकार चलाने की नाकामी उसके विजय रथ को लोकसभा चुनाव में न रोक दे।
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