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जानिए क्यों 'थ्येन आनमन' की घटना के बाद से चीन विरोधी भावना विश्वभर में है फिर सबसे ज्यादा

आरएसएस से जुड़ी पत्रिका के मुखपृष्ठ पर 1989 की प्रसिद्ध घटना की एक तस्वीर है जिसमें एक छात्र तोपों के सामने खड़ा है जिन्हें छात्रों के प्रदर्शन को खत्म करने के लिए लाया गया था।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Thu, 04 Jun 2020 07:36 PM (IST)Updated: Fri, 05 Jun 2020 01:16 AM (IST)
जानिए क्यों 'थ्येन आनमन' की घटना के बाद से चीन विरोधी भावना विश्वभर में है फिर सबसे ज्यादा
जानिए क्यों 'थ्येन आनमन' की घटना के बाद से चीन विरोधी भावना विश्वभर में है फिर सबसे ज्यादा

नई दिल्ली, प्रेट्र। 1989 की थ्येन आनमन चौक की घटना के बाद से दुनिया में इस समय चीन विरोधी भावना सबसे ज्यादा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ी पत्रिका ऑर्गनाइजर ने चीनी थिंक टैंक के हवाले से यह बात कही है। भारत और चीन के बीच सीमा पर गतिरोध की पृष्ठभूमि में पत्रिका ने अपने ताजा अंक में थ्येन आनमन चौक की घटना को कोविड-19, हांगकांग में अस्थिरता और भारत के साथ सीमा विवाद के संदर्भ में याद किया है।

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पत्रिका का शीर्षक 'थ्येन आनमन चौक फिर से'

पत्रिका के मुखपृष्ठ पर 1989 की प्रसिद्ध घटना की एक तस्वीर है, जिसमें एक छात्र तोपों के सामने खड़ा है, जिन्हें छात्रों के प्रदर्शन को खत्म करने के लिए लाया गया था। पत्रिका ने कवर स्टोरी का शीर्षक 'थ्येन आनमन चौक फिर से' दिया है। इसने कहा है कि पूरी दुनिया में छात्र प्रदर्शन की घटना के बाद से चीन विरोधी भावना चरम पर है। पत्रिका ने यह दावा चीनी समकालीन अंतरराष्ट्रीय संबंध संस्थान की रिपोर्ट के आधार पर किया है। यह चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्रालय से जुड़ा हुआ थिंक टैंक है। चार जून, 1989 को थ्येन आनमन चौक पर लोकतंत्र, स्वतंत्रता और अधिक जवाबदेही की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे छात्रों और प्रदर्शनकारियों पर चीन की सेना ने हमला किया था। इसकी पूरी दुनिया में निंदा हुई थी।

पत्रिका के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने अपने संपादकीय में कहा है कि दुनियाभर में चीन विरोधी, खासकर चीन की माओवादी सत्ता विरोधी भावना बढ़ रही है। चीन पूरी बेशर्मी से कोविड-19 को छिपाने या संभवत: इसे फैलाने के गैरजिम्मेदार व्यवहार का बचाव कर रहा है।

गौरतलब है कि 1989 में बीजिंग के थ्येन आनमन चौक पर छात्रों के नेतृत्व में विशाल विरोध प्रदर्शन हुआ था जिसे नगरवासियों से भारी समर्थन मिला। इस प्रदर्शन से चीन के राजनीतिक नेतृत्व के बीच आपसी मतभेद खुलकर बाहर आ गये थे। इस विरोध प्रदर्शन को बलपूर्वक दबा दिया गया और बीजिंग में मार्शन लॉ लागू कर दिया गया। तीन से चार जून 1989 को इस चौक पर सेना ने नरसंहार किया था। इन प्रदर्शनों का जिस तरह से हिंसक दमन किया गया ऐसा बीजिंग के इतिहास में कभी नहीं हुआ था। आज तक इस हिंसक दमन की आलोचना की जाती है और बार बार इस प्रदर्शन में मारे गए छात्रों के परिजनों की आवाज सामने आती है।


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