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Climate Change: जलवायु परिवर्तन से Work hours में आएगी कमी, 14 लाख करोड़ के नुकसान का खतरा

जलवायु परिवर्तन से भारतीय जीडीपी में 2030 तक करीब 14.75 लाख करोड़ का खतरा पैदा हो गया है। यह अनुमान लगाया गया है कि बढ़ती गर्मी और उमस के कारण श्रम के समय में कमी आएगी और जीडीपी का लगभग 2.5-4.5 प्रतिशत 2030 तक कम हो सकता है।

By Manish PandeyEdited By: Published: Thu, 26 Nov 2020 01:44 PM (IST)Updated: Thu, 26 Nov 2020 01:44 PM (IST)
जलवायु परिवर्तन से 14 लाख करोड़ के नुकसान का खतरा।

नई दिल्ली, पीटीआइ। जलवायु परिवर्तन से भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है। अमेरिका की मैनेजमेंट कंसल्टेंसी फर्म मैकेंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट (एमजीआइ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2030 तक यह नुकसान 200 अरब डॉलर (करीब 14.75 लाख करोड़ रुपये) के आसपास का हो सकता है। यह खुले वातावरण में होने वाले कामों में बड़ी गिरावट के कारण होगा। तापमान ज्यादा रहने से दिन के दौरान श्रम के समय में कमी देखने को मिलेगी। इस वजह से देश की इकोनॉमी को 2.5-4.5 प्रतिशत के नुकसान का अनुमान है।

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बुधवार को जारी अपनी रिपोर्ट में एमजीआइ ने कहा कि वर्तमान की तुलना में 2030 तक दिन के दौरान आउटडोर वर्क में 15 प्रतिशत की गिरावट देखी जा सकती है। 2017 के आंकड़ों के आधार पर संस्था ने कहा कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में खुले वातावरण में संपन्न किए जाने वाले कार्यो का हिस्सा करीब आधा है। खुले आसमान के नीचे धूप में काम करने वालों का हिस्सा देश की कुल श्रमशक्ति का तीन-चौथाई है।

श्रम के समय में कमी के अलावा जलवायु परिवर्तन के कारण में चावल, मक्का, गेहूं और सोया जैसी फसलों की पैदावार में दस प्रतिशत की कमी की संभावना जताई गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय कृषि को अत्यधिक गर्मी और आर्द्रता से न केवल समय का नुकसान होगा, बल्कि संभावित उपज में भी गिरावट आ सकती है।

इसमें कहा गया है कि 2030 और 2050 के लिए उपज में गिरावट या 10 प्रतिशत से अधिक के सुधार की संभावना की जांच की। हमें पता चला कि कुछ देश अपनी जलवायु परिस्थितियों और फसलों की संरचना के कारण दूसरों की तुलना में अधिक उजागर होते हैं। इस मामले में भारत सबसे कमजोर है।

जलवायु संबंधी जोखिमों से जरूरी नहीं कि कुछ फसलों की पैदावार कम हो, लेकिन इससे उत्पादन की अस्थिरता बढ़ेगी। जिसकी वजह से किसानों की आय अस्थिर हो सकती है। कम आपूर्ति से मूल्यों में वृद्धि हो सकती है।  इसमें आगे कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए नीतियों को तैयार करने की आवश्यकता है।


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