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VIDEO: रावण की लंका के वास्तुशास्त्र से जुड़ी है इस प्राचीन मंदिर के निर्माण की कहानी

रायपुर से करीब 90 किलोमीटर दूर स्थित प्राचीन शहर सिरपुर में एक मंदिर ऐसा है जिसे लेकर इतिहासकारों का दावा है कि इसका निर्माण परलोक से मिले वास्तुशिल्प से हुआ।

By Pooja SinghEdited By: Published: Mon, 09 Dec 2019 01:20 PM (IST)Updated: Mon, 09 Dec 2019 04:17 PM (IST)
VIDEO: रावण की लंका के वास्तुशास्त्र से जुड़ी है इस प्राचीन मंदिर के निर्माण की कहानी
VIDEO: रावण की लंका के वास्तुशास्त्र से जुड़ी है इस प्राचीन मंदिर के निर्माण की कहानी

रायपुर [हिमांशु शर्मा]छत्तीसगढ़ राजधानी रायपुर से करीब 90 किलोमीटर दूर स्थित प्राचीन शहर सिरपुर में एक मंदिर ऐसा है जिसे लेकर इतिहासकारों का दावा है कि इसका निर्माण परलोक से मिले वास्तुशिल्प ज्ञान के आधार पर हुआ है। सातवी सदी का यह मंदिर हाल ही में खुदाई में बाहर आया है। सुरंगटीला नाम से पहचाने जाने वाले इस मंदिर की वास्तुकला किसी को भी आश्चर्य में डाल सकती है।

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पंचायतन शैली के इस विशाल मंदिर का निर्माण बड़े-बड़े पत्थरों को एक-दूसरे के ऊपर रख कर किया गया है और इन पत्थरों की जोड़ाई प्राचीन आयुर्वेदिक निर्माण पद्धती से तैयार मसाले से की गई है। इस मंदिर के निर्माण के लिए जो तकनीक अपनाई गई थी वह प्राचीन वास्तुशास्त्री मयासूर की लिखी पुस्तक मयमतम् पर आधारित मानी जाती है। मयासूर, रावण के ससुर थे और उनके वास्तु शास्त्र के आधार पर ही लंका नगरी सहित कई प्राचीन शहरों का निर्माण हुआ था।

सातवी सदी में सोमवंशीय राजा ने कराया था मंदिर का निर्माण

छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी महानदी के तट पर इशान कोण में स्थापित सुरंग टीला मंदिर का निर्माण सातवी शताब्दी में सोमवंशीय राजा महाशिवगुप्त बालार्जुन ने कराया था। इस मंदिर के निर्माण के लिए विशाल पत्थरों और आयुर्वेदिक गारे का उपयोग किया गया था। इस गारे के निर्माण की विधि मयासूर के मयमतम में बताई गई है। इसके साथ ही इस भवन को बनाने के लिए भूकंप रोधी तकनीक भी इस्तेमाल की गई थी। मयमतम में बताए गए इस गारे के निर्माण विधि में आठ तरह की चीजों- बबूल की गोंद, पुराना गुड़, अलसी, सरसों, चूना, बेल का गूदा, पलास का गोंद और पानी का उपयोग किया गया था। 

सिर्फ 13 साल पहले चला इस मंदिर का पता

सातवी  शताब्दी का यह मंदिर अस्तित्व से गायब हो चुका था। समय के साथ यह मंदिर जमीन में दफन हो चुका था। सिरपुर में महानदी के किनारे साल 2006 से पहले सिर्फ मिट्टी का एक विशाल टीला नजर आता था। यह एक छोटी पहाड़ी की शक्ल में था, जिसमें झाड़ियां उगी हुई थीं। पुरातत्ववेत्ता पद्मश्री अस्र्ण शर्मा ने अध्ययन में निष्कर्ष निकाला कि इस जगह पर कोई विशाल निर्मांण कॉम्प्लेक्स दफन है। इसके बाद उनकी देख-रेख में इस जगह की खुदाई शुरू हुई और यह विशाल मंदिर वापस प्रकट हुआ।

11वीं शताब्दी में आए भीषण भूकंप ने तबाह कर दिया था शहर

इतिहासकारों का मानना है कि 11वीं शताब्दी में महानदी घाटी में एक भीषण भूकंप आया था। इस भूकंप ने प्राचीन दक्षिण कोशल की राजधानी और भव्य शहर सिरपुर की पूरी बसाहट को तबाह कर दिया था, लेकिन यह मंदिर जस का तस वहीं खड़ा रहा। इस मंदिर पर मिट्टी की पर्तें चढ़ गईं और यह जमीन में दब गया था। जब टीले की खोदाई की गई और मंदिर को बाहर निकाला गया तो इसकी सीढ़ियों पर भूकंप से आए मोड़ के निशान साफ नजर आए।

अनोखी भूकंप रोधी तकनीक से हुआ है इस मंदिर का निर्मांण

अरूण शर्मा बताते हैं कि इस मंदिर का निर्मांण मयमतम में बताई गई तकनीक के अनुरूप ही कराया गया था। 32 स्तंभों पर स्थापित यह मंदिर एक ऊंचे जगत पर स्थापित है। यह मंदिर देश में सबसे ऊंचे जगत पर स्थापित मंदिर भी माना जाता है। इस जगत पर चार शिवलिंग और गणेश भगवान का एक मंदिर स्थित है। यह चार शिवलिंग काले, सफेद, लाल और पीले पत्थरों से बने हैं। मंदिर के निर्माण के लिए सुरंगनुमा  खंभे बनाए गए थे, जो जमीन में करीब 80 फीट तक अंदर घंसे हुए हैं और एक एयर पॉकिट का निर्मांण करते हैं, जिससे मंदिर की इमारत पर भूकंप का असर नहीं होता।


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