संविधान पीठ करेगी इच्छामृत्यु, राज्यपाल हटाने पर विचार
अगले महीने से सुप्रीम कोर्ट में हर सोमवार और शुक्रवार पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ बैठेगी और वर्षो से लंबित संवैधानिक व कानूनी मुद्दों पर विचार करेगी। सुनवाई के लिए पहली सूची में जो मामले हैं उनमें मरणासन्न व्यक्ति के जीवन रक्षक उपकरण हटा कर इच्छामृत्यु का हक देना और
नई दिल्ली, (माला दीक्षित) : अगले महीने से सुप्रीम कोर्ट में हर सोमवार और शुक्रवार पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ बैठेगी और वर्षो से लंबित संवैधानिक व कानूनी मुद्दों पर विचार करेगी। सुनवाई के लिए पहली सूची में जो मामले हैं उनमें मरणासन्न व्यक्ति के जीवन रक्षक उपकरण हटा कर इच्छामृत्युका हक देना और राज्यपालको हटाने के सरकार के अधिकार का मामला शामिल है। इसके अलावा जम्मू एवं कश्मीर से बाहर मुकदमा स्थानांतरित करने का सुप्रीम कोर्ट का अधिकार और विशेष अनुमति याचिकाओं पर सुनवाई के दिशानिर्देश तय करने के मामले भी सूची में शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बावत नोटिस और सुनवाई किए जाने वाले मामलों की सूची जारी की है। सूची में कुल 9 मामले हैं जिसमें पहला मामला 1986 का है। मरणासन्न व्यक्ति के जीवन रक्षक उपकरण हटा कर उसे इच्छामृत्युका हक देने की मांग करने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में 2005 से लंबित है। गत वर्ष फरवरी में कोर्ट ने यह मामला पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सौंप दिया था। मामला संविधान पीठ को सौंपते हुए तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मुंबई की नर्स अरुणा शानबाग के मामले में चार साल पूर्व दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनाए गए फैसले पर भी सवाल उठाया था। कोर्ट ने कहा था कि पैसिव इथुनीशिया का हक देने वाला फैसला ठीक नहीं है। क्योंकि अरुणा शानबाग के फैसले में संविधान पीठ के जिस पूर्व फैसले (ज्ञान कौर) को आधार बनाया गया है वह फैसला इच्छामृत्युके सवाल पर कुछ नहीं कहता है।
अरुणा शानबाग: पीड़ादायक 42 साल
तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि याचिका में कानून का महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल है जिस पर सामाजिक, चिकित्सकीय, कानूनी और संवैधानिक नजरिए से विचार की जरूरत है। पूरी मानवता के हित को देखते हुए इच्छामृत्युपर कानूनी स्थिति साफ होनी चाहिए।
कामनकाज संस्था ने अपनी याचिका में लाइलाज स्थिति में पहुंच चुके व्यक्ति को इच्छामृत्युका हक देने की मांग की है। सम्मान से जीने के अधिकार में शामिल सम्मान से मरने का अधिकार इच्छामृत्युका हक देता है। केंद्र सरकार ने याचिका का विरोध किया था। सरकार की दलील थी कि इसे कानूनी दर्जा नहीं दिया जा सकता। यह एक तरह से खुदकुशी है। हमारे देश में खुदकुशी करना या खुदकुशी के लिए उकसाना अपराध है।
छठे नंबर पर राज्यपालको हटाने के सरकार के अधिकार का मसला है। यह याचिका उत्तराखंड के तत्कालीन राज्यपालअजीज कुरैशी ने 2014 में दायर की थी। कुरैशी इस समय राज्यपालनहीं है। कुरैशी ने राज्यपालकी नियुक्ति और हटाने का संवैधानिक मुद्दा उठाते हुए आरोप लगाया था कि फोन पर उनसे इस्तीफा मांगा गया था। संविधान पीठ इसके अलावा विचार करेगी कि क्या कई हत्याओं के लिए दी गई उम्रकैद की सजा अलग-अलग क्रमवार चलेगी या फिर एक साथ ही चलेगी।
जम्मू एवं कश्मीर से मुकदमा स्थानांतरण भी है सवाल : दो मामले सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर हैं। सवाल है कि क्या सुप्रीम कोर्ट जम्मू एवं कश्मीर से बाहर दीवानी मुकदमा स्थानांतरित करने का आदेश दे सकता है या किसी अन्य राय से जम्मू एवं कश्मीर मुकदमा स्थानांतरित कर सकता है।
दूसरा मामला अनुछेद 136 के तहत विशेष अनुमति याचिका सुनने के बारे में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश तय करने के बारे में है। नेशनल कंपनी लॉ टिब्युनल गठित करने का मामला भी सुनवाई सूची में है।