राज व उद्धव को एक साथ आने का आदेश दे गए ठाकरे
बाल ठाकरे के निधन के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में जो सूनापन आया है उसको भरपाना किसी के लिए भी काफी मुश्किल होगा। लेकिन जाते जाते भी ठाकरे के मन में एक मलाल जरूर रह गया। यह मलाल था राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे को पहले की ही तरह एक करने का। वह अपने जीते जी इस काम को नहीं कर सके और यही टीस उन
मुंबई। बाल ठाकरे के निधन के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में जो सूनापन आया है, उसको भर पाना किसी के लिए भी काफी मुश्किल होगा। लेकिन जाते जाते भी ठाकरे के मन में एक मलाल जरूर रह गया। यह मलाल था राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे को पहले की ही तरह एक करने का। वह अपने जीते जी इस काम को नहीं कर सके और यही टीस उनके मन में बाकी रह गई। सूत्रों के मुताबिक अपने अंतिम समय में उन्होंने दोनों भाइयों के बीच बनी दूरी को खत्म करने के लिए राज और उद्धव से अपील भी की थी। अपने अंतिम समय में उन्होंने ठाकरे बंधुओं को एक दूसरे के साथ मिलकर काम करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि इस तरह से अलग अलग रहकर चलने से कुछ नहीं मिलने वाला है। एक साथ आने में जो ताकत है वह अलगाव में नहीं है। उनकी यही आखिरी इच्छा भी रही कि दोनों भाई एक बार एकजुट होकर पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए काम करें।
ठाकरे को हमेशा से ही राज ठाकरे के अलग होकर दूसरी पार्टी बनाने का अफसोस रहा। उनके भाषण में भी कई बार यह बात स्पष्ट तौर पर जाहिर हुई कि वह राज के इस फैसले से काफी दुखी थे। उन्होंने पहले भी दोनों भाईयों को साझा मंच देने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहे। हालांकि अलग पार्टी बनाने के बाद भी राज ठाकरे की पार्टी और शिवसेना का आधार एक ही था और उनका वोट बैंक भी एक ही था। मराठी मानुस के मुद्दे पर दोनों ही पार्टियां खड़ी हुई थीं।
ठाकरे के यूं दुनिया से चले जाने के बाद अब यह सवाल बाकी रह गया है कि क्या राज और उद्धव एक बार ऊिर से एक ही पार्टी के तहत आ पाएंगे। हालांकि यह नामुमकिन दिखाई देता है लेकिन यदि ऐसा हुआ तो यही सही मायने में इन दोनों की बाल ठाकरे को श्रद्धांजलि होगी।
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