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आदिवासी अंचल का स्कूल जहां रोज होता है संविधान का पाठ, संविधान का मंदिर भी है यहां

छत्तीसगढ़ में एक स्कूल ऐसा है जहां हर रोज संविधान की प्रस्तावना का पाठ छात्र करते हैं तो वहीं दूसरी ओर दक्षिण छत्तीसगढ़ में संविधान का एक मंदिर स्थापित है जहां लोग पूरी श्रद्धा और भक्ती के साथ माथा टेकते हैं।

By Prateek KumarEdited By: Published: Sat, 30 Nov 2019 09:25 PM (IST)Updated: Sat, 30 Nov 2019 09:25 PM (IST)
आदिवासी अंचल का स्कूल जहां रोज होता है संविधान का पाठ, संविधान का मंदिर भी है यहां

बिलासपुर/जगदलपुर, जागरण संवाददाता। हमारे देश का संविधान दुनिया का सबसे वृहद संविधान है। भारतीय संविधान ने अपने नागरिकों को जिस तरह की आजादी का जीवन दिया है, वह अपने आप में दुनिया के सभी देशों के लिए एक नजीर है। फर्ज करिए, यदि संविधान होता ही नहीं तो क्या होता? दरअसल संविधान ही एक ऐसी कड़ी है जो अलग-अलग राज्यों को एक देश के रूप में बांधती है। यह एक मजबूत कड़ी है जो कभी भी टूट नहीं सकती। संविधान में अपने नागरिकों के लिए मूल अधिकार और कर्तव्य बताए गए हैं, ताकि देश में सम्यक विधान कायम हो सके। हम संविधान की महत्ता तो जानते हैं, लेकिन हममें से बहुत कम लोग हैं जो यह जानते हों कि संविधान में मूल कर्तव्य, मूल अधिकार क्या हैं, संविधान के प्रस्तावना की भाषा क्या कहती है? संविधान की इस महत्ता को छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचलों में लोग बहुत भती भांति समझते हैं, यहां उत्तर छत्तीसगढ़ में एक स्कूल ऐसा है जहां हर रोज संविधान की प्रस्तावना का पाठ छात्र करते हैं, तो वहीं दूसरी ओर दक्षिण छत्तीसगढ़ में संविधान का एक मंदिर स्थापित है, जहां लोग पूरी श्रद्धा और भक्ती के साथ माथा टेकते हैं।

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संविधान को अमर बनाए रखने का लेते हैं प्रण

छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिले के आदिवासी बाहुल्य मरवाही ब्लॉक में नाक नामका छोटा सा गांव स्थित है। यहां हर रोज सुबह स्कूल की घंटी बजने के साथ राष्ट्रगान होता है और इसी के साथ स्कूली बच्चे संविधान की प्रस्तावना एक स्वर में दोहराते हैं। यहां के हर एक बच्चे को संविधान की प्रस्तावना कंठस्थ याद हो गई है। मिडिल स्कूल में संविधान की प्रस्तावना का वाचन बीते सात वर्षों से निरंतर चल रहा है। स्कूल के हेडमास्टर ने यह परंपरा शुरू की थी और यह लगातार चली आ रही है। स्कूल के शिक्षकों का कहना है कि संविधान के प्रति छात्रों में जागरूकता और उसके महत्व को समझाने के उद्देश्य से यह परंपरा चलाई गई है। छात्रों को संविधान का महत्व पता है और रोजाना जब वे इसकी प्रस्तावना का पाठ करते हैं तो उनमें इस संविधान का अच्छुंड बनाए रखने का जज्बा पैदा होता है। स्कूल में चली आ रही इस परंपरा की क्षेत्र के आस-पास के गांवों में भी चर्चा होती है। अक्सर विशेष अवसरों पर छात्रों के साथ उनके अभिभावक भी संविधान की प्रस्तावना पाठ में शामिल होते हैं और देश के संविधान को अमर बनाए रखने का प्रण लेते हैं।

शिला पर लिखे हैं अधिकार

सुदूर दक्षिण में बस्तर संभाग के जगदलपुर जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर तोकापाल ब्लॉक में बुरुंगपाल गांव स्थित है। यहां संविधान का (मंदिर) गुड़ी है, जहां संविधान पूजा जाता है। दो हजार की आबादी वाले गांव की खास बात यह है कि यह देश में अकेला गांव है, जहां भारत के संविधान का (मंदिर) गुड़ी है, यह कोई भव्य(मंदिर) गुड़ी नही बल्कि आधारशिला पर संविधान में निहित जनजातिय क्षेत्रो में पांचवीं अनुसूची के प्रावधान और अधिकार लिखा हुआ है। 6 अक्टूबर 1992 को जब इस गुड़ी की आधारशिला रखी गई थी। तब से ग्रामीण इसे ही गुड़ी समझते है और इसकी पूजा (सेवा) करते हैं।


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