भू-स्खलन की घटनाओं से राष्ट्रीय राजमार्गो की सुरक्षा की चिंता बढ़ी, बचाव का उपाय बताने के लिए गठित होगी समिति
हिमालयी क्षेत्र में भू-स्खलन की बढ़ती घटनाओं से राष्ट्रीय राजमार्गो की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है। राष्ट्रीय राजमार्गों को सुरक्षित करने का सुझाव देने के लिए केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय ने विशेषज्ञों की एक समिति के गठन का फैसला किया है।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। हिमालयी क्षेत्र में भू-स्खलन की बढ़ती घटनाओं से राष्ट्रीय राजमार्गो की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है। राष्ट्रीय राजमार्गों को सुरक्षित करने का सुझाव देने के लिए केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय ने विशेषज्ञों की एक समिति के गठन का फैसला किया है। भू-स्खलन से राजमार्गो को सुरक्षित करने के लिए अलग से तीन से चार हजार करोड़ रुपये का प्रविधान भी किया गया है।
राजमार्गो को भू-स्खलन से बचाने का उपाय बताने को गठित होगी समिति
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हिमालय क्षेत्र के सीमावर्ती इलाकों में तेजी से सड़क निर्माण का काम हो रहा है। इनमें चार धाम प्रोजेक्ट भी शामिल है। वैसे तो इन सभी सड़कों के निर्माण में भू-स्खलन रोधी तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है और इसमें जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया और टिहरी हाइड्रोइलेक्टि्रकडेवलपमेंट कारपोरेशन की मदद भी ली जा रही है। जिओलाजिकल सर्वे आफ इंडिया के साथ मंत्रालय ने एमओयू भी किया है।
भू-स्खलन से सड़क का बड़ा हिस्सा गायब होने से चिंता बढ़ी
रास्ते में पड़ने वाले पहाड़ों की प्रकृति और स्थायित्व पर यह अपनी विस्तृत रिपोर्ट देता है। लेकिन हिमाचल प्रदेश में हाल के दिनों में जिस तरह पहाड़ खिसकने की घटनाएं सामने आई हैं, जिसमें सड़क का बड़ा हिस्सा ही गायब हो गया, उससे चिंता बढ़ गई है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जल्द ही विशेषज्ञों की समिति का गठन कर दिया जाएगा, जो मौजूदा पहाड़ी इलाकों में राष्ट्रीय राजमार्गो के भू-स्खलन की चपेट में आने की आशंकाओं की पड़ताल करेंगे और इसके साथ ही उससे सड़क को पूरी तरह से सुरक्षित करने का उपाय भी बताएंगे।
भू-स्खलन रोधी प्रोजेक्ट पर खर्च होंगे तीन से चार हजार करोड़ रुपये
इसके साथ ही मंत्रालय एक विशेष भू-स्खलन रोधी प्रोजेक्ट शुरू करने की भी तैयारी है, जिसपर तीन से चार हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भू-स्खलन की घटनाओं पर अध्ययन कर उससे बचने को तकनीकी उपाय सुझाने के लिए मंत्रालय ने डीआरडीओ के मातहत आने वाले डिफेंस जियोइन्फोरमेटिक्स रिसर्च इस्टैब्लिसमेंट के साथ समझौता किया है। यह समझौता इसी साल 20 जनवरी को किया जा चुका है।