पड़ोस में वर्चस्व बढ़ाने में जुटा चीन, भारत सतर्क, वांग यी की मालदीव और श्रीलंका की यात्रा पर सरकार की नजर
नए साल की शुरुआत के साथ ही दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत के पारंपरिक मित्र राष्ट्रों में प्रभुत्व बनाने में चीन की कोशिशें तेज हो गई हैं। चीन के विदेश मंत्री वांग यी शनिवार को मालदीव की यात्रा के बाद कोलंबो पहुंच चुके हैं।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। नए साल की शुरुआत के साथ ही दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत के पारंपरिक मित्र राष्ट्रों में प्रभुत्व बनाने को लेकर चीन की कोशिशें तेज हो गई हैं। चीन के विदेश मंत्री वांग यी शनिवार को मालदीव की यात्रा के बाद कोलंबो पहुंच चुके हैं। मालदीव की मोहम्मद सालेह सरकार को वहां ढांचागत सुविधाओं व सामाजिक विकास के लिए मदद का आश्वासन देने के बाद माना जा रहा है कि वांग यी कोलंबो की गोटाबाया राजपक्षे सरकार के साथ चीन की मदद से बनाई जाने वाली भावी परियोजनाओं पर विमर्श करेंगे।
चीन पर कड़ी नजर
इन दो देशों की यात्रा पर जाने से पहले चीन के विदेश मंत्री इरिट्रिया, केन्या और कोमोरोस का दौरा कर चुके हैं। आधिकारिक तौर पर भारत इन यात्राओं पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है, लेकिन अपने पड़ोस और हिंद महासागर में स्थित देशों में चीन की बढ़ती रुचि को लेकर लगातार सतर्क नजर रखे हुए है। जानकार मानते हैं कि चीन की कोशिश लगातार भारत को चारों तरफ से घेरने की रही है।
तत्काल कुछ बदलने वाला नहीं
मालदीव और श्रीलंका के संदर्भ में देखा जाए तो भारतीय अधिकारी यह मान रहे हैं कि इन दोनों देशों के साथ भारत के रिश्ते लगातार सुधर रहे हैं और वांग यी की यात्रा से तत्काल कुछ बदलने वाला नहीं है। चीन के विदेश मंत्री के मालदीव पहुंचने से दो दिन पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने वहां के विदेश मंत्री अब्दुल्लाह शाहिद से बात की थी, जिसमें द्विपक्षीय रिश्तों के एजेंडे पर चर्चा हुई थी। जयशंकर ने श्रीलंका के विदेश मंत्री पीएल पेरिस से भी बात की है।
वांग की यात्रा पर नजरें
असल में इन दोनों देशों की आर्थिक स्थिति कोरोना महामारी की वजह से काफी खराब हो चुकी है और इन्हें काफी ज्यादा आर्थिक मदद की जरूरत है। दोनों देशों को भारत की तरफ से चिकित्सा सामग्री, वैक्सीन व दूसरी मदद पहुंचाई जा रही है, लेकिन इनकी जरूरत काफी ज्यादा है। ये देश पहले भी चीन से भारी मदद लेते रहे हैं। ऐसे में भारत यह देखेगा कि वांग की यात्रा के दौरान किस तरह के समझौते चीन के साथ इन देशों के होते हैं।
मालदीव के साथ रिश्ते बेहतर
मालदीव की मौजूदा मोहम्मद सालेह सरकार के साथ भारत के रिश्ते काफी बेहतर हैं। लेकिन अभी एक चिंता करने वाली बात यह है कि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्लाह यामीन को भ्रष्टाचार के आरोप में वहां की अदालत ने रिहा कर दिया है और अब उन्होंने भारत के खिलाफ एक बड़ा अभियान शुरू कर दिया है।
चीन की बढ़ती सक्रियता से चिंता
यामीन को हमेशा से चीन का समर्थक माना जाता है और उनके कार्यकाल में भारत के साथ संबंधों को दरकिनार कर चीन के हितों को बढ़ावा दिया गया था। मालदीव के कुछ दूसरे राजनीतिक दल भी यामीन के साथ हैं। हालांकि, कई राजनीतिक दलों ने उनके 'इंडिया आउट' अभियान का विरोध किया है। इसके बावजूद वहां भारत के खिलाफ एक राजनीतिक माहौल बनाने की कोशिश हो रही है। ऐसे में चीन की बढ़ती सक्रियता से चिंता बढ़ी है।
राजपक्षे चीन के पुराने समर्थक
इसी तरह श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे चीन के पुराने समर्थक रहे हैं। हाल ही में बढ़ती आर्थिक मुसीबत को देखते हुए उनकी सरकार ने भारत के हितों का ध्यान रखने का संकेत दिया है। पिछले तीन दिनों में श्रीलंका ने पकड़े गए 13 भारतीय मछुआरों को बगैर किसी परेशानी के छोड़ दिया है और भारतीय कंपनी इंडियन आयल की सहायक लंकाआइओसी और एक स्थानीय कंपनी सीपीसी को त्रिंकोमाली में विशाल टैंक स्टोरेज बनाने का ठेका दिया गया है।
दूसरी परियोजनाओं पर हो सकती है बात
भारत की मदद से वहां एक एनर्जी व ट्रांसपोर्ट हब बनाया जाना है, जिसका भविष्य में काफी रणनीतिक महत्व होगा। इसकी अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि इस सुविधा के निर्माण के लिए वर्ष 1987 में हुए ऐतिहासिक भारत-श्रीलंका समझौते के तहत बात शुरू हुई थी। वर्ष 2003 में इसके लिए समझौता भी हुआ, लेकिन तब भी बात आगे नहीं बढ़ी। राजपक्षे की सरकार को हमेशा से चीन का समर्थक माना जाता रहा है और इसने मई 2021 में कोलंबो पोर्ट सिटी इकोनमिक कमीशन बिल पारित करवा कर वहां की तकरीबन 660 एकड़ जमीन को चीन की सरकार को सौंप दिया है। माना जा रहा है कि वांग यी की यात्रा के दौरान इस तरह की दूसरी परियोजनाओं के बारे में भी बात होगी।