'स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत' का अभियान अब एक आंदोलन है
साढ़े चार सौ से अधिक जिले, साढ़े चार लाख गांव और बीस राज्य और केंद्र शासित प्रदेश खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैैं।
बधाई हो। चार साल पहले दो अक्टूबर, 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में जिस स्वच्छता और साफ-सफाई की मुहिम चलाई थी, वह आज एक बड़े आंदोलन में तब्दील हो चुकी है। जिसका सकारात्मक रूप दिखने भी लगा है। अब देश में स्वच्छता कवरेज 2014 के 40 फीसद से बढ़कर 90 फीसद से अधिक हो चुका है। नौ करोड़ शौचालय बनाए जा चुके हैैं। साढ़े चार सौ से अधिक जिले, साढ़े चार लाख गांव और बीस राज्य और केंद्र शासित प्रदेश खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैैं। इस बदलाव के वाहक आप सब हैैं। जिन्होंने न केवल स्वच्छता के प्रति अपनी मानसिकता बदलते हुए इसकी संस्कृति अपनाई बल्कि राष्ट्र और समाज को स्वस्थ-सशक्त करने की अपनी भूमिका का भी निर्वाह किया। फायदे दिखने लगे हैैं।
देश में डायरिया के मामलों में 30 फीसद की कमी आने का अनुमान है। गंदगी और प्रदूषण से होने वाली मौतों में तीन लाख की कमी आने के संकेत भी हैैं। फायदों की फेहरिस्त लंबी है। हमें रुकना नहीं है, क्योंकि चुनौतियां भी कम नहीं है। संसाधनों से लेकर आचार, विचार और व्यवहार बदलने की जरूरत है। संसाधनों का स्नोत बनकर सरकार कमर कसे हुए है। हमें स्वच्छता का सूत्रधार बनना है। स्वच्छता पखवाड़े का आगाज हो चुका है। हमें ऐसा संकल्प लेना होगा कि ये सिर्फ 15 दिनी अभियान बनकर न रह जाए। पूरे साल स्वच्छता के दूत बनकर देश का कोना-कोना स्वच्छ रखकर उसे स्वस्थ बनाना है।
पहले पश्चिम था पीछे
खुद को स्वस्थ रखने की विधा पर लिखी गई दो पुस्तकों में स्वच्छता और साफ-सफाई को लेकर देशों की मानसिकता का पता चलता है। वर्जिनिया स्मिथ द्वारा लिखी किताब ‘क्लीन: ए हिस्ट्री ऑफ पर्सनल हायजीन एंड प्योरटी’ और कैथरीन एशेनबर्ग की किताब ‘द डर्ट ऑन क्लीन: एन अनसैनिटाइज्ड हिस्ट्री’ में बताया गया है कि 16वीं और 19वीं सदी के बीच पश्चिम में स्नान को अभिशाप माना जाता था। डॉक्टर स्नान करने को बीमार होने और रोगों की वजह बताते थे।
यूरोपीय सोच
यूरोप में सफाई के मायने ही अलग हैं। फ्रांस में तो आज भी रोजाना स्नान को लेकर लोग अन्यमनस्क रहते हैं। माना जाता है कि इसीलिए यूरोप के देशों में इत्र उद्योग तेजी से विकसित हुआ। लोग स्नान करने की जगह इत्र जैसी सुगंधित चीजें छिड़कना ज्यादा आसान समझते थे।
जापान का जुनून:
साफ-सफाई को लेकर जापान की दीवानगी जगजाहिर है। यहां पर किसी रेस्त्रां में अगर आप जाते हैं तो अंदर पहनने के लिए आपको खास पोशाक और चप्पलें दी जाती हैं।
बहुत ही वैज्ञानिक रहीं हैं स्वच्छता से जुड़ी भारतीय पौराणिक मान्यताएं
स्नान: हमारे पौराणिक ग्रंथों में स्नान का विशेष उल्लेख है। किसी भी कार्य से पहले हाथ धोना, स्नान करना आदि के पीछे केवल धार्मिक मान्यता ही नहीं बल्कि इनके पीछे एक वैधानिक वैज्ञानिक सोच समझ भी होती है। भोजन करने से पहले हाथ धोने की कला हमसे बेहतर कौन जानता है।
जूठे होने की अवधारणा: मुंह लगाकर किसी चीज के इस्तेमाल के बाद दूसरों को उसे इस्तेमाल करने से रोका जाता है। अंग्रेजों ने शायद इस अवधारणा को गंभीरता से कभी लिया ही नहीं, तभी तो उन्होंने इसके लिए कोई अंग्रेजी शब्द ही नहीं ईजाद किया।
जूते-चप्पल बाहर निकालना: हम घर के प्रवेश द्वार पर ही अपने जूते-चप्पल निकाल देते हैं। इसके पीछे धारणा है कि हम लोग गलियों की धूल, गंदगी को अपने घर के सुरक्षित हिस्से तक नहीं पहुंचाना चाहते।