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भारत में मानसून को अव्यवस्थित कर रहा जलवायु परिवर्तन, इन क्षेत्रों में गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका

यह अध्ययन अर्थ सिस्टम डायनैमिक्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है जिसमें दुनिया भर से 30 से अधिक जलवायु प्रारूपों की तुलना की गई है। अध्ययनकर्ताओं ने इस बात का जिक्र किया कि भारत और इसके पड़ोसी देशों में अनावश्यक रूप से ज्यादा बारिश कृषि के लिए अच्छी चीज नहीं है।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Thu, 15 Apr 2021 06:49 PM (IST)Updated: Fri, 16 Apr 2021 07:23 AM (IST)
तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से करीब पांच फीसद ज्यादा हो सकती है बारिश

नई दिल्ली, एजेंसियां। जलवायु परिवर्तन भारत में मानसून के दौरान होने वाली बारिश को बुरी तरह से अव्यवस्थित कर रहा है। एक अध्ययन में जानकारी सामने आई है। इसके मुताबिक आने वाले वर्षो में भी भारत में अत्यधिक बारिश होगी, जिसका देश की एक अरब से अधिक की आबादी, अर्थव्यवस्था, खाद्य प्रणाली और कृषि पर गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका है।

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यह अध्ययन अर्थ सिस्टम डायनैमिक्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है, जिसमें दुनिया भर से 30 से अधिक जलवायु प्रारूपों की तुलना की गई है। अध्ययन की मुख्य लेखक एवं जर्मनी स्थित पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इंपैक्ट रिसर्च (पीआइके) की एंजा काटाजेनबर्जर ने कहा, 'हमने इस बारे में मजबूत साक्ष्य पाए हैं कि प्रत्येक डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने से मानसून की बारिश के करीब पांच प्रतिशत बढ़ने की संभावना होगी। हम पाते हैं कि ग्लोबल वाìमग मानसून की बारिश को पहले से सोची गई रफ्तार से कहीं अधिक तेजी से बढ़ा रही है। यह (ग्लोबल वाìमग) 21 वीं सदी में मानसून की गतिशीलता को काफी प्रभावित कर रही है।'

अध्ययनकर्ताओं ने इस बात का जिक्र किया कि भारत और इसके पड़ोसी देशों में अनावश्यक रूप से ज्यादा बारिश कृषि के लिए अच्छी चीज नहीं है। अध्ययन की सह लेखक जर्मनी की लुडविंग मैक्सिमिलियन यूनिवर्सिटी की जूलिया पोंग्रात्ज ने कहा, 'फसलों को शुरुआत में आवश्यक रूप से पानी की जरूरत होती है, लेकिन बहुत ज्यादा बारिश होने से पौधे को नुकसान हो सकता है-इनमें धान की फसल भी शामिल है, जिस पर भरण-पोषण के लिए भारत की बड़ी आबादी निर्भर करती है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था और खाद्य प्रणाली को मानसून की पद्धतियों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बनाती है।'

मानव गतिविधियां बारिश की मात्रा बढ़ाने के लिए जिम्मेदार

शोधकर्ताओं के अनुसार मानव गतिविधियां बारिश की मात्रा बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत पिछली शताब्दी में चौथे दशक में ही हो गई थी। हालांकि, 1980 के बाद ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन ने मानसून को अव्यवस्थित करने में बड़ी भूमिका निभाई।'


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