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हिमालय पर खतरे के बादल, पड़ीं 25 हजार गहरी दरारें

भूगर्भीय हलचल से पूरे हिमालयी क्षेत्र में 25 हजार से अधिक गहरी दरारें पड़ चुकी हैं। हिमालय की संवेदनशीलता को देखते हुए इस रेंज में बड़े निर्माण कार्य नहीं होने चाहिए। यदि हिमालयी रेंज में छेड़छाड़ नहीं रुकी तो आने वाले समय में गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं।

By Edited By: Published: Tue, 12 Nov 2013 09:24 AM (IST)Updated: Tue, 12 Nov 2013 09:38 AM (IST)
हिमालय पर खतरे के बादल, पड़ीं 25 हजार गहरी दरारें

पिथौरागढ़, भक्त दर्शन पांडेय। भूगर्भीय हलचल से पूरे हिमालयी क्षेत्र में 25 हजार से अधिक गहरी दरारें पड़ चुकी हैं। हिमालय की संवेदनशीलता को देखते हुए इस रेंज में बड़े निर्माण कार्य नहीं होने चाहिए। यदि हिमालयी रेंज में छेड़छाड़ नहीं रुकी तो आने वाले समय में गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं। यह कहना है प्रख्यात भू- वैज्ञानिक पद्मश्री प्रोफसर केएस वल्दिया का।

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भू-विज्ञान पर आयोजित संगोष्ठी में प्रो.वल्दिया ने बताया कि वर्तमान में पर्यावरण की किसी को भी परवाह नहीं है। हिमालयी रेंज में भी धड़ल्ले से निर्माण कार्य हो रहे हैं। विद्युत परियोजनाओं और सड़कों के निर्माण में विस्फोटकों का उपयोग हो रहा है। हिमालय पांच सेमी प्रतिवर्ष खिसक रहा है। धरती के अंदर होने वाली हर हलचल को महसूस नहीं किया जा सकता है, लेकिन यह हलचल भूकंप मापी यंत्रों में रिकार्ड होती रहती हैं। धरती के भीतर होने वाली उथल-पुथल के कारण विशाल चट्टानें टूटती हैं। इससे दरारें बन जाती हैं। एक बड़ी दरार के साथ कई अन्य दरारें भी होती हैं। इस संवेदनशीलता को देखते हुए यदि नितांत आवश्यक हो तभी हिमालयी रेंज में निर्माण कार्य किया जाना चाहिए।

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प्रोफेसर वल्दिया ने बताया कि हिमालय की निचली घाटियों में वनों का सफाया कर दिया गया है। इसका असर मौसम पर भी पड़ा है। उन्होंने ग्लोबल वार्मिग के लिए वनों को काटे जाने को प्रमुख कारण बताया। उन्होंने कहा कि प्रकृति में पिछले एक दशक के भीतर बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। अब समान रूप से वर्षा नहीं हो रही है। जहां कुछ समय पहले तक बरसात में समान रूप से होती थी, अब एक ही स्थान पर अतिवृष्टि हो रही है। जबकि बड़ा भू-भाग सूखा रह जा रहा है। उनका कहना था कि हिमालयी क्षेत्र भीतर से ही नहीं, बल्कि कुछ स्थानों पर बाहर से भी कमजोर है। इस वर्ष उत्तराखंड के हिमालयी रीजन में आई भीषण आपदा प्राकृतिक के साथ ही मानव जनित भी है। हिमालय की संवेदनशीलता को देखते हुए इसके साथ छेड़छाड़ बंद कर देनी चाहिए। अन्यथा आने वाले समय में केदारनाथ से भी बड़ी त्रासदी का सामना करना पड़ेगा।

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