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    टाइप 2 डायबिटीज से बचा सकता है मोटा अनाज, नए शोध में आया सामने

    By Neel RajputEdited By:
    Updated: Fri, 30 Jul 2021 06:42 PM (IST)

    11 देशों में हुए शोध का विश्लेषण फ्रंटियर इन न्यूट्रिशन जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसमें कहा गया है कि जिन लोगों ने जौ-बाजरा युक्त आहार का सेवन किया उनमें खाने से पहले और खाने के बाद ब्लड शुगर लेवल में 12-15 तथा 37 अंकों तक की गिरावट देखी गई।

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    11 देशों में किए गए शोध का विश्लेषण फ्रंटियर इन न्यूट्रिशन में हुआ प्रकाशित

    हैदराबाद, आइएएनएस। खानपान में संयम से बहुत सारे रोगों से बचाव किया जा सकता है। इस संबंध में लगातार शोध भी चलते रहते हैं। अब एक नए शोध में सामने आया है कि जौ-बाजरा जैसे मोटे अनाज शरीर के ब्लड शुगर को मैनेज करने में बड़ा सहायक होते हैं और इसे खाने से डायबिटीज टाइप 2 का जोखिम कम किया जा सकता है।

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    इस शोध के आधार पर जौ-बाजरा युक्त उपयुक्त आहार तैयार किया जा सकता है, जिससे डायबिटिक तथा प्री-डायबिटक लोगों को तो फायदा होगा ही और इसके साथ ही यह डायबिटीज की रोकथाम में कारगर हो सकता है।

    इस संबंध में 11 देशों में हुए शोध का विश्लेषण फ्रंटियर इन न्यूट्रिशन जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसमें कहा गया है कि जिन लोगों ने जौ-बाजरा युक्त आहार का सेवन किया, उनमें खाने से पहले (फास्टिंग) और खाने के बाद (पोस्ट मील) ब्लड शुगर लेवल में 12-15 तथा 37 अंकों तक की गिरावट देखी गई। इस तरह ब्लड ग्लूकोज का लेवल डायबिटिक से प्री-डायबिटिक स्तर तक पहुंच गया। प्री-डायबिटिक लोगों में एचबीए1सी (ब्लड ग्लूकोज से जुड़ा हीमोग्लोबिन) के स्तर में औसतन 17 और 37 तक की कमी देखी गई, जिससे प्री-डायबिटिक व्यक्ति सामान्य की श्रेणी में आ गए। इन निष्कर्षो से पुष्टि होती है कि जौ-बाजरा जैसे मोटे अनाज खाने से ग्लायसेमिक रिस्पांस बेहतर होता है।

    इंटरनेशनल क्राप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फार द सेमी-एरिड ट्रापिक्स (आइसीआरआइएसएटी) के मुताबिक, शोध के लेखकों ने इस मामले में 80 प्रकाशित अध्ययनों की समीक्षा की, जिनमें से 65 व्यापक विश्लेषण के योग्य थे और इसमें तकरीबन एक हजार लोगों की सहभागिता थी। इससे यह विश्लेषण सबसे बड़ा व्यवस्थित समीक्षा बन पड़ा। अब तक यह बात किसी को नहीं मालूम था कि डायबिटीज पर जौ-बाजरा जैसे मोटे अनाज को लेकर इतने ज्यादा वैज्ञानिक अध्ययन हुए हैं। लेकिन इनमें बताए गए फायदों को लेकर सवाल उठते रहे हैं।

    अध्ययन की मुख्य लेखिका आइसीआरआइएसएटी की वरिष्ठ पोषण विज्ञानी डाक्टर एस. अनिता ने बताया कि अब इस व्यापक और व्यवस्थित समीक्षा के वैज्ञानिक जर्नल में प्रकाशित होने से यह विश्वास जमा है कि जौ-बाजरा ग्लूकोज के स्तर पर अंकुश रखता है और डायबिटिज का जोखिम कम करता है।

    नेशनल इंस्टीट्यूट आफ न्यूट्रिशन (एनआइएन) की निदेशक हेमलता के मुताबिक, भारत में डायबिटीज रोगियों की संख्या में बड़ा इजाफा हुआ है। इनके इलाज पर भारी-भरकम राशि खर्च हो रहा है। इसका कोई आसान समाधान भी नहीं है। इसलिए जरूरी है कि जीवनशैली में बदलाव लाई जाए, जिसमें खानपान बहुत ही अहम है। इस तरह यह अध्ययन व्यक्ति और सरकार दोनों के स्तर पर एक उपयोगी समाधान उपलब्ध करा सकता है। इसके आधार पर कार्यक्रमों का सुसंगत नियोजन किया जा सकता है।

    इंडियन नेशनल टेक्निकल बोर्ड आफ न्यूट्रिशन के प्रतिनिधि तथा अध्ययन के सह लेखक राज भंडारी का कहना है कि जिस तरह से मौजूदा कोरोना महामारी के दौर में डायबिटीज के रोगियों के लिए जोखिम बढ़ा, ऐसी स्थिति में उन पर अतिरिक्त ध्यान देना जरूरी हो गया है। इस मामले में हमारे खानपान की अहम भूमिका हो सकती है और यदि हम जौ-बाजरा को अपने आहार का एक मुख्य हिस्सा बनाएं तो न सिर्फ डायबिटीज को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी, बल्कि पोषण भी बढ़ा सकते हैं।

    इंटरनेशनल डायबिटीज एसोसिएशन के मुताबिक, डायबिटीज के रोगियों संख्या दुनिया के सभी हिस्सों में तेजी से बढ़ रहे हैं। इसमें भारत, चीन और अमेरिका जैसे देश सबसे आगे हैं। लेकिन साल 2045 अफ्रीका में डायबिटीज रोगियों की सर्वाधिक वृद्धि होने का अनुमान है। ऐसे में जौ-बाजरा को मुख्य आहार में शामिल डायबिटीज के बढ़ते प्रसार को थामा जा सकता है।

    अध्ययन में पाया गया कि जौ-बाजरा का औसत ग्लायसेमिक इंडेक्स (जीआइ) 52.7 होता है, जो पके हुए चावल और रिफाइंड गेहूं से कम है। जीआइ एक ऐसा संकेतक है, जो बताता कि कोई खाद्य पदार्थ कितनी जल्दी ब्लड शुगर बढ़ा देता है। इसमें जीआइ 55 को कम या जीआइ 55-69 को मध्यम श्रेणी का माना गया है।