नेपाल में हस्तक्षेप पर चीन की सीनाजोरी, जानें, उसे जायज ठहराने के लिए क्या दे रहा है तर्क
दक्षिण एशिया के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी देश में राजनीतिक अस्थिरता है और चीन उसमें खुलकर हस्तक्षेप कर रहा है। चीन सिर्फ हस्तक्षेप ही नहीं कर रहा है बल्कि इसे जायज भी ठहराने की कोशिश कर रहा है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। दक्षिण एशिया के इतिहास में यह पहला मौका है, जब किसी देश में राजनीतिक अस्थिरता है और चीन उसमें खुलकर हस्तक्षेप कर रहा है। चीन सिर्फ हस्तक्षेप ही नहीं कर रहा है, बल्कि इसे जायज भी ठहराने की कोशिश कर रहा है। पहले चीन के विदेश मंत्रालय ने सोमवार को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के उप नेता के काठमांडू दौरे का परोक्ष तौर पर समर्थन किया। उसके बाद मंगलवार को चीन के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने एक बड़ा आलेख लिख कर कहा कि नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी की एक पड़ोसी होने के नाते मदद की जा रही है।
ग्लोबल टाइम्स ने यहां तक लिखा है कि चीन का नेपाल से काफी हित जुड़ा हुआ है। इसे देखते हुए ऐसे कदम उठाए जा रहे हैं। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से जब नेपाल में जारी राजनीतिक अस्थिरता के बीच चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के दल के वहां जाने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने काफी विरोधाभाषी जवाब दिया। एक तरफ तो यह कहा कि सीपीसी दूसरे देशों के मामले में हस्तक्षेप नहीं करने की नीति का पालन करती है और यह यात्रा नेपाल व चीन के द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने को लेकर है। जबकि सच्चाई यह है कि चीन का दल काठमांडू में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के साथ ही नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी के नाराज गुट के नेताओं से भी मिल रहा हैं।
नेपाल के सारे समाचार पत्र वहां की राजनीतिक अस्थिरता में चीन के हस्तक्षेप को लेकर बड़ी-बड़ी खबरें प्रकाशित कर रहे हैं। द काठमांडू पोस्ट ने मंगलवार को लिखा है कि चीन नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएन) के विरोधी गुट के नेताओं के बीच एकता कराने की कोशिश कर रहा है। उधर, ग्लोबल टाइम्स ने नेपाल में चल रही राजनीतिक गतिविधियों में चीन की सक्रियता का समर्थन करते हुए लिखा है कि नेपाल में चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत भारी निवेश किया हुआ है। वहां की राजनीतिक अस्थिरता को लेकर उसका चिंतित होना जायज है। सीपीसी की कोशिश सीपीएन को एक राजनीतिक दल की तरह मदद करने की है।
इस तरह के विरोध को किस तरह से सुलझाया जाए, इस बारे में सीपीसी अनुभव साझा कर रही है। लेकिन यह उसके आंतरिक मामले में हस्तक्षेप नहीं है। एक आलेख में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञों के हवाले से यह भी लिखा गया है कि भारत को चीन के राजनीतिक दल की यात्रा के बारे में टिप्पणी करने की कोई जरूरत नहीं है।