दक्षिण एशिया में चीन की घुसपैठ बनी भारत की चिंता का सबब
श्री लंका और नेपाल से बढ़ती चीन की नजदीकी भारत के लिए चिंता का सबब बनी हुई है। चीन श्री लंका में भारत की नौसेना पर निगाह रखने के लिए एक जगह तलाशने की कोशिश कर रहा है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। मौजूदा समय में दक्षिण एशिया की रणनीतिक स्थिति में लगातार बदलाव आ रहा है। इस बदलाव की एक अहम वजह चीन है। चीन की यहां पर बढ़ती घुसपैठ भारत के लिए चिंता का सबब बनी हुई है। चीन को लेकर भारत शुरू से ही कुछ असहज रहा है। इसकी वजह उसकी बढ़ती सैन्य क्षमता के साथ-साथ उसकी कूटनीतिक और रणनीतिक चाल है। दक्षिण एशिया में अपनी दखल बढ़ाकर वह भारत को चारों तरफ से बांध देना चाहता है। या यूं कहें कि वह भारत के कदमों को सीमित कर देना चाहता है। इसके लिए वह नेपाल, श्री लंका और पाकिस्तान को अपने पक्ष में खड़ा करना चाहता है। पाकिस्तान से चीन के रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं। इसी दिशा में नेपाल और श्री लंका उसकी दूसरी कड़ी है।
भारत के लिए काफी अहम है नेपाल श्री लंका
श्री लंका और नेपाल की भौगोलिक स्थिति भारत के लिए काफी अहम है। यही वजह है कि चीन ने अब इन दोनों ही देशों पर अपनी निगाहें जमा रखी हैं। चीन अपने बाजार को नेपाल और श्री लंका तक फैलाना चाहता है। इसके अलावा उसकी निगाहें श्री लंका में एक स्थाई मिलिट्री बेस बनाने पर भी टिकी हैं, जहां से वह भारत पर निगाह रख सके। यह बेस इसी पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट की तर्ज पर ही हो सकता है। चीन यहां पर उसी नीति से काम कर रहा है जिस नीति पर वह पाकिस्तान के साथ सहयोग कर रहा है। पाकिस्तान का ग्वादर पोर्ट हो या फिर सीपीईसी, चीन इसके जरिए इस पूरे क्षेत्र पर निगाह रखने के साथ-साथ अपने को व्यापारिक दृष्टि से मजबूत करना चाहता है।
चीन अपना रहा निवेश का पेंतरा
चीन निवेश के माध्यम से भी श्री लंका में अपनी पेंठ बनाने की कोशिश कर रहा हे। बीजिंग ने श्रीलंका में कई परियोजनाओं के लिए सात अरब डॉलर के समझौते पर हाथ मिलाया है जिसमें हंबनटोटा पोर्ट और कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना भी शामिल है। भारत 1.5 अरब डालर की कोलंबो बंदरगाह शहर परियोजना को लेकर चिंतित इसलिए भी है क्योंकि यहां से उसको चीन की आहट साफतौर सुनाई दे रही है। चीन 21 वीं सदी के समुद्री रेशम मार्ग या कहें सिल्क रूट को दोबारा से जमीन पर लाने की कोशिश कर रहा है। चीन श्रीलंका को हिंद महासागर में नौवहन केंद्र बनाने में मदद करने के पक्ष में है। हालांकि चीन की श्री लंका पहुंच के केंद्र में भारत ही है।
नेपाल से भी कई समझौते
नेपाल में भी चीन इसी रणनीति के तहत आगे बढ़ रहा है। इसके लिए शुरुआती दौर में चीन ने यहां पर वित्तीय मदद के साथ कुछ क्षेत्रों में निवेश का सहारा लिया है। इसके अलावा रक्षा समझौते जिसमें मिलिट्री एजुकेशनल एक्सचेंज, संयुक्त अभ्यास और सैन्य उपकरणों की सप्लाई का सौदा शामिल है, किया है। चीन इस बात से बखूबी वाकिफ है कि भारतीय सेना में कितनी बड़ी संख्या में नेपाली गोरखा अपनी सेवाएं देते आ रहे हैं। अभी तक चीन के विकास और सुरक्षा के क्षेत्र में भारत का दबदबा रहा है। लेकिन अब चीन इसके जरिए से भारत को साधने की कोशिश में लगा हुआ है।
हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर
यदि चीन श्री लंका में अपनी पेंठ बनाने में कामयाब हो जाता है तो वह भारतीय नौसेना पर नजदीकी से निगाह रखने में सफल हो जाएगा। वह काफी हद तक भारतीय युद्धपोत और भारतीय पनडुब्बियों की मौजूदगी का भी पता लगा सकेगा, जो भारत की समुद्री सुरक्षा के लिहाज से सही नहीं होगा। हालांकि ग्वादर के तौर पर वह अपनी इस रणनीति में काफी हद तक सफल हो गया है।