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China Tibet Tension: जलवायु संकट के प्रति गैरजिम्मेदार है चीन, तिब्बत पर दिखेगा असर; हो सकती है पानी की किल्लत

Climate Crisis तिब्बत के जलवायु संकट को प्राथमिकता की लिस्ट में सबसे ऊपर होना चाहिए क्योंकि वे यहां की जमीन पर दावा ठोकते हैं। इसकी देखभाल के बजाय चीन तिब्बत का इस्तेमाल अपने हित के लिए कर रहा है।

By Monika MinalEdited By: Published: Sat, 03 Sep 2022 10:46 AM (IST)Updated: Sat, 03 Sep 2022 10:46 AM (IST)
जलवायु संकट के प्रति चीन का गैरजिम्मेदाराना व्यवहार तिब्बत को पड़ेगा महंगा

ल्हासा, एजेंसी। तिब्बत को चीन के कारण पानी की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है। तिब्बत की जमीन पर पहले ही चीन ने अवैध तरीके से कब्जा कर रखा है जिसके बाद इलाके में व्यापक पैमाने पर गिरावट आई है। समय के साथ तिब्बत में जलवायु संकट गहरा रहा है।

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तिब्बत के पुराने दिनों की बात करें तो यहां के लोगों की जीविका मुख्य तौर पर खेती और पशुओं पर आधारित थी। साथ ही लोग खानाबदोश लाइफस्टाइल में भी रहते थे। लेकिन चीन के कब्जे के बाद से गंभीर जलवायु परिवर्तन ने तिब्बत को संवेदनशील इलाका बना दिया है और ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। तिब्बत के जलवायु संकट को  प्राथमिकता की लिस्ट में सबसे ऊपर होना चाहिए क्योंकि वे यहां की जमीन पर दावा ठोकते हैं।  इसकी देखभाल के बजाय चीन तिब्बत का इस्तेमाल अपने हित के लिए कर रहा है। 

चाहे वह सामाजिक हो या आर्थिक दोनों ही तरीकों से चीन तिब्बत की जमीन और यहां के लोगों का इस्तेमाल अपने विकास में कर रहा है। तिब्बत को 'दुनिया की छत (roof of the world)' कहा जाता है क्योंकि यह पृथ्वी के भीतर का उच्चतम क्षेत्र है। देश के भीतर औसत ऊंचाई लगभग 16,000 फीट है। साथ ही तिब्बत को 'एशिया का जल मीनार (water tower of Asia)' भी कहा जाता है। अंतर्राष्‍ट्रीय शोधकर्ताओं की माने तो तिब्‍बत निचले इलाकों में रहने वाले करीब दो सौ करोड़ लोगों को मीठे पानी का आपूर्ति कराता है।

2019 में चीन से 9.9 बिलियन टन कार्बन डाइआक्साड का उत्सर्जन हुआ था। यह आकलन इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी ने किया। वहीं अमेरिका से इस साल 4.7 बिलियन टन कार्बन डाइ आक्साइड का उत्सर्जन हुआ था। जलवायु संकट यहां होने वाले खनन व वनों की कटाई के अलावा कार और पावर प्लांट से निकलने वाले धुएं के कारण हो रहा है।  देश में बढ़ते जलवायु संकट की दर देश के भविष्य के लिए चिंता का कारण बन रहा है। सबसे गंभीर मुद्दा है इकोसिस्टम में हुआ बदलाव जो खेती और पानी को प्रभावित करेगा इससे यहां के लोगों की जीविका पर संकट बन जाएगा।


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